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शहर के उद्यमियों ने कहा, पराली निस्तारण के लिए सरकार को करनी होगी लंबी अवधि की प्लानिंग

पंजाब में करीब तीस लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में धान की खेती की जाती है। इसमें से करीब 150 लाख टन पराली को खेतों में ही जला दिया जाता है।

By Edited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 05:30 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 09:52 AM (IST)
शहर के उद्यमियों ने कहा, पराली निस्तारण के लिए सरकार को करनी होगी लंबी अवधि की प्लानिंग

लुधियाना [राजीव शर्मा]। किसानों की ओर से खेतों में धान की पराली जलाने से उत्तर भारत की आबोहवा जहरीली हो रही है, यह मानव की सेहत के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि सरकार इसे लेकर सख्त है, बावजूद इसके पराली बेखौफ फूंकी जा रही है। दीवाली की रात आतिशबाजी की आड़ में किसानों ने सूबे में 2231 जगहों पर खेतों में पराली जलाई। पंजाब में करीब तीस लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में धान की खेती की जाती है। इससे 220 लाख टन पराली पैदा हो रही है। इसमें से करीब 150 लाख टन पराली को खेतों में ही जला दिया जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार के अलावा उद्योग जगत भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है। लेकिन उद्यमियों का तर्क है कि जब तक सरकार इस संबंध में अनुसंधान करके समाधान नहीं देगी, उद्योग जगत को नई राह नहीं दिखाएगी, तब तक इस समस्या का समाधान करना मुश्किल नजर आ रहा है। उद्यमियों का तर्क रहा कि पराली की संभाल के लिए सरकार को लंबी अवधि की प्लानिंग करनी होगी।

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पराली को बनाना होगा आय का साधन, तभी होगा समाधान

द फोकल प्वाइंट फेज आठ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रधान एवं सीओएस हीट्रीट्स के एमडी ओपी बस्सी का मानना है कि धान की पराली को संभालने के लिए अभी तक सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया है। इस समस्या को खत्म करने के लिए सरकार को ही नीति निर्धारित कर काम करने की जरूरत है। हालत यह है कि अभी ब्वॉयलर में धान का छिलका जलाया जा रहा है, लेकिन उसकी राख समस्या बनी हुई है। फोकल प्वाइंट के उद्यमी राख से बेहाल हैं। बस्सी ने कहा कि सरकार को धान का छिलका और पराली के सही उपयोग का रास्ता उद्योग जगत और किसानों को दिखाना होगा। उनकी पराली को आय का साधन बनाना होगा, तभी किसान पराली जलाने से परहेज करेगा।

फसलों की तरह पराली का भी किसानों को एमएसपी दे सरकार

कुड्डू निट प्रोसेस प्राइवेट लिमिटेड के एमडी विपन मित्तल का तर्क है कि सरकार ने गेहूं एवं धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है और सरकार एमएसपी पर सारी फसल की खरीददारी भी करती है। ऐसे में धान के साथ पराली को उठाने के लिए सरकार को एमएसपी के तहत ही पैकेज देना होगा। संसाधनों की कमी के कारण किसान अपने स्तर पर पराली को नहीं संभाल सकता। उन्होंने कहा कि कई उद्योग अपने स्तर पर भी पराली का उपयोग करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं, लेकिन इसमें वक्त लगेगा।

सब्सिडी देकर ग्रामीण कलस्टर स्कीम को प्रोत्साहित करे सरकार

ट्रिम फास्टनर्स के एमडी हरमिंदर सिंह के अनुसार सरकार ने फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के कलस्टर बनाए हैं। उसी तरह से पराली का उपयोग करने वाले उद्योगों के कलस्टर किसानों के खेतों के आसपास ही बनाने होंगे। ताकि फार्म से पराली को उठा कर वहीं पर इसका उपयोग किया जा सके। इससे ढुलाई की लागत में कमी आएगी। साथ ही पराली का सही उपयोग भी हो पाएगा। सरकार सब्सिडी देकर ग्रामीण कलस्टर स्कीम को प्रोत्साहित कर सकती है।

पराली से डिस्पोजल उत्पाद की संभावनाएं तलाशी जाएं

स्वामी टेक्सटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड के एमडी आशीष जैन का मानना है कि पराली से उत्पाद बनाने के लिए सरकार को रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर फोकल करना होगा। इसके लिए साइंस एवं टेक्नोलॉजी विभाग को इस प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए। नए नए उत्पाद विकसित कर उद्यमियों को बताए जाएं, ताकि वे नया निवेश कर सकें। देश में प्लास्टिक के उपयोग को लेकर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। ऐसे में पराली के उपयोग से डिस्पोजेबल उत्पाद तैयार करने की संभावनाओं को खंगलना होगा। इससे देश में एक नया सेक्टर विकसित होगा और पराली की समस्या से भी निजात पाया जा सकता है।

पैकिंग के लिए किया जाए पराली का उपयोग

कोहली सन्स के एमडी विकास कोहली कहते हैं कि उद्योग जगत में हर उत्पाद की पैकिंग की जा रही है। पैकिंग के लिए पराली के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। खास कर टूटने वाले उत्पादों की पराली में पैकिंग करना सुरक्षित हो सकता है। फिलहाल उद्योग जगत इस पर विचार कर रहा है। लेकिन विभिन्न रिसर्च इंस्टीट्यूट्स को राह दिखानी होगी। इसके अलावा विश्व भर में पराली से बन रहे उत्पादों या अन्य उपयोग को स्टडी करके उक्त फार्मूलो को यहां पर भी लागू किया जा सकता है।

पराली संरक्षण के लिए लंबी अवधि की प्लानिंग की जरूरत

एसएस केबल इंडस्ट्रीज के एमडी आशीष गोयल के अनुसार पराली से हैंड क्राफ्टेड पेपर, फर्नीचर इत्यादि भी तैयार किए जा सकते हैं, लेकिन इसे लेकर उद्यमियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। साथ ही किसान के खेत से पराली को उठाने के इंतजाम करना प्राथमिकता होनी चाहिए। उनका मानना है कि पराली के लिए लंबी अवधि की प्लानिंग करने की जरूरत है। तभी इस समस्या से पार पाया जा सकता है।

पंचायतों को उपलब्ध करवाने होंगे उपकरण

भारत सन्स इंजीनियरिंग के एमडी निहार मित्तल ने कहा कि पराली एक गंभीर समस्या बन रही है। अक्तूबर नवंबर में उत्तर भारत की फिजा में पराली का धुआं जहर बन कर घुलता है। इससे मानव जीवन को भी खतरा है। ऐसे में इस समस्या से शीघ्र निजात पाना अनिवार्य है। गांवों की पंचायतों को मजबूत करके उनको उपकरण उपलब्ध कराने होंगे। किसान पराली न जलाएं इसके लिए उनको गाइड करना होगा। साथ ही उद्योगों को भी राह दिखानी होगी।

पराली के औद्योगिक उपयोग को प्रोत्साहन देने की जरूरत

डीएस इंटरनेशनल के एमडी खुशप्रीत सिंह का तर्क है कि किसान मजबूर होकर ही पराली जला रहा है। किसान के पास इतने संसाधन नहीं कि वह पराली का उपयोग कर सके। इसके लिए किसानों को उपकरण उपलब्ध कराने होंगे। गांव स्तर पर इक्विपमेंट बैंक बनाने होंगे। ताकि लोग वहां से उपकरण किराए पर लेकर पराली को एडजस्ट कर सकें। इसके अलावा पराली के औद्योगिक उपयोग को बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा। उद्योग जगत में पराली को खपाने की अपार संभावनाएं मार्शल टिंबर मर्चेंट्स के संचालक राकेश शर्मा ने कहा कि उद्योग जगत में भी पराली को खपाने की अपार संभावनाए हैं, लेकिन मौजूदा शेप में पराली का ज्यादा उपयोग संभव नहीं है। इसके लिए सरकार को रिसर्च को बढ़ावा देना होगा। रिसर्च के नतीजे उद्योग जगत से सांझा करके ही पराली खपाने के तरीके तलाश किए जा सकते हैं। इसके लिए आरएंडी सेंटरों को जिम्मेदारी देनी होगी।

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