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जगजीत सिंह का परिवार 15 साल रहा लुधियाना में, आज भी शहर में रहते हैं उनके कई जिगरी दोस्त

गजल गायकी की बात चले तो सभी की जुबां पर सबसे पहले जो नाम आता है वह है ‘जगजीत सिंह’। ऐसा शायद ही कोई शख्स होगा जो जगजीत सिंह की गजल गायकी से अंजान होगा।

By Vikas KumarEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 05:45 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 08:15 AM (IST)
जगजीत सिंह का परिवार 15 साल रहा लुधियाना में, आज भी शहर में रहते हैं उनके कई जिगरी दोस्त
जगजीत सिंह का परिवार 15 साल रहा लुधियाना में, आज भी शहर में रहते हैं उनके कई जिगरी दोस्त

लुधियाना [राधिका कपूर]। कभी खामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे, मैैं उतना याद आऊंगा, मुझे जितना भुलाओगे... वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी... तुमको देखा तो ये ख्याल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया... जैसी सैकड़ों गजलों को अपनी मखमली आवाज दे कर करोड़ों लोगों को अपना मुरीद बनाने वाले गजल सम्राट बन कर जग को जीतने वाले जगजीत सिंह का आज जन्मदिन है। उन्हें चाहने वाले लोगों के होंठों पर उनके गीत आज भी आते हैं और उनके इस गीत को चरितार्थ करते हैं... होंठों से छू लो तुम मेरे गीत अमर कर दो। लुधियाना से उनका गहरा नाता रहा है। उनका परिवार करीब पंद्रह साल यहां रहा।

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अपनी इस रिपोर्ट में राधिका कपूर बता रही हैं शहर से उनके जुड़ाव के बारे में।

गजल गायकी की बात चले तो सभी की जुबां पर सबसे पहले जो नाम आता है, वह है ‘जगजीत सिंह’। ऐसा शायद ही कोई शख्स होगा, जो जगजीत सिंह की गजल गायकी से अंजान होगा। हां, इतना जरूर है कि गजल गायक जगजीत सिंह के बहुत से दीवाने भी इस बात से अनजान होंगे कि उनका लुधियाना से नाता रहा है। बेशक कुछ समय के लिए ही सही वह लुधियाना के जनता नगर एरिया में 1960 के दशक में परिवार संग रहा करते थे।

लुधियाना के ऐसे कई लोग हैं, जो जगजीत सिंह के दोस्त रहे हैं और इस गजल सम्राट के जाने के बाद भी उनके परिवार से अब भी संपर्क में है। जगजीत सिंह के साथ बिताए पल व अनुभवों को उन्होंने दैनिक जागरण के साथ कुछ यूं साझा किया।

वो जगजीत सिंह के साथ हमारे परिवार की आखिरी मुलाकात थी

रत्नदीप के अनुसार वर्ष 2006 में लुधियाना के गुरु नानक भवन में गजल गायन का एक प्रोग्राम था जिसमें बतौर मेहमान जगजीत सिंह शामिल हुए। इस समय वह परिवार सहित जिसमें पिता राजेंद्र सिंह बावा को भी उनसे वहां मिलाने लेकर गए। इसके बाद से वह जगजीत सिंह को कभी नहीं मिले लेकिन वर्ष 2011 में उनकी मौत से कुछ महीने पहले उनकी एक-दूसरे से फोन पर जरूर बात हुई थी, जिसमें परिवार का हालचाल जाना था।

जगजीत सिंह के लिए गजलें लिखते थे शहर के कृष्ण अदीब

लुधियाना के पीएयू में कार्यरत ऊर्दू लेखक कृष्ण अदीब ने जगजीत सिंह के लिए कई गजलें लिखीं। हालांकि उन्होंने मोहम्मद रफी, मेहंदी हसन, चित्रा सिंह जैसे गायकों के लिए गीत लिखे, लेकिन जगजीत सिंह के साथ उनका काफी प्यार था। जगजीत सिंह ने उनकी गजल ‘जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद, और बढ़ जाती है अफसुर्दा-दिली शाम के बाद’ गायी। हालांकि इस लेखक ने अपने जीवन में कई कठिन दिन भी देखे, लेकिन उन्हें जगजीत सिंह का प्यार मिला। जब वह 15 वर्ष के थे तो उन्होंने कुली, फैक्ट्री वर्कर जैसे कई काम किए। बम्बई में रहने के दौरान उनकी दोस्ती साहिर लुधियानवी से हुई। कृष्ण की लेखन शैली से साहिर काफी प्रभावित थे और उन्होंने उन्हें प्रोत्साहित करना शुरू किया।

जगजीत सिंह अकसर रूपये भेजते थे अदीब को

चंडीगढ़ रोड में रहने वाले बलविंदर भंवरा गजल सम्राट जगजीत सिंह के काफी करीबी थे और अकसर उनके कहने पर कृष्ण अदीब को रूपये देने जाते थे। जगजीत सिंह के बचपन के साथी भंवरा के अनुसार ‘जगजीत सिंह अकसर कृष्ण अदीब को आर्थिक मदद देते थे। वह मुंबई से मुझे फोन करते थे कि अदीब को दस हजार या 20 हजार रुपये दे आओ। मैं जब उस स्वाभिमानी शख्सियत को रूपये देने जाता था तो वह सीधे तौर पर मना कर देते थे। लेकिन जब मैं बार-बार कहता था और उनकी पत्नी भी उन्हें समझाती थी तो वह रुपये ले लेते थे। बाद में जगजीत सिंह मुझे उतनी धन राशि भेज दिया करते थे।’

एक साथ गजल का रियाज़ करते थे हम

लुधियाना के सुखमनी एनक्लेव, साऊथ सिटी रोड के रहने वाले 82 वर्षीय राजेंद्र सिंह बावा बताते हैं कि जगजीत सिंह उनके अच्छे दोस्त रहे हैं। उन्होंने काफी देर एक साथ समय बिताया है। जगजीत सिंह से उनकी दोस्ती कैसे हुई, इस पर वह कहते हैं कि वर्ष 1963-64 में वह और जगजीत दोनों एक साथ जालंधर रेडियो पर गाया करते थे। इस दौरान उनकी एक-दूसरे के साथ पहचान हुई। इस पहचान में पता चला कि जगजीत भी लुधियाना के जनता नगर में रह रहे हैं। राजिंदर सिंह बावा ने कहा कि वह हौजरी व्यवसायी थे पर शौकिया तौर पर गजल गाना पसंद करते थे। फिर वह और जगजीत दोनों एक-दूसरे के साथ घर पर ही गजल का भी रियाज़ किया करते थे। राजिंदर सिंह का घर उस दौरान इंडस्ट्रियल एरिया में होता था। राजेंद्र बताते हैं कि जगजीत सिंह थोड़े समय के लिए ही लुधियाना में रहे हैं पर उनके घर में छह से सात बार आ चुके हैं। मुंबई शिफ्ट होने के बाद जब भी उनका पंजाब आना होता, तो वह उनसे जरूर मिल कर जाते। राजेंद्र ने कहा घर पर छह-सात बार आने की मुलाकात में वह उनके घर पर खाना भी जरूर खाकर जाते थे। राजेंद्र ने कहा कि जगजीत सिंह उनसे चार साल छोटे थे, उनका स्वभाव मिलनसार था। खाने में उनकी कोई ऐसी फरमाइश नहीं होती थी कि कुछ विशेष तौर पर तैयार किया बनाया जाए। घर पर जो भी बना होता, वह खा लेते। राजेंद्र बता रहे हैं कि जब जगजीत सिंह मुंबई शिफ्ट हुए, तो वह खुद भी कई बार उनसे मुंबई मिलने गए। इस बीच वह उनके लिए पंजाब के चावल, पापड़, वड़ियां लेकर जरूर जाते। राजेंद्र के बेटे रत्नदीप सिंह भी बताते हैं कि पिता से दोस्ती होने के चलते वह भी जगजीत सिंह के अच्छे दोस्त बन गए थे। उनकी भी अकसर जगजीत सिंह से फोन पर बात होती थी।

बेटों की शादी में बचपन के दिनों को किया याद

लुधियाना के उद्यमी अशोक भल्ला की जगजीत सिंह से 50 साल पुरानी पहचान रही है। वह बताते हैं कि उन्हें मुशायरे का काफी शौक है। लेखक निदा फाजली की लिखी गजलों को जगजीत सिंह अक्सर गाया करते थे, इसके जरिए एक मुशायरे में ही उनकी पहचान हुई थी। वहीं लुधियाना के पीएयू में रहने वाले शायर कृष्ण अदीब भी जगजीत सिंह के लिए गजलें लिखते थे। दोनों के ही कॉमन फ्रेंड रहे कृष्ण अदीब के घर पर वह एक बार दोबारा जगजीत सिंह को मिले और दोनों के बीच दोस्ती हो गई। दोनों की दोस्ती इस कदर रही कि अशोक भल्ला के दोनों बेटों की शादी में भी जगजीत सिंह विशेष तौर पर शामिल हुए। अशोक भल्ला के अनुसार वर्ष 1998 में उनके बेटे की जब शादी हुई तो जगजीत सिंह ने परफार्मेंस भी दी और उसी में अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए ‘ये कागज की कश्ती, ये बारिश का पानी’ गजल भी पेश की। शादी समारोह के कुछ समय बाद जगजीत सिंह को अटैक आ गया जिसके चलते उन्हें दो-तीन दिन के लिए लुधियाना के एक अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। ठीक हो कर लौटे थे तब। अशोक भल्ला कहते हैं, ‘पंजाब में जगजीत सिंह का कहीं भी आना होता तो वह उन्हें फोन कर अपने पास बुला लेते। इतना ही नहीं वह भी जब कभी मुंबई जाते तो जगजीत सिंह से जरूर मिलते। महीने में दो- तीन बार उनकी जगजीत सिंह से फोन पर जरूर बातें होती। 2008 में छोटे बेटे की शादी में जगजीत सिंह शामिल हुए। 2011 में अपने 70वें जन्मदिन पर जगजीत सिंह उन्हें मुंबई आमंत्रित किया था, वह गए भी। फिर कुछ एक महीने बाद पीटीसी पंजाबी पर प्रसारित एक शो के सिलसिले में जगजीत सिंह को जज के तौर पर बुलाया गया और उनका लुधियाना आना हुआ, इस समय भी वह उनसे मिले। जब उन्हें जगजीत सिंह की तबीयत खराब होने और मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती होने का पता चला तो वह उस दौरान भी उनकी तबीयत जानने के लिए अस्पताल गए थे और उनकी मौत के बाद रखी गई प्रार्थना सभा का भी हिस्सा बने थे। अशोक भल्ला ने कहा कि अब भी परिवार के सदस्यों से उनकी बातचीत होती रहती है।


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