सांसारिक माया के बंधन में जकड़ा हर जीव सुदामा : साध्वी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गीता भवन मंदिर में पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया है। जिसके अंतिम दिवस कथा का शुभारंभ पवन कुमार पवन गोयल विपन मलहोत्रा सुरज बहल लक्की कोचर बोबी कपुर अशवनी मलहोत्रा और दिव्य ज्योति जाग्रति सस्थान के प्रवक्ता स्वामी गिरधरानंद स्वामी विशणुदेवानंद ने प्रभु की पावन ज्योति को प्रज्वलित कर के किया।
संवाद सहयोगी, जगराओं
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा गीता भवन मंदिर में पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया है। जिसके अंतिम दिवस कथा का शुभारंभ पवन कुमार, पवन गोयल, विपन मलहोत्रा, सुरज बहल, लक्की कोचर, बोबी कपूर, अश्वनी मल्होत्रा और दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के प्रवक्ता स्वामी गिरधरानंद, स्वामी विष्
णुदेवानंद ने प्रभु की पावन ज्योति को प्रज्वलित करके किया। इस दौरान संस्थान के संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज की परम शिष्य कथा व्यास साध्वी मनस्विनी भारती ने सुदामा प्रसंग पर प्रकाश डाला।
साध्वी भारती ने कहा कि सुदामा शब्द दो शब्दों से बना है-सु+दामा। दामन का होता है रस्सी। सु उपसर्ग है, जिसका प्रयोग किसी वस्तु के सकारात्मक पक्ष को उभारने के लिए किया जाता है। इस तरह सुदामा का अर्थ वह व्यक्ति है जो रस्सियों से अच्छी तरह से बंधा है। हर वह जीव, जो सांसारिक माया के बंधनों में जकड़ा है, वह सुदामा है। सुदामा भगवान श्री कृष्ण का मित्र था। जीव भी ईश्वर का मित्र व अंश है। मगर, आज सुदामा रूपी जीव और कृष्ण रूपी परमात्मा दोनों इस शरीर रूपी गृह में इकट्ठे रहते तो हैं, परंतु दोनों का मिलन नहीं हो पाता, क्योंकि अहंकार का पर्दा बीच में है। हम संसार में आज संसार के होकर जीते हैं। इसलिए अपने ही कर्म-बंधनों में बंध जाते हैं।
साध्वी ने कहा कि सुदामा भी अपने ही कर्म के बंधन में बंधा है। इतना गरीब हुआ कि दाने-दाने को मोहताज हो गया। तब उसकी पत्नी सुशीला ने चार मुठ्ठी चिउड़ों का प्रबंध कर उसे श्री कृष्ण के पास जाने के लिए प्रेरित किया। यहां सुशीला प्रतीक है हमारी सात्विक बुद्धि का। विभिन्न संगठनों ने साध्वी मनस्विनी भारती को सम्मानित किया।