एक हाथ से रेहड़ी चला बिहार जा रहा दिव्यांग आजाद
खन्ना एक हाथ के साथ सामान से लदी रेहड़ी को खींचकर जालंधर से बिहार के सहरसा तक का सफर तय कर रहे मूल रूप से बिहार निवासी आजाद की रेहड़ी के चक्के आखिर मंगलवार को खन्ना पहुंचकर जवाब दे गए लेकिन हौंसला है कि अभी भी कायम है। एक तरफ सामान का वजन ज्यादा है और पत्नी भी साथ है तो दूसरी तरफ आजाद शरीर से लाचार है।
जागरण संवाददाता, खन्ना
एक हाथ के साथ सामान से लदी रेहड़ी को खींचकर जालंधर से बिहार के सहरसा तक का सफर तय कर रहे सहरसा के रहने वाले दिव्यांग आजाद (42 वर्ष) की रेहड़ी के चक्के मंगलवार दोपहर खन्ना पहुंचकर जवाब दे गए। इसके बावजूद उसका हौसला कायम है और उसका कहना है कि वह अपने घर जरूर पहुंचेगा। एक तरफ सामान का वजन ज्यादा है और पत्नी भी साथ है, तो दूसरी तरफ आजाद शरीर से लाचार है। हालांकि, खन्ना पहुंचने पर यूथ कांग्रेस के जिला प्रधान अमित तिवारी ने उसकी रेहड़ी के नए चक्के डलवा कर मदद की, तो उसका आगे का सफर दोपहर बाद लगभग पौने चार बजे फिर शुरू हुआ।
इससे पहले आजाद ने बताया कि वह तीन दिन पहले जालंधर से सहरसा (बिहार) के लिए निकला था। वह पहले पेंटर का काम करता था। दो साल पहले करंट ने उसकी एक बाजू और एक पांव की दो अंगुलियां छीन लीं। उसके बाद वह चाय का काम करने लगा। उसके चार बच्चे हैं, जो गांव में रह रहे हैं। लॉकडाउन के चलते चाय की दुकान बंद हो गई। जेब में जो पैसे थे, वो खर्च हो गए, तो गांव लौटने का फैसला किया। मकान मालिक ने भी किराया न देने पर घर खाली करने को कह दिया था।
इस बारे में यूथ कांग्रेस के जिला प्रधान अमित तिवारी ने कहा कि उन्होंने रेहड़ी के चक्के तो डलवा दिए, लेकिन वह चाहते थे कि आजाद खन्ना में ही रूक कर यहां कोई काम धंधा कर ले और सबकुछ ठीक होने के बाद बिहार लौटे। मगर, आजाद इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को मजदूरों के पुनर्वास के लिए कोई मजबूत योजना लानी होगी, वर्ना मजबूर लोग भूखों मर जाएंगे।