लुधियाना में स्थापित शिवलिंग का है अपना इतिहास, सिर्फ इंद्र देवता ही कर सकते हैं यहां जलाभिषेक
पुरानी जीटी रोड की चांद सिनेमा पुली के पास बुड्ढा दरिया के किनारे एक 227 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए इतनी ऊंचाई पर कोई भी भक्त नहीं पहुंचता। ऐसे सिर्फ बारिश के पानी से ही इस शिवलिंग को जलाभिषेक होता है।
लुधियाना, [राजेश भट्ट़]। शहर में एक ऐसा शिवलिंग है जिस पर सिर्फ भगवान इंद्र ही जलाभिषेक कर सकते हैं यानि बरसात के पानी से ही जलाभिषेक होता है। कोई भी भक्तजन इस शिवलिंग पर जलाभिषेक नहीं कर सकता है। मान्यता है कि इस शिवलिंग के सामने नतमस्त होने मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। दरअसल पुरानी जीटी रोड की चांद सिनेमा पुली के पास बुड्ढा दरिया के किनारे एक 227 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए इतनी ऊंचाई पर कोई भी भक्त नहीं पहुंचता। ऐसे सिर्फ बारिश के पानी से ही इस शिवलिंग को जलाभिषेक होता है।
227 फीट ऊंचा है शिवलिंग
इस 227 फीट ऊंचे शिवलिंग बनाने के पीछे एक भक्त की आस्था छिपी है। भक्त जसंवत राय थापर गले के कैंसर से पीड़ित थे और वह अपने जीवन की अंतिम सांसें ले रहे थे। उनको अपने जीवन का अंत दिख रहा था और वह भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे तो अपनी पीड़ा में बार बार भोलेनाथ को याद कर रहे थे। उसी वेदना में एक बार उन्हें सपना आया और उस सपने में उन्हें एक ऊंचा मंदिर दिखा।
भोलेनाथ के भक्त जसवंत राय थापर ने स्वप्न में ही भगवान से मनाकामना मांग कि अगर उनकी बीमारी ठीक हो गई तो वह भी ऐसा ही ऊंचा मंदिर बनाएंगे। भक्त पर भोलेनाथ की कृपा ऐसी हुई कि उसके बाद उनकी हालत में सुधार होता गया। जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो उन्होंने भोलेनाथ को दिए वचन को पूरा करने की शुरुआत की और चांद सिनेमा पुली के पास बुड्ढा दरिया के किनारे एक प्राचीन शिवमंदिर का पुनर्निर्माण शुरू किया। मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया कि वह शिवलिंग की तरह बने।
10 साल तकचला मंदिर का निर्माण कार्य
करीब 10 साल तक शिवलिंग के आकार वाले मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा और 1996 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ और मंदिर को ही शिवलिंग मानकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई। मंदिर के गर्भ गृह में भी प्राचीन शिवलिंग व अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। बताते हैं कि भोलेनाथ के भक्त जसवंत राय थापर के गले का कैंसर ठीक हो गया था और उस स्वप्न के बाद वह 30 साल तक जीते रहे। अब इस मंदिर का संचालन उनके बच्चे कर रहे हैं। इस मंदिर में भक्त दूर दूर से माथा टेकने आते हैं। यह मंदिर शहर के सबसे ऊंचा मंदिर भी है।
मंदिर को विशेष तरीके से किया गया है डिजाइन
मंदिर के निचले हिस्से में गोलाई में पिलर डाले गए हैं और वहां पर देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं और वहीं पर एक प्राचीन शिवलिंग भी है। कुछ ऊंचाई के बाद सिर्फ पिलर हैं और वह शंक्वाकार आकृति में बनाए गए हैं। मंदिर के सबसे टाप को शिवलिंग की आकृति दी गई है।