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Corona effect: होजरी उद्योग का संकट बढ़ा, पीक सीजन में भी गर्म कपड़ों का 30 फीसद ही हाे रहा उत्पादन

कोरोना वायरस की महामारी ने होजरी उद्योग का ताना-बाना बिगाड़ दिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों व जनरल रिटेलरों ने अभी अगले सर्दी सीजन के लिए ऑर्डर भी नहीं दिए हैं।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 11:05 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 11:05 AM (IST)
Corona effect: होजरी उद्योग का संकट बढ़ा, पीक सीजन में भी गर्म कपड़ों का 30 फीसद ही हाे रहा उत्पादन
Corona effect: होजरी उद्योग का संकट बढ़ा, पीक सीजन में भी गर्म कपड़ों का 30 फीसद ही हाे रहा उत्पादन

लुधियाना, [राजीव शर्मा]। कोरोना वायरस की महामारी ने होजरी उद्योग का ताना-बाना बिगाड़ दिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों, कारपोरेट रिटेलरों व जनरल रिटेलरों ने अभी अगले सर्दी सीजन के लिए ऑर्डर भी नहीं दिए हैं। इतना ही नहीं, अभी तक रिटेलर माल लेने का वादा तक नहीं कर रहे हैं। ऐसे में उद्यमी कशमकश में हैं कि कितना माल बनाया जाए। इसी कारण गर्म कपड़ों के उत्पादन का पीक सीजन होने के बावजूद उद्यमी अभी महज तीस फीसद ही उत्पादन कर रहे हैं।

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उद्यमियों की सोच है कि यदि आने वाले महीनों में स्थिति सुधरती है तो उसी के अनुसार उत्पादन किया जाएगा। माना जा रहा है कि परिस्थितियां अनुकूल होने पर होजरी उद्योग में उत्पादन अवधि दो माह के लिए खिंच सकती है। यदि हालात न सुधरे तो आने वाला सर्दी सीजन भी हाथ से फिसल सकता है। अभी उद्यमी इंतजार की मुद्रा में हैं। वे कोरोना पर पैनी निगाह बनाए हुए हैं।

उद्यमियों के अनुसार शहर में वूलेन कपड़े बनाने वाली करीब आठ हजार इकाइयां हैं। इनमें सालाना लगभग दस हजार करोड़ का कारोबार होता है। 95 फीसद से अधिक इकाइयां माइक्रो स्मॉल एंड मिडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) क्षेत्र में स्थित हैं। वूलेन गारमेंट की रिटेल का सीजन सितंबर से फरवरी तक चलता है। आम तौर पर इंडस्ट्री की साठ से सत्तर फीसद भुगतान राशि मार्च तक आ जाती है।

उद्यमियों के अनुसार तीस से चालीस फीसद राशि मई-जून तक आ जाती है। मार्च में कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के कारण लगभग तीन से चार हजार करोड़ की राशि फंस गई है। यह राशि अभी तक नहीं मिली है। ऐसे में इंडस्ट्री के समक्ष वकिर्ंग कैपिटल का भी संकट है।

उद्यमी अधिक उत्पादन का नहीं ले रहे रिस्क

पहले जुलाई में स्थितियां अनुकूल होने का अनुमान था। कोरोना के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में उद्यमी समझ नहीं पा रहे हैं कि अक्टूबर व नवंबर में हालात क्या होंगे? इस बारे में कोई भी सटीक नहीं बता पा रहा है। ऐसे में उद्यमी अधिक माल बनाने का रिस्क नहीं ले रहे हैं। अप्रैल-मई में बुकिंग नहीं हुई। जुलाई में रिटेलरों को फैक्ट्री बुला कर बुकिंग करनी थी, लेकिन अब यह भी संभव नहीं है।-सुदर्शन जैन, अध्यक्ष, निटवियर अपैरल मैन्यूफैर्स ऑफ लुधियाना

असमंजस की स्थिति से हो रहा कम उत्पादन

असमंजस की स्थिति में अभी केवल 25 से तीस फीसद उत्पादन ही हो रहा है। रिटेलरों के कमिटमेंट एवं रिस्पांस नहीं करने से भी अनिश्चितता गहरा रही है। बाजार में फंसी राशि भी नहीं मिल रही है। इससे व्यवस्था बेहतर होने के बजाय बिगड़ ही रही है।-अरुण अग्रवाल, महासचिव, निटवियर अपैरल मैन्यूफैर्स ऑफ लुधियाना

हालात सुधरने का अभी कर रहे इंतजार

हालात उत्पादन के अनुकूल नहीं हैं। बाजार की चाल समझ में नहीं आ रही है। ग्राहक खुल कर खरीदारी नहीं कर रहे हैं। सर्दी का सीजन भी फीका ही रहने की आशंका है। सीजन में इंडस्ट्री क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाएगी। हालात सुधरने का इंतजार ही कर सकते हैं।-शाम बांसल, चेयरमैन, वूल क्लब

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