प्रिंटिंग कारोबार पर भी कोरोना की मार, शिक्षण संस्थान बंद होने से ठप पड़ा काम, पिछली पेमेंट फंसी
पिछली चार माह से स्कूल व कॉेज बंद होने के कारण 35 से 40 फीसद काम अभी बिल्कुल ही बंद पड़ा है और पेमेंट फंसी होने के कारण प्रिंटर्स का गुजारा मुश्किल हो गया है।
लुधियाना, राजीव शर्मा। कोरोना महामारी के चलते शिक्षण संस्थान खुल नहीं पाए। इसी कारण प्रिंटिंग एवं पैकेजिंग इंडस्ट्री में सुस्ती का आलम है। प्रिंटर्स का तर्क है कि प्रिंटिंग के कारोबार में शिक्षा क्षेत्र की हिस्सेदारी 35 से 40 फीसद है जो अभी बिल्कुल ही बंद है। इसके अलावा विवाह समारोह पर भी पाबंदियां होने के कारण यह सेगमेंट भी ठप है। नतीजतन प्रिंटर क्षमता का महज चालीस फीसद ही उपयोग कर पा रहे हैं। इससे खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है। छोटे प्रिंटर्स के समक्ष अस्तित्व बचाने का संकट पैदा हो गया है। प्रिंटर्स का कहना है कि फिलहाल कोरोना संकट से निजात मिलने का इंतजार किया जा सकता है।
उद्यमियों के अनुसार सूबे में प्रिंटिंग की करीब 1300 यूनिट्स हैं। ज्यादातर लुधियाना, जालंधर, पटियाला और अमृतसर में हैं। इनमें से 90 फीसद माइक्रो यूनिट्स हैं, जबकि दस फीसद स्मॉल सेक्टर की हैं। सूबे में मैन्युफैक्चरिंग बेस कम है। यहां पर ज्यादातर साइकिल व साइकिल पाट्र्स, होजरी, ऑटो पाट्र्स, सिलाई मशीन उद्योग ही हैं। इनमें डिब्बे की मांग अधिक रहती है।
ऑफसेट प्रिंटर्स एसोसिएशन के महासचिव कमल चोपड़ा का कहना है कि फिलहाल उद्योग भारी संकट में है। मार्च से स्कूल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट, विश्वविद्यालय समेत तमाम शिक्षण संस्थान बंद हैं। ऐसे में शिक्षा से जुड़ी प्रिंटिंग की मांग 35 से 40 फीसद तक ठप है। हालत यह है कि अप्रैल से स्कूलों में नया सत्र शुरू होता है। बड़ी संख्या में स्कूल विद्यार्थियों के लिए सालाना डायरियां प्रकाशित कराते हैं। प्रिंटर्स के पास कई स्कूलों की हजारों डायरियां छपी पड़ी हैं, लेकिन कोरोना के कारण स्कूल नहीं खुलने से डिलीवरी नहीं हो पाई। इससे रकम फंसी हुई है। अब उन्हें स्कूल खुलने का इंतजार है और उसकी से ही उन्हें संजीवनी मिलने की संभावना है।
जनवरी व फरवरी की पेमेंट फंसी
चोपड़ा के अनुसार जनवरी व फरवरी में माल की पेमेंट भी नहीं आई। इस वजह से छोटे प्रिंटर्स की वित्तीय स्थिति काफी खराब है। चोपड़ा ने कहा कि विवाह समारोह भी सिमट गए हैं। इसके अलावा होजरी सीजन भी चौपट है। ऐसे में डिब्बे की मांग भी न्यूनतम स्तर पर है। सिर्फ साइकिल व ऑटो पाट्र्स व मेडिकल सेक्टर में ही कुछ काम निकल रहा है।
वेट एंड वॉच की स्थिति में इंडस्ट्री
एसोसिएशन के प्रधान परवीन अग्रवाल व उपाध्यक्ष गगनदीप ङ्क्षसह का तर्क है कि जब तक कोरोना से निजात नहीं मिलती, तब तक इंडस्ट्री को रफ्तार देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर इकाईयां माइक्रो सेक्टर में स्थित हैं। संसाधनों की कमी के कारण उनकी दिक्कतें बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल इंडस्ट्री वेट एंड वॉच की स्थिति में है।