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बाल मजदूरी के बढ़ रहे मामले; राेकने के लिए करोड़ों खर्च, फ‍िर भी नहीं दिख रहा फर्क

बाल मजदूरी रोकने के लिए कई कार्यक्रमों पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। फ‍िर भी बाल मजदूरी पर लगाम लगाने में लगाने में प्रशासन और सरकार बेबस दिख रही है।

By Sat PaulEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 02:26 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 10:47 AM (IST)
बाल मजदूरी के बढ़ रहे मामले; राेकने के लिए करोड़ों खर्च, फ‍िर भी नहीं दिख रहा फर्क
बाल मजदूरी के बढ़ रहे मामले; राेकने के लिए करोड़ों खर्च, फ‍िर भी नहीं दिख रहा फर्क

जेएनएन, लुधियाना। बाल मजदूरी रोकने के लिए कई जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कई कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। फ‍िर बाल मजदूरी पर लगाम लगाने में लगाने में प्रशासन और सरकार बेबस नजर आ रही है। लुधियाना शहर की बात करें तो यहां के हर चौराहे की दुकान, ढाबे और फैैक्टरी में काम करते हुए बच्चे हर रोज देखे जा सकते हैं। 

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हाल की बात करें तो रविवार को शहर में बचपन बचाओ आंदोलन के पदाधिकारियों की ओर से फैक्ट्रियों में रेड कर वहां से चार बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है। पुलिस ने फैक्टरी मालिकों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। यह इस तरह का पहला मामला नहीं है। आए दिन इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि प्रशासन और पुलिस को इस बारे में जानकारी नहीं है। किसी ढाबे पर जब कोई पुलिस वाला चाय पीने या खाना खाने  के लिए जाता है तो कई बार बच्चे खाना परोसते हैं और पुलिसकर्मी को चार भी पिलाते हैं।ऐसा प्रशासन के अधिकारियों के सामने भी होता है। लेकिन इस तरह के मामलों को नजरअंदाज कर लिया जाता है।

कम होने की बजाय बढ़ रहा बाल श्रम 

शहर और आसपास के क्षेत्ररें में ऐसे कई छोटे-छोटे बच्चे या रेहड़ी-फडिय़ों पर काम करते नजर आते हैं या फिर कचरा बीनते हुए दिखाई देते हैं। सरकार ने बाल श्रम अधिनियम 1986 को संशोधित कर बाल श्रम अधिनियम 2016 भी बनाया, लेकिन इससे ऐसे बच्चों के परिवार की आर्थिक हालत सुधारने में कोई लाभ नहीं हुआ है। यही वजह है कि बालश्रम कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। 

रेहड़ी चलाने वाले बच्चों पर कार्रवाई मुश्किल 

वर्तमान प्रावधान के अनुसार रेहड़ी पर काम करने वाले बच्चों पर बाल श्रम कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इस प्रकार के मामलों में रेहड़ी वाले रेहड़ी छोड़कर चले जाते हैं। लिहाजा कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि यह जानकारी नहीं मिल पाती है कि रेहड़ी किसकी है और बच्चों से कौन काम करवा रहा है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि विभाग को ऐसे बच्चों के पुनर्वास के लिए भी काम करना होता है, जो संभव नहीं हो पाता।इनमें कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो बिना किसी दबाव के केवल अपने परिवार या फ‍िर अपना पेट पालने के लिए रेहड़ी लगाना शुरू कर देते हैं। एेसे बच्चों से अगर रेहड़ी छीन ली जाए तो उनका पेट भरना मुश्किल हो जाएगा।

संस्थाएं कर रही बाल मजदूरी रोकने के प्रयास

कई ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं, जो बाल मजदूरी को रोकने में जुटी हुई हैं। कुछ संस्थाएं पुलिस के साथ मिलकर ऐसे लोगों के खिलाफ मोर्चा भी खोलती हैं, जिनका पेशा ही बच्चों से मजदूरी करवाना होता है।इन कुछ ऐसी संस्थाएं भी होती है, जो केवल झूठी वाहवाही लूटने के चक्कर में केवल अपने हित के लिए काम करती हैं। कुछ दिन अभियान चलाकर ऐसी संस्थाएं बड़े उद्योगपतियों पैेसे मिलने के बाद अपना मुंह बंद कर लेती हैं।

सबको मिलकर करना होगा काम

अगर इस बाल मजदूरी को जड़ से मिटाना है, तो सभी को साथ मिलकर आगे आना होगा। प्रशासन, सरकार, सामाजिक संस्थाएं और आम नागरिक अगर मिलकर कदम उठाएंगे तो ऐसे बच्चों को बेहतर बचपन नसीब हो सकता है। 

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