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1965 भारत-पाक युद्ध की दास्तां : बलिदान दे दिया, लेकिन नहीं होने दिया फाजिल्का पर कब्जा, पाक सेना ने मकान तक कर दिए थे ध्वस्त

1965 के भारत-पाक युद्ध को फाजिल्का के लोग हमेशा याद करते हैं। देश के बहादुर सैनिकों ने फाजिल्का पर कब्जा जमा चुके दुश्मन पर कड़े प्रहार करके उन्हें पीछे धकेल दिया था। 20 दिन बाद आज ही के दिन 23 सितंबर 1965 को युद्ध विराम की घोषणा की गई थी।

By mohit KumarEdited By: Vinay kumarPublished: Fri, 23 Sep 2022 04:57 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 04:57 PM (IST)
1965 भारत-पाक युद्ध की दास्तां : बलिदान दे दिया, लेकिन नहीं होने दिया फाजिल्का पर कब्जा, पाक सेना ने मकान तक कर दिए थे ध्वस्त
1965 के युद्ध के शहीदों को नमन करने के लिए गांव आसफवाला में पहुंचे बीएसएफ के अधिकारी।

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का। 1965 के भारत-पाक युद्ध को भले ही 46 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन फाजिल्का के लोग इस लड़ाई को हमेशा याद करते हैं। देश के बहादुर सैनिकों ने फाजिल्का पर कब्जा जमा चुके दुश्मन पर कड़े प्रहार करके उसे पीछे धकेल दिया था। शहादत का जाम पीकर फाजिल्का को उसके कब्जे से मुक्त करवाया था। 3 सितंबर 1965 को युद्ध की शुरुआती हुई थी। 20 दिन बाद आज ही के दिन यानी 23 सितंबर, 1965 को युद्ध विराम की घोषणा की गई थी।

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इस भयानक युद्ध में भारतीय सैना ने दुश्मनों को बुरी तरह पराजित करके विजय पाई थी। फाजिल्का सेक्टर में भी 3 सितंबर 1965 की शाम पाकिस्तानी सेना ने हवाई हमला कर दिया था। रात में दुश्मन ने अंतरराष्ट्रीय सुलेमानकी-सादकी चौकी के अलावा अन्य चौकियों पर कब्जा कर लिया था। सीमावर्ती गांव खानपुर व चाननवाला में कब्जा करने से पहले ग्रामीण सुरक्षित स्थानों पर चले गए थे। पाकिस्तानी सेना ने उनके मकान ध्वस्त कर दिए और उनका समान, ईंटें यहां तक कि पेड़ों को भी काटकर ले गए।

गांव खानपुर के बजुर्ग मोहना राम ने बताया कि होमगार्ड के जवानों के साथ मिलकर साबुना नहर पर दुश्मनों को ललकारा। उनमें से कई को पाक रेंजरों ने गिरफ्तार कर लिया था। बार्डर एरिया विकास फ्रंट के अध्यक्ष एलडी शर्मा ने बताया कि पाक रेंजर सीमावर्ती कई गांवों पर कब्जा करने के बाद जब चाननवाला गांव के रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ने लगे तो फिरोजपुर से आई 3/9 गोरखा राइफल्स की दो कंपनियों के जवानों ने अंधाधुंध फायरिंग करके दुश्मन को पीछे धकेल दिया। दुश्मन अपने बंकर छोड़कर भाग गए। यहां तक कि पाक रेंजर अपने रेंजर साथियों के शवों को भी नहीं ले गए। युद्ध में अपनी वीरता दिखाने वाले भारतीय सैनिकों को विभिन्न पदकों से नवाजा गया। जो जवान शहीद हुए, उनकी याद में गांव आसफवाला के पास शहीद स्मारक बनाई गई, जहां देश भर से आने वाले लोग शीश झुकाते हैं।

बीएसएफ के अधिकारियों ने समाधि स्थल पर किया नमन

6 सितंबर से 22 सितंबर 1965 तक हुए भयंकर युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों के फाजिल्का के सीमावर्ती गांव आसफवाला में बने शहीदी समारक पर आज भारत के विभिन्न प्रांतों से आए बीएसएफ अधिकारियों ने दीप प्रज्जवलित कर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया। इस मौके कुलवंत राय शर्मा, डीआइजी पूर्वी कमान अधिकारी सैक्टर मुख्यालय बीएसएफ रायगंज, ईस्टर्न कमान के आरके बस्ता कमांडेंट शिलांग, अविनश रंजन कमाडेंट बेहरामपुर, आशीष कुमार एसी वर्क्स सैक्टर मणिपुर, दिनेश कुमार कमाडेंट 66वीं बटालियन रामपुरा फाजिल्का, एमएस रंधावा द्वितीय कमान अधिकारी, सुरिंदर कुमार बोटा व अधिकारियों व उनके पारिवारिक सदस्यों ने शहीद सैनिकों ने स्मारक भवन पर भी पुष्पवर्षा कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। बता दें कि कुलवंत राय शर्मा, डीआईजी बीएसएफ अपनी टीम के साथ जनरल चौधरी ट्राफी के लिए तीन दिवसीय दौरे पर 66वीं बटालियन के रामपुरा मुख्यालय में आए हुए हैं। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी निशा शर्मा ने भी सामाजिक कार्यों में भाग लिया।

जब तोप से किए दुश्मन सेना के कई जवान ढेर

1965 आपरेशन रिडल के दौरान बटालियन सुलेमानकी सेक्टर में तैनात थी। इस दौरान हवलदार प्रभु राम 531 फील्ड बैटरी के 25 पाउंडर गन का नंबर वन था। इसकी ड्यूटी भी सुलेमानकी सेक्टर पर थी। 9 सितंबर की रात जब दुश्मन ने हमला किया तो हवलदार प्रभु राम ने अपनी तोप का मुंह खोल दिया। तोप के गोलों ने दुश्मन के कई रेंजर ढेरी कर दिए। उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और दुश्मन के तोपखाने पर जमकर गोलाबारी की। जिससे दुश्मन घबरा गया। इस वीरता के लिए उन्हें सेना मेडल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।


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