हर स्ट्रीट लाइट पोल पर लगा दिए कोरोना से बचाव के बोर्ड, इनको पढ़ेगा कौन
शहर की सड़कें देखे हुए कई सप्ताह हो गए। अब नगर निगम ने पूरे शहर में हजारों की संख्या में हर स्ट्रीट लाइट पोल पर कोरोना से बचाव के लिए विज्ञापन बोर्ड लगाए हैं।
लुधियाना,[राजेश शर्मा]। 22 मार्च से कर्फ्यू लागू है। सड़क पर नामात्र वाहन हैं। अधिकतर लोग तो ऐसे हैं जिनको शहर की सड़कें देखे हुए कई सप्ताह हो गए। अब नगर निगम ने पूरे शहर में हजारों की संख्या में हर स्ट्रीट लाइट पोल पर कोरोना से बचाव के लिए विज्ञापन बोर्ड लगाए हैं।
मुख्य सड़कों पर लगे बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्ड आम दिनों में अकसर खाली नजर आते हैं, लेकिन इन दिनों लगभग सभी पर नगर निगम की तरफ से कोरोना से बचाव के उपाय और एहतियात बरतने की अपील लिखे बोर्ड लगाए हुए हैं।जब सड़कें खाली हैं, इन पर न तो कोई आता है और न ही पुलिस किसी को आने की इजाजत दे रही है। ऐसे निगम की इन अपीलों को पढ़ेगा कौन। अब सवाल उठ रहा है कि जब पूरे विश्व की सेहत कोरोना ने बिगाड़ रखी है ऐसे हालात में कहीं निगम विज्ञापन कांट्रेक्टर कंपनी की सेहत सुधारने में तो नहीं जुटा है।
महफिल पर लगा विराम
दो मित्र हैं। एक पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड तो दूसरा उद्योगपति। दोनों 'पेग फ्रेंड' भी हैं। दोनों रोजाना इकट्ठे पेग लगाते हैं, लेकिन कोरोना के खौफ से उनकी जाम-ए-महफिल लगनी बंद हो गई। घर भी पास-पास हैं तो कर्फ्यू के शुरुआती दौर में महफिल का यह दौर जारी रहा, लेकिन ज्यों ही कोरोना का आंकड़े बढ़ने लगा तो इस बैठक की भी इतिश्री हो गई। हुआ यूं कि एक शाम को रिटायर्ड कर्मचारी जसवंत सिंह ने साथी हरजीत सिंह को फोन करके कहा कि भाई अब तू इस महफिल को कुछ दिन के लिए विराम दे दे। वजह उसने बताई वह भी ठोस थी। जसवंत ने कहा, देख भाई सुना है कि कोरोना उम्रदराज लोगों को चपेट में ले रहा है। जो पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त है, वह जल्दी शिकार बनते हैं। तूं जानता है मेरा हार्ट ऑपरेट हुआ है और तुझे खांसी है। इसलिए अब तेरा मेरा मिलना बंद।
इसलिए सस्ता दे रहे दूध
कोरोना वायरस के कारण लगे प्रतिबंधों ने अब लोगों की दिनचर्या तो बदली ही, वहीं सामान बेचने के तौर तरीके भी बदल कर रख दिए हैं। आपको ऐसे ही एक किस्से से अवगत करवाते हैं। बात है दुगरी जैसे पॉश इलाके में दूध बेचने के लिए लगाए गए विज्ञापन बोर्ड की। अमूल कंपनी और वेरका जैसा दूध की कीमत बोर्ड पर 50 रुपये किलो लिखी है जबकि डेयरियों से आए खुले दूध का मूल्य 30 रुपये प्रति किलो लिखा है। इसके साथ ही सस्ते दूध का तर्क भी लिखा है कि गांवों में मंदी की वजह से सस्ता बेचा जा रहा है। पूरा माझरा समझा तो पता चला कि गांव से आने वाले इस दूध की सप्लाई हलवाई व चाय की दुकानों पर होती थी। अब ये दुकानें बंद हैं तो दूध तो कहीं खपाना ही है। कीमत कम रखी तो लोग इसकी क्वालिटी पर शक करने लगे। इसलिए यह बोर्ड लगाने पड़े।
आंकड़ों में हेरफेर तो है
निसंदेह कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट के बीच जरूरतमंदों की मदद के लिए सबसे सराहनीय कार्य संस्थाओं और लंगर कमेटियों का रहा। जिला प्रशासन भी इनका सहयोग ले रहा है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में गली-मोहल्ले में संस्थाओं ने जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुंचाया। मगर बहुत सी लंगर कमेटियों की तरफ से जारी प्रेसनोट में जरूरतमंदों की संख्या को जोड़ा जाए तो यह 15 से 20 लाख के करीब पहुंच जाती है। यानि कि लगभग उतनी आबादी जितनी शहरी इलाके में रहती है। प्रेसनोट में लिखी संख्या में अधिकतर संस्थाएं दो से 15 हजार व्यक्तियों को खाना पहुंचाने का दावा कर रही हैं। इसमें कुछ सही भी हो सकती हैं लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह आंकड़ा सही है। अगर हां तो क्या ये कमेटियां पूरे लुधियाना को ही लंगर खिला रही हैं। आंकड़े में हेरफेर जरूर नजर आ रहा है। कहीं यह नंबर बनाने के लिए तो नहीं।
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