हेरिटेज बिल्डिंगों की साज-सज्जा और मीनाकारी करते हैं जगतार सिंह
एक पेंटिंग कलाकार अपने जीवन के रंगों की तरह मूर्तियों को वास्तविक रूप देकर सुंदर बना देता है।
बिंदु उप्पल, जगराओं
एक पेंटिंग कलाकार अपने जीवन के रंगों की तरह मूर्तियों को वास्तविक रूप देकर सुंदर बना देता है। उस मूर्ति को जब कोई निहारता है तो उस कलाकार को बेहद खुशी होती है। ऐसे में कलाकार मूर्तियों को खूबसूरत बनाकर इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि उसकी बनाई मूर्ति को कोई पसंद कर रहा है। जगराओं में भी एक ऐसे कलाकार जगतार सिंह कलसी हैं जो कला के माहिर हैं।
दैनिक जागरण से बातचीत में गाव रूमी में जन्मे जगतार ने बताया कि बचपन से ही पेंटिंग करने का शौक था। 12वीं के बाद जब उनके पिता हरि सिंह का देहात हो गया तो उनकी टीचर गुरविंदर कौर ने उनको जगराओं से 15 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा मेहदियाना साहिब में पेंटिंग का काम दिला दिया। वह मेहदियाना साहिब कलाकार तारा सिंह के शागिर्द हैं। जगतार ने वर्ष 1994 से 1998 तक गुरुद्वारा मेहदियाना साहिब में पेंटिंग की। इतना ही नहीं उन्हें जगराओं के कलाकार गुरप्रीत सिंह के साथ अमृतसर के श्री हरिमंदिर साहिब में भी मीनाकारी करने का अवसर मिला। वहा पर चार महीने रहकर श्री स्वर्ण मंदिर की दूसरी मंजिल पर सेवा करने का अवसर मिला। फिर कलाकार जगतार सिंह कलसी ने कृष्णकोट गाव के श्री कृष्ण मंदिर में बारीक मीनाकारी करने का अवसर मिला। जगतार ने ही जगराओं के झासी रानी चौक स्थित रानी झासी की प्रतिमा की मरम्मत और पेंटिंग की। उन्होंने बताया कि उनसे एनआरआइ पेंटिंग बनवाकर ले जाते हैं। कॉमेडी करने का भी शौंक, करते हैं स्टेज शो
जगतार को स्टेच्यू पेंटिंग के अलावा कॉमेडी करने का भी शौक है। इसलिए वो रंगमंच थियेटर के साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ स्टेज शो करते है। इसके अलावा वह कई लघु टैली फिल्मों रामू दी सरदारी, दलदल, नैहले पे दहला, देश के राखे, पिंडों की खुंड में चर्चा आदि में भी किरदार निभा चुके हैं। वो अनेक बच्चों को योग सिखाकर तोतले पन से छुटकारा दिलवा चुके हैं। उनको क्रोशिया और बुनाई का भी शौक है वो थ्री डी, रिवर्सीबल कई स्वेटर बना चुके हैं। उन्होंने कहा कि अपने जीवन में हेरिटेज बिल्डिंगों की साज-सज्जा करके बहुत संतुष्टि मिली है। शौंक और गुणों को कभी दबाना नहीं चाहिए
जगतार सिंह ने कहा कि कलाकार का गुण बचपन से ही होता है इसलिए हर युवा को अपने शौंक व गुणों को कभी दबाना नहीं चाहिए, क्योंकि इन शौक व गुण को कठिन समय में रोजगार बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कलाकार अपनी जिंदगी के रंगों से रंग निकाल मूर्तियों को तो सुंदर बना देता हे लेकिन खुद बेरंग हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक कलाकार पैसे का भूखा नहीं होता, बस उसकी यह चाहत रहती है कि उसकी कला की सराहना हो और काम मिलता रहे।