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गुप्तचरः दो साल की जद्दोजहद के बाद मेयर को मिला साहब का रुतबा, फैसलों पर लगने लगी मुहर

पार्षद चाहे कांग्रेस के थे या फिर विरोधी दल के सभी उन्हें मेयर के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। इससे मेयर बलकार सिंह संधू को फैसले लेने में काफी दिक्कत आ रही थी।

By Vikas KumarEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 02:26 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 02:26 PM (IST)
गुप्तचरः दो साल की जद्दोजहद के बाद मेयर को मिला साहब का रुतबा, फैसलों पर लगने लगी मुहर
गुप्तचरः दो साल की जद्दोजहद के बाद मेयर को मिला साहब का रुतबा, फैसलों पर लगने लगी मुहर

लुधियाना [अर्शदीप समर]। मेहनती, सादगी और स्वच्छ छवि वाले बलकार सिंह संधू को मेयर साहब बनने में करीब दो साल लग गए। शुरुआती दिनों में संधू से कोई भी पार्षद व अधिकारी मेयर समझकर बात नहीं करता था। पार्षद चाहे कांग्रेस के थे या फिर विरोधी दल के, सभी उन्हें मेयर के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे थे और पार्षद की तरह ट्रीट करते थे। इससे मेयर बलकार सिंह संधू को फैसले लेने में दिक्कत आई। उनका कांग्रेस विधायकों के साथ भी काफी विवाद रहा। दो साल की जद्दोजहद के बाद अब सभी ने संधू के फैसलों पर मुहर लगानी शुरू कर दी है। निगम के अधिकारियों ने भी अब मेयर को साहब मानना शुरू कर दिया है और अहम फैसलों पर उनके साथ चर्चा भी करने लगे हैं। पद तो पहले भी मेयर का ही था लेकिन अब रुतबा भी साहब वाला बन गया है।

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थाने पर नहीं सीपी पर विश्वास

ऐसा लगता है कि शहर में लोगों को थानों की पुलिस पर कम और पुलिस कमिश्नर (सीपी) पर ज्यादा विश्वास है। जब भी किसी के साथ कोई आपराधिक घटना होती है तो वह थाने की बजाए सीधी दौड़ सीपी दफ्तर की तरफ लगाता है। लोगों मानना है कि थाने में पुलिस वाले कोई कार्रवाई तो करते नहीं, मामला लटकाते हैं और 'खातेÓ भी हैं। लेकिन सीपी दफ्तर से जो शिकायत थाने में आती है उस पर तुरंत कार्रवाई होती है। चूंकि पुलिस वालों को बड़े साहब को जवाब जो देना होता है। सीपी राकेश अग्रवाल ने भी लोगों से सीधा राफ्ता कायम करने के लिए अपने दफ्तर में लगे शिकायत पत्र बाक्स को हटवा दिया है ताकि कोई भी शिकायतकर्ता बिना किसी बिचौलिये के सीधे उनसे मिल सके। अब बेचारे कुछ पुलिस वाले परेशान हैं क्योंकि उनकी 'दुकानदारीÓ जो बंद हो गई है।

ऐसे ही नहीं मिलती प्रधानी जनाब

पंजाब में सोनिया गांधी के कांग्रेस की सभी कमेटियां भंग करने देने के एलान के साथ ही नई कमेटियों में प्रधान पद पाने के तलबगारों में हलचल शुरू हो गई है।  फेसबुक इत्यादि पर तलबगारों के समर्थकों ने या यूं कहें कि नेताओं ने अपने-अपने चहेतों से प्रचार शुरू करवा दिया है। फोटो के साथ कैप्टन के चुनावी जुमले 'चाहूंदा है पंजाब कैप्टन दी सरकार' की तर्ज पर 'चाहूंदा है लुधियाना साड्डा लीडर बने प्रधान' की पोस्टें डाली जा रही हैं ताकि हाईकमान पर नेता जी को लुधियाना का प्रधान बनाने का दबाव बन सके। लेकिन पोस्ट डालने वाले शायद इस बात से अनभिज्ञ हैं कि यह कांग्रेस है, यहां प्रचार से कुछ हासिल नहीं होता। कुछ पाना है तो ऊपर तक पहुंच बनाना और हाईकमान की गुडबुक्स में आना जरूरी है। यहां नेता धरातल से चलकर नहीं आते, बल्कि पैराशूट से गिरते हैं।

क्या कहें, क्या ना कहें अकाली

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर शिरोमणि अकाली दल के नेता पूरी तरह कंफ्यूज्ड हैं। हालांकि शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने इस कानून में मुस्लिमों को शामिल न किए जाने का विरोध किया है लेकिन जिला स्तरीय कई नेताओं को समझ नहीं आ रहा कि उन्हें इस कानून के खिलाफ बयान देना है या फिर हक में। दिल्ली चुनाव में शिअद के बैकफुट पर आने के बाद यह असमंजस और बढ़ गया है। किसी भी नेता को पता नहीं चल रहा कि अगर कोई उनसे इस मामले पर चर्चा करे तो उन्हें क्या कहना है। अब चर्चा तो यही हो रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन कायम रहेगा या नहीं। शिअद ही नहीं, भाजपा नेताओं की स्थिति ऐसी हो गई है कि कोई उनसे गठबंधन या सीएए पर सवाल पूछ ले जैसे उन्हें सांप सूंघ जाता है।

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