Ludhiana Christmas Celebration 2020: औद्योगिक नगरी में चढ़ा क्रिसमस का रंग, लुधियाना में स्थित है पंजाब का पहला चर्च
Ludhiana Christmas Celebration 2020 क्रिसमस के अवसर पर लुधियाना जिले की एतिहासिक चर्चों को दुल्हन की तरह सजाया गया है लेकिन कोरोना वायरस के चलते सरकारी निर्देशों के अनुसार ही मानकों का पालन करते हुए प्रार्थना सभाएं होंगी।
लुधियाना, जेएनएन। पंजाब की औद्योगिक नगरी लुधियाना साइकिल एवं होजरी उद्योग के लिए विश्वविख्यात है, लेकिन शहर में ऐसे कई एतिहासिक चर्च हैं जो दशकों पुरानी यादों को समेटे हुए हैं। अंग्रेजों के जमाने के ये चर्च शहर की शान हैं और क्रिसमस के अवसर पर इनको दुल्हन की तरह सजाया गया है, लेकिन कोविड के चलते सरकारी निर्देशों के अनुसार ही मानकों का पालन करते हुए प्रार्थना सभाएं होंगी। पंजाब का पहला चर्च लुधियाना में वर्ष 1834 में शुरू हुआ। उस वक्त सतलुज दरिया के दूसरी तरफ महाराजा रंजीत सिंह का राज था, अंग्रेजों का उस वक्त लुधियाना ही आखिरी पढ़ाव था।
अंग्रेजी शासन में कई अफसर ईसाई थे, इसलिए सूबे का पहला चर्च प्रेस बिटेरियन स्थापित हुआ। आज भी यह चर्च शहर के मध्य में स्थापित है। क्रिश्चन मेडिकल कालेज के पास ब्राउन रोड पर कैलवरी चर्च के नाम से विख्यात है। इसके अलावा फव्वारा चौक के पास क्राइस्ट चर्च है। इसे भी वर्ष 1849 में ही अंग्रेजों के शासन काल में तैयार किया गया। पंजाब के पहले कैलवरी चर्च के निर्माण के वक्त वहां एक ही हाल होता था। इसमें एक पियानो होता था। इस पियानो के दो ही माडल थे, एक यहां और दूसरा शिमला की चर्च में था। वक्त के साथ चर्च ने भी आधुनिकता का जामा पहना। 1877 में इस चर्च में मिशन जुबली मेमोरियल टावर बनाया गया।
तीस अप्रैल 1972 में प्रेसबिटेरियन चर्च को कैलवरी चर्च का नाम दिया गया। चर्च के आधुनिकीकरण का काम वर्ष दो हजार में शुरू हुआ और दस साल तक चला। इस पर तीन करोड़ की लागत आई। कैलवरी चर्च में ही एक वैली चैपल बनी हुई है। इसे छोटे चर्च के तौर पर भी जाना जाता है। चर्च के राम दरबार ने कहा कि क्रिसमस के दिन चर्च केवल दो घंटे सुबह 11 बजे से 1 बजे तक खोली जाएगी। दो घंटे के लिए इस दिन प्रार्थना सभा होगी।
क्रिसमस से पहले होने वाले सभी कार्यक्रम कोविड-19 के चलते रद कर दिए गए थे। शहर के फव्वारा चौक में वर्ष 1849 में क्राइस्ट चर्च बनाया गया। अंग्रेज कैप्टन जेई क्राउंड्स की 1849 में मौत हो गई थी, उनकी याद में यह चर्च उनके रिश्तेदारों ने तैयार कराया था। चर्च की छतें अभी भी लकड़ी की बनी हुई हैं। इसके हाल में जेरूसलम-जहां यीशू मसीह का जन्म हुआ था, वहां से मंगवाई गई हैं। इस चर्च की छतें अभी भी लकड़ी की हैं, जोकि अंग्रेजों के शासन काल में भी हुआ करती थी।