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रोशनी मेले में सदियों बाद भी जल रहे हैं परंपराओं दीप

पंजाबी शुरू से ही दुनिया भर में बड़े खुलदिले व जोशीले माने जाते हैं। शायद इसी कारण पंजाब में वर्ष भर ही कहीं न कहीं मेले लगते रहते हैं। यह मेले पंजाब पंजाबी तथा पंजाबीयत की रूह है। पंजाब के इन मेलों में जगराओं के रोशनी मेले का अलग महत्व है। पंजाब के लोक गीत तथा बोलियां भी इस बात की गवाही भरते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 05:00 AM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 06:07 AM (IST)
रोशनी मेले में सदियों बाद भी जल रहे हैं परंपराओं दीप
रोशनी मेले में सदियों बाद भी जल रहे हैं परंपराओं दीप

हरविदर सिंह सग्गू, जगराओं : पंजाबी शुरू से ही दुनिया भर में जिंदादिल माने जाते हैं। शायद इसी कारण पंजाब में वर्ष भर ही कहीं न कहीं मेले लगते रहते हैं। यह मेले पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत की रूह है। पंजाब के इन मेलों में जगराओं के रोशनी मेले का अलग महत्व है। पंजाब के लोक गीत तथा बोलियां भी इस बात की गवाही देती हैं।

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'आरी-आरी-आरी विच जगरावां दे लगदी रोशनी भारी..' 24 फरवरी से शुरू होने वाले तीन दिवसीय मेले में देश भर से प्रसिद्ध कव्वाल सूफियाना कलाम पेश कर समां बांधते हैं। इनके साथ ही प्रदेश भर से कलाकार लोक गीत पेश करते हैं। जगह की कमी के कारण अब मेला स्थानीय डिस्पोजल रोड पर लगाया जाता है। मेले में लोग देश-विदेश से पहुंच 13 फाल्गुन को यहां चौकी भरते हैं। शरीरिक रोगों से मुक्ति पाने के लिए अरदास करते हैं। लोग सबसे पहले कमल चौक के नजदीक पीर बाबा मोहकमदीन की दरगाह पर माथा टेकते हैं। उसके बाद अड्डा रायकोट के नजदीक माई जीना की दरगाह पर माथा टेकने आते हैं।

मेले का ऐतिहासिक महत्व : जगराओं में मेला रोशनी का ऐतिहासिक पक्ष यह माना जाता है कि बादशाह जहांगीर के घर कोई औलाद न होने पर उसने यहां पीर बाबा मोहकमदीन की मजार पर पहुंच मन्नत मांगी तो उसके घर पुत्र पैदा हुआ। इस खुशी में उसने पीर बाबा मोहकमदीन की मजार पर दीप जलाए और साथ ही सारे शहर जगराओं में दीए जला कर रोशन किया। उस समय से यह मेला रोशनी शुरू हुआ। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। यह मेला सांझे पंजाब (आजादी से पहले) के समय सूफियों के नक्शबंदी फिरके की इबादतगाह थी।

पीर मोहकमदीन वली के साथ जुड़ा है मेला

रोशनी मेला पीर मोहकमदीन वली अल्ला के साथ जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि बाबा मोहकमदीन नैणी शहर, मनकाणा मुहल्ला, तहसील लोहियां जिला वल्टोहा के रहने वाले थे। रब्बी ईश्क उन्हें सरहिद ले आया और वह हजरत ख्वाजा अवाम साहिब (अमीन सरहंदी ) के मुरीद बन गए। हजरत ख्वाजा के उपदेश से मोहकमदीन ने रत्ती खेड़ा (फरीदकोट) में 12 वर्ष तक तपस्या कर मौन धारण किया। उसके पश्चात ख्वाजा के निर्देश पर पीर मोहकमदीन ने जगराओं के अगवाड़ गुज्जरां में डेरा लगा लिया। उसी स्थान पर पीर मोहकमदीन की कब्र पर यह मेला लगता है।

खत्म हो रहा मेले का आकर्षण

अब इस ऐतिहासिक मेले का आकर्षण कम हो गया है। स्थानीय प्रबंधक ढांचा और सरकार भी बराबर की जिम्मेदार है। जगराओं के बजुर्ग आज भी बूटा मुहम्मद तथा नगीने जैसे गाने वालों को याद करते हैं। इसके अलावा इन बुजुर्गो के मन में मेला रोशनी की यादें अभी भी घर किए हुए हैं। इस लिए आज समय की जरूरत है कि हम अपना अमीर विरसा ऐसे मेलों द्वारा संभाल कर रखें और मेले की शान बढ़ाएं। सदियों से पुरानी सब्जी मंडी जगराओं के नजदीक लगते इस मेले के लिए अब ढुकवां स्थान नहीं रहा। पुरानी सब्जी मंडी वाला क्षेत्र अब रिहाइशी और कमर्शियल हो चुका है और वहां पर मकान और दुकानें बन गई हैं। अब यह कुछ समय से डिस्पोजल रोड पर लगना शुरू हुआ है।


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