दमा के मरीजों का सांस लेना हो रहा मुश्किल, पंजाब में किसानों के इस कदम ने बढ़ाई परेशानी
किसान अपने फायदे के लिए सूबे में दमा पीड़ित मरीजों के लिए दिक्कत बनते जा रहे हैं। क्योंकि हर बार दमा पीड़ित मरीजों के लिए अप्रैल मई व जून महीना मुश्किलों भरा होता है।
जगराओं, [बिंदु उप्पल]। सूबे में धान की बीजाई 20 जून से होनी है ऐसे में सूबे के किसान अपने खेतों को अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए गेहूं की कटाई और तूड़ी बनाने के बाद सीधे हैप्पीसीडर की बजाय माचिस की तिल्ली जलाकर आग की चपेट में ला रहे हैं, ताकि उनके खेत 24 घंटों में अगली फसल के लिए तैयार हो जाएं।
किसान अपने फायदे के लिए सूबे में दमा पीड़ित मरीजों के लिए दिक्कत बनते जा रहे हैं। क्योंकि हर बार दमा पीड़ित मरीजों के लिए अप्रैल, मई व जून महीना मुश्किलों भरा होता है। इन दिनों खेतों में गेहूं की नाड़ जलाने से पर्यावरण में प्रदूषण की मात्र इतनी अधिक बढ़ी हुई है कि दमा के मरीजों को घरों में दुबके रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं दमा के मरीजों को अपने साथ 24 घंटे सांस लेने के लिए इन्हेलर रखना पड़ रहा है। आखिर सूबे में 27 दिनों में कितने खेतों में लगी आग, किसानों को कैसे कर रही जागरूक, दमा के मरीज क्या करें पर विभिन्न विभागों के प्रमुखों से बातचीत की तो आंकड़े बड़े चौंकाने वाले सामने आए कि जागरूकता के बावजूद किसान मनमर्जी कर रहे हैं और दमा के मरीजों की ओपीडी बढ़ रही है।
संगरूर व अमृतसर में अधिक जली नाड़
पीएयू रिमोट सैसिंग विभाग पंजाब के वैज्ञानिक डॉ. अनिल सूद ने बताया कि रिमोर्ट सैसिंग आंकड़ों अनुसार सबसे अधिक आग सगरूर, बच्ठडा, अमृतसर, गुरदासपुर व मानसा में सबसे अधिक गेहूं के खेतों की नाड़ को जलाया गया है। जिससे पर्यावरण पूरी तरह से प्रदूषित है। किसानों को अपने खेतों में आग नहीं लगानी चाहिए।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप