सुषमा दीदी मदद ना करती तो जेलों में कटती जिंदगी
अगर सुषमा दीदी मदद ना करती तो वह विदेशी की जेलों में जिंदगी काटनी पड़ती।
हरनेक सिंह जैनपुरी, कपू्रथला : फर्जी ट्रैवल एजेटों के चुंगल में फस कर कई महीनों तक आर्मीनिया के जंगलों में धक्के खाकर स्वर्गीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयासों से घर वापसी कर दोबारा जिदगी पाने वाले जिले के युवकों का कहना है कि अगर सुषमा दीदी मदद ना करती तो वह विदेशी की जेलों में जिंदगी काटनी पड़ती। लाखों रुपये ऐंठ कर एजेंट उन्हें सुनहरे भविष्य के सपने दिखा कर अर्मीनिया ले गए लेकिन आगे किसी यूरोपियन देश में पहुंचाने के बजाए उन्हें जंगलों में छोड़ दिया। पुलिस के हत्थे चढ़ कर वह जेल चले गए लेकिन वहां से वीडियो मैसेज कर विदेश मंत्रालय से गुहार लगाने पर सुषमा स्वराज ने उनकी हर संभव मदद करते हुए उन्हें घर वापस लाने का इंतजाम किया। वह और उनके परिवार सदैव स्वर्गीय सुषमा दीदी का आभारी रहेंगे। फरवरी 2019 में अर्मीनिया से लौटे भुलत्थ हलके के कस्बा नडाला के हरमनजीत सिंह तथा इब्राहीमवाल निवासी शमशेर सिंह एवं उसकी पत्नी पिकी ने बताया कि वह लोग चार नवंबर को अर्मीनिया के लिए गए थे। ट्रैवल एजेंट ने उन्हें 700-750 डालर वेतन दिलाने का सब्जबाग दिलाया था लेकिन उन्हें मात्र 300 डालर मिलता था। इसमें से सौ डालर कमरे का किराया और खाने में निकल जाता था जबकि एजेंट ने उनसे रिहाइश व खाना कंपनी की तरफ से देने का वादा किया था। उन्होंने बताया कि उनकी एजेंट एवं उसके भाई के रशिया माफिया से संबंध थे, जिस वजह से वह हर समय उन्हें डराते धमकाते रहते थे कि अगर अपने घर बात की तो उन्हें मार दिया जाएगा। इसके चलते उन्होंने डेढ़ दो महीने बड़ी मुश्किल से निकाले। कई बार भूखे भी रहना पड़ता था। उनमें से एक तो करीब एक माह तक बंधक की तरह रखा गया, जिसे उसके साथियों ने किसी तरह छुड़वाया और पासपोर्ट उनसे लेकर दिया। ट्रैवल एजेटों ने पैसे लेकर उन्हें आर्मीनिया में भूखे मरने के लिए छोड़ दिया था। किसी तरह उन्होंने वीडियो वायरल कर अपना संदेश हिदुस्तान पहुंचाया और मीडिया के माध्यम से मामला उजागर होने पर फौरी तौर पर विदेश मंत्री ने हरकत में आते हुए उन्हें सकुशल घर वापस पहुंचाने में अहम रोल निभाया। उक्त दंपति सहित दो युवक फर्जी एजेटों का शिकार होने के बाद अर्मीनिया में फस गाए थे। इन युवकों ने विदेश से वीडियो बनाकर मदद की गुहार लगाई थी। इसी तरह भुलत्थ तहसील के गांव मुरार का गुरबिदर सिंह राणा भी 39 भारतीयों के साथ इरान में अलकायदा के हत्थे चढ़ गया था, जिन्हें कई महीनों तक अलकायदा के अंतकियों की तरफ से बंदा बना कर रखा गया था। इन्हें वापस भारत लाने के लिए सुषमा स्वराज ने बेहद भरसक कोशिश की लेकिन ऐसा संभव नही हो सका। राणा के भाई दविदर सिंह ने बताया कि वह अपने भाई व अन्य भारतीय को वापस लाने के लिए अनेक बार सुषमा स्वराज से मिला और उन्होंने हमेशा उनके दर्द व पीड़ा को गंभीरता से लिया। अनेक अनथक प्रयास भी किए लेकिन अलकायदा वालों की तरफ से काफी समय पहले ही उनके भाई व अन्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। दविदर ने बताया कि सुषमा स्वराज जी ने उनके भाई के शव को वापस गांव लाने में बहुत मदद की जिससे वह सदैव उनके आभारी रहेंगे।
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