जब जलेगा ज्ञान रूपी दीप तो दूर होंगे सभी दुख : स्वामी सजनानंद
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से न्यू मॉडल टाउन हजारी लाल वाली गली फगवाड़ा स्थित आश्रम में साप्ताहिक सत्संग करवाया गया।
संवाद सूत्र, फगवाड़ा : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से न्यू मॉडल टाउन, हजारी लाल वाली गली, फगवाड़ा स्थित आश्रम में साप्ताहिक सत्संग करवाया गया। इसमें भगवान श्री आशुतोष महाराज की शिष्य स्वामी सजनानंद ने प्रवचन करते कहा कि जन्म से मृत्यु तक, बचपन से बुढ़ापे तक एक दौर निरंतर चलता है - सुख को पाने का।
अज्ञानता का शिकार व्यक्ति जीवन पर्यत क्या करता है। एक-एक सुख के तिनके को इकट्ठा करता है। सम्पूर्ण शक्ति और कीमती समय सुख के तिनके के लिए खर्च होता है। पर सुख के इस तिनके की तलाश में वह उलझन को बुनता चला गया।
धीरे-धीरे यह जाल इतना विशाल हो गया कि उसका कहीं छोर दिखाई नहीं दे रहा। सुख के तिनके की लालसा उसके जीवन में ढेरों दुखों को निमंत्रण देने लगी है। आखिर इसके पीछे कारण क्या है। उस कारण को अवश्य ही जानना होगा। क्योंकि आज प्रत्येक मानव के साथ यही घटित हो रहा है। इसका कारण और निवारण हमें तुलसीदास जी द्वारा रचित ज्ञानदीपक प्रसंग से स्पष्ट होता है।
वे इस प्रसंग में लिखते हैं कि अगर एक मनुष्य अंधेरे कमरे में एक गाठ को सुलझाना चाहे, तो क्या होगा। वह उस गाठ को सुलझाने की बजाय उसे और अधिक उलझा लेगा। परन्तु यदि उस कमरे में दीप जला दिया जाए, तो उस दीपक के प्रकाश में मनुष्य गाठ को शीघ्र ही सुलझा पाएगा। इसी प्रकार मनुष्य भी आज अज्ञानता रूपी अंधकार में विचरण कर रहा है।
इस अंधकार में वह सुख का तिनका ढूंढता फिर रहा है। परन्तु कैसे मिलेगा वह तिनका। असंभव इसलिए आवश्यकता है, दीप जलाने की अर्थात प्रकाश करने की। जब तक उसके हृदय में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित नहीं होगा, तब तक मनुष्य दुखों का अधिकारी रहेगा और जैसे ज्ञान का दीप भीतर आलोकित होगा, संत-असंत का भेद स्पष्ट दिखाई देने लगेगा।
सतसंग के पश्चात साध्वी सुश्री सिमरनजीत भारती और साध्वी सुश्री गरिमा भारती जी ने मधुर भजनों का गायन किया।