ढोल नगाड़ों के बीच कल जाएगी बाबे की बरात, सुल्तानपुर लोधी पहुंची संगत
बाबे दी बरात को लेकर सिख संगत में जबरदस्त उत्साह है। बरात कल सुल्तानपुर लोधी से बटाला के लिए रवाना होगी। देश विदेश से सिख संगत यहां पहुंच चुकी है।
कपूरथला (ओजस्कर पाण्डेय/हरनेक ङ्क्षसह जैनपुरी)। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही श्री गुरु नानक देव जी के विवाह की परंपरा आज भी कायम है। इस परंपरा को बाबे दा मेला या बाबे दा ब्याह के नाम से भी जाना जाता है।
श्री गुरु नानक देव जी की बटाला निवासी मूल चंद पटवारी की बेटी बीबी सुलक्खणी से विवाह हुआ था। बाबा की बरात सुल्तानपुर लोधी से बटाला गई थी जिसके कुछ समय पश्चात इस परंपरा का आगाज हुआ और यह आज तक कायम है।
विवाह पर्व को देखने के लिए सिख संगत देश-विदेश से नानक की नगरी सुल्तानपुर लोधी पहुंचती है। मान्यता है कि वर्ष 1487 में गुरुनानक देव बरातियों सहित सुल्तानपुर लोधी से सुभानपुर, बाबा बकाला से होते हुए बटाला पहुंचे थे। गुरु की बरात के बटाला में पहुंचने पर बटाला के लोगों तथा रिश्तेदारों के साथ अजिता रंधावा ने उनका स्वागत किया था। जिस स्थान पर बरात को ठहराया गया था, वह आजकल गुरुद्वारा श्री कंध साहिब के नाम से जाना जाता है। जिस जगह पर गुरु के फेरों की परंपरा निभाई गई, वह आजकल गुरुद्वारा डेहरा साहिब के नाम से प्रचलित है।
आज भी सुरक्षित है दीवार
कंध साहिब के बारे में कहा जाता है कि जिस समय गुरु की बारात को यहां पर ठहराया गया था, उस समय बारिश हो रही थी। वहीं एक कच्ची दीवार के नजदीक बाबा नानक को बैठना था। जब गुरु नानक दीवार के पास बैठे तो एक बुजुर्ग महिला ने उनसे कहा कि यह कंध (दीवार) कच्ची है और गिरने वाली है, इसलिए वे वहां से उठ जाएं। इतना सुनकर गुरु ने कहा कि माता यह दीवार तो युगों-युगों तक कायम रहेगी। वह कच्ची दीवार आज भी गुरुद्वारा कंध साहिब में शीशे के फ्रेम में सुरक्षित है।
देखें तस्वीरें : बाबे दा ब्याह के लिए सजा सुल्तानपुर लोधी
इस स्थान पर महाराजा नौनिहाल सिंह ने गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कराया था। इस गुरुद्वारे का नाम गुरुद्वारा कंध साहिब रखा गया। आजकल इस गुरुद्वारे का प्रबंधन शिरोमणि प्रबंधक कमेटी के पास है।
बुधवार की सुबह सुल्तानपुर लोधी से बटाला के लिए श्री गुरुनानक देव की बरात रुपी नगर कीर्तन रवाना होगी। श्री गुरुग्रंथ साहिब जी की छत्रछाया में नगर कीर्तन के रुप में आदि ग्रंथ को गुरु नानक देव जी के स्वरूप के रूप में प्रतीकात्मक तौर पर शामिल किया जाता है। इस बरात का विभिन्न स्थानों पर लोग बेहद श्रद्धा के साथ स्वागत करते हैं। इनके अलावा धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधि भी इस नगर कीर्तन का हिस्सा बनते हैं।
विवाह पर्व का इतिहास
श्री गुरुनानक देव जी अपनी बड़ी बहन बेबे नानकी जी के पास सुल्तानपुर लोधी रहने लगे तो वहां गुरु जी के जीजा जय राम जी ने इन्हें नवाब दौलत खां के मोदी खाने में काम पर लगवा दिया। यहां गुरु साहिब जी की सगाई हुई और सन 1487 को उनकी शादी हुई। गुरुजी की बरात में बादशाह से लेकर फकीर तक शामिल हुए, जिनमें से सुल्तानपुर लोधी के नवाब दौलत खां लोधी व राय भोए की तलवंडी के मालिक राय बुलार भी शामिल थे। बटाला की पवित्र धरती पर बरात का नेतृत्व शहर के गण्यमान्य लोगों ने किया, जिनमें परगने के प्रमुख अजिता रंधावा भी शामिल थे। बरात के ठहराने का प्रबंध गुरुद्वारा श्री कंध साहिब वाले स्थान पर किया गया और विवाह गुरु जी के ससुराल घर माता सुलक्खणी के जन्म स्थान जो कि गुरुद्वारा श्री डेहरा साहिब के नाम से प्रसिद्ध हुआ।