पर्यावरण हितैषी सोच के साथ उन्नत कृषि की राह पकड़ती पंजाब की युवा पीढ़ी
युवा पीढ़ी यदि एयरकंडीशंड दफ्तरों के बजाय खेतों की ओर आकर्षित हो तो यह बदलते भारत की सुखद तस्वीर है।
वंदना वालिया बाली/ शंकर सिंह, जालंधर/चंडीगढ़। युवा पीढ़ी यदि एयरकंडीशंड दफ्तरों के बजाय खेतों की ओर आकर्षित हो तो यह बदलते भारत की सुखद तस्वीर है। पंजाब में यह होते दिख रहा है। पर्यावरण हितैषी सोच संग उन्नत कृषि की राह पकड़ रही है युवा पीढ़ी। नई तकनीक और नई सोच वाले कई युवाओं को पंजाब की मिट्टी की महक मोहित कर रही है और उन्होंने कृषि को करियर के रूप में चुना है।
लॉ, आइटी से लेकर मार्केटिंग और बिजनेस की पढ़ाई के बाद इन क्षेत्रों में करियर बनाने के बजाय उन्होंने कृषि को अपनाया। ये युवा खेतों में पूरे जज्बे के साथ काम करते देखे जा सकते हैं। इससे कितनी कमाई हो रही है, उनके लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती है, उनको बस इस बात का सुकून है कि वे अपनी जड़ों से जुड़ कुछ बेहतर और सार्थक कर रहे हैं। जैविक कृषि इनका साधन है और पर्यावरण संग स्वस्थ समाज की नींव ध्येय। इसी से ही वे अपनी जरूरतें भी पूरी कर रहे हैं।
श्री मुक्तसर साहिब के पास स्थित गांव सोहनगढ़ रत्तेवाला निवासी कमलजीत सिंह हेयर पहले वकील थे। वह प्रति माह एक से डेढ़ लाख रुपये आसानी से कमाते थे। उन्होंने वकालत छोड़ खेती की राह पकड़ी। अब वह बीस एकड़ जमीन पर 120 किस्मों के पेड़, 60 तरह की फसलें, 50 से ज्यादा तरह की वनस्पति उगाते हैं। 50 से ज्यादा पशु उन्होंने पाल रखे हैं। रेन वाटर हारवेस्टिंग सिस्टम भी लगाया है। यहां वह सीमित पानी के उपयोग से जैविक खेती करते हैं। जीव-जंतुओं के मल-मूत्र से बायो गैस प्लांट भी काम करता है और वर्मी कंपोस्ट भी तैयार होती है।
चंडीगढ़ के मनवीर सिंह सेल्स एंड मार्केटिंग में काम करते थे। वह 2016 नौकरी छोड़कर कृषि में लग गए। मोहाली के गांव टीरा में उनका छोटा सा फार्म है, जिसमें वह ऑर्गेनिक तकनीक से हल्दी, शहद, मिर्ची, दालें और फल उगाते हैं। इस उपज को बेचने के लिए वह चंडीगढ़ मंडी आते हैं। इसी तरह चंडीगढ़ के सेक्टर 18 की मनजोत डोड लंदन में अकाउंटेंट की नौकरी छोड़ 2009 में भारत आईं। यहां वह अपने गांव में जैविक खेती कर रही हैं। मनजोत बताती हैं कि वे एक हफ्ते में 50 किलो से अधिक सब्जियां उगाती हैं, जिन्हें लोग खरीदने आते हैं। मोहाली के सत्ती बैदवान पेशे से कलाकार हैं। वह फतेहगढ़ स्थित फार्महाउस में ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हैं। वह इसमें ज्यादातर भिंडी, मूली, पत्ता गोभी, शलगम जैसी मौसमी सब्जियां उगाते हैं। हालांकि,लागत की तुलना में कमाई कम होती है, लेकिन सुकून बहुत है।
एक नई इबारत लिख रहे इन युवाओं के अलावा कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं, जिन्हें जिंदगी के कुछ कटु अनुभवों ने कृषि, खासकर जैविक कृषि की ओर प्रेरित किया। कमलजीत सिंह हेयर पांच साल पहले वकालत छोड़ कर खेती अपनाने के फैसले के बारे में बताते हैं कि कीटनाशकों से दूषित खाद्य पदार्थों से सेवन से परिवार में हुई दो मौतों ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया। शुरू में वकालत के साथ-साथ जैविक खेती करने लगे, फिर 2015 में पूरी तरह खेती को अपना लिया। अब वे अपने इस फार्म को ही लोगों के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित कर ईको टूरिज्म शुरू करना चाहते हैं।
मनजोत कौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, वह बताती हैं कि शहर से बीकॉम करके लंदन में सीए की तैयारी कर रही थी। वर्ष 2003 में उनकी बड़ी बहन की कार हादसे में मृत्यु हो गई। वह लंदन से भारत वापस आईं। कहती हैं, सोचा जिंदगी पता नहीं कितने दिन की है, इसलिए वही करो जिससे मन को खुशी मिलती है। इसके बाद वापस लंदन गई और सीए की पढ़ाई के बाद कुछ साल नौकरी भी की। इस दौरान लाइफ स्टाइल काफी बिगड़ गया था। जंक फूड ने सेहत पर बुरा असर डाला और कई बीमारियां भी हो गईं। वर्ष 2006 में ब्रेक लेकर भारत आई। पुद्दूचेरी के बॉटेनिकल गार्डन से ऑर्गेनिक फार्मिंग सीखी और फिर ऑर्गेनिक फार्मिंग (जैविक कृषि) शुरू कर दी।