Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बख्शीश सिंह दे गए सीख- बीमारी से क्या मरना, देश पर कुर्बान हो या खेल के मैदान में अंतिम सांस लो

    By Pankaj DwivediEdited By:
    Updated: Fri, 22 Nov 2019 09:16 AM (IST)

    गांव जल्लोवाल के बख्शीश सिंह ने जवानी दौड़ में कई पदक जीते और फिर सेना में भर्ती हो गए। वर्ष 1982 में सेना से सेवामुक्ति के बाद वह पूरी तरह खेल के लिए समर्पित रहे।

    बख्शीश सिंह दे गए सीख- बीमारी से क्या मरना, देश पर कुर्बान हो या खेल के मैदान में अंतिम सांस लो

    संगरूर/होशियारपुर[मनदीप कुमार/हजारी लाल]। गांव जल्लोवाल (होशियारपुर) के वेटरन धावक बख्शीश सिंह अब नहीं रहे। मंगलवार को उन्होंने संत अतर सिंह के तपस्थान मस्तुअाना साहिब (संगरूर) में हुई मास्टर एथलेटिक्स चैंपियनशिप दौरान 1500 मीटर की दौड़ जीत ली थी। रिलैक्स होते समय उन्हें हार्ट अटैक पड़ गया और उन्होंने प्राण त्याग दिए। वह 77 वर्ष के थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वह कहते थे- बीमारी से मरना भी कोई मरना है। या तो जान देश के लिए कुर्बान होनी चाहिए या फिर खेल के मैदान में अंतिम सांस अानी चाहिए। किसे मालूम था कि उनके ये शब्द सच साबित होंगे। मैदान से उन्हें सिविल अस्पताल संगरूर ले जाया गया था, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत लाया घोषित कर दिया। होशियारपुर की टीम की अगुअाई करने वाले बख्शीश सिंह अपनी टीम का लगातार हौसला बढ़ाते रहते थे।

    संगरूर में वेटरन दौड़ शुरू होने से पहले बख्शीश सिंह और अन्य प्रतिभागी। दौड़ जीतने के बाद उन्हें हार्ट अटैक पड़ गया था।

    बख्शीश के साथी एसपी सिंह ने बताया कि शुक्रवार रात वे दोनों एक ही कमरे में ठहरे थे। रात को बख्शीश सिंह अगले दिन की दौड़ के लिए खुद की टांगों पर मालिश करने में जुटे हुए थे। जब उन्होंने कहा-बख्शीश जी मालिश तो सुबह भी कर लेंगे। रात को दौड़ नहीं लगानी है आप सो जाएं, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था- सैनिक को जंग व धावक को दौड़ के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए। सुबह उठकर उन्होंने साथ में नाश्ता किया और फिर मैदान में पहुंच गए।

    बख्शीश सिंह ने होशियारपुर टीम के खिलाड़ियों को इकट्ठा किया अौर सभी को पूरी मेहनत से एथलेटिक्स मुकाबलों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वह अक्सर अन्य बुजुर्गों से भी कहा करते थे कि घर पर बैठकर अपना शरीर व समय खराब न करें। घरों से बाहर निकलें अौर सैर करें या दौड़ लगाएं। इससे न केवल शारीरिक तौर पर फिट रहेंगे, बल्कि बीमारियां भी दूर रहेंगी। किसी अस्पताल में मरने से तो अच्छा यह है कि खेल के मैदान में दौड़ते-दौड़ते जान निकल जाए।

    खेल के मैदान में खपा दिया सारा जीवन

    उनके रिश्तेदार महेंद्र सिंह ने बताया कि बख्शीश सिंह पूरी जिंदगी खेल के मैदान से जुड़े रहे। जवानी में उन्होंने दौड़ में कई पदक जीते अौर फिर सेना में भर्ती हो गए। सेना से सेवामुक्ति के बाद वह वर्ष 1982 से पूरी तरह खेल के लिए समर्पित रहे। उन्होने 800 मीटर, 1500 मीटर, 5 हजार मीटर दौड़ में कई स्वर्ण पदक जीतें। वह नेशनल, राज्य स्तरीय मुकाबलों में 200 से अधिक स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक अपने नाम कर चुके थे। उनकी उपलब्धियों के लिए लोग उन्हें गोल्डन मैन बुलाते थे।

    गोल्डन मैन के जीवन का आधार था शाकाहार

    बख्शीश सिंह आजीवन शाकाहारी रहे। उन्होंने कभी मांसाहार को हाथ नहीं लगाया था। शाकाहारी भोजन और कड़ी कसरत से जिस उम्र में लोग ठीक से चलने के लिए तरसते हैं, उस उम्र में वे फर्रादेदार दौड़ लगाते थे। वेटरन दौड़ में अनगिनत गोल्ड मेडल अपने नाम करने के कारण उन्हें जल्लोवाल के गोल्डन मैन के रूप में भी जाना जाता है। 

    बख्शीश के बेडरूम में मेडलों का भंडार है। घर में मौजूद उनकी बेटी डॉ. खुशवंत कौर पूछने पर तपाक से कहती हैं कि क्या बताऊं कितने मेडल जीते हैं। दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं- खुद देख लीजिए। नेशनल और इंटर स्टेट में उन्होंने करीबन दो सौ मेडल अपने नाम किए थे।

    अपने पिता बख्शीश सिंह के जीते मेडल दिखाती हुईं उनकी बेटी डॉ. खुशवंत कौर।

    5 किलो शहद, पिन्नी, पंजीरी व एक घंटा दौड़ थे सेहत का राज

    इतनी उम्र में सेहत का राज पूछने पर बेटी ने बताया कि पिता ने खान-पान के उसूल बना रखे थे। वह साल में पांच किलोलीटर शहद पीते थे। दूध के साथ दो पिन्नी, पंजारी भी उनकी दिनचर्या में शुमार थे। दो टाइम हरी सब्जियों व दाल के साथ भोजन करते थे। सोने से ज्यादा वह कसरत को तरजीह देते थे। रात में जल्द सोने के बाद वह तड़के तीन बजे उठ जाते थे। नितनेम रोज की आदत थी। उसके बाद गुरुद्वारा साहिब जाना। फिर, आंधी या बारिश से बेपरवाह होकर तड़के एक घंटे दौड़ जरूर लगाते थे। दिन में वह तीन से चार घंटे खेतों में भी काम करते थे। वह लोगों को दौड़ के लिए प्रेरित करते रहते थे। उनकी प्रेरणा से पड़ोस के गांव सहोलता में हर साल मैराथन करवाई जाती है।

    वेटरन दौड़ में हिस्सा लेते हुए बख्शीश सिंह की एक पुरानी तस्वीर।

    भाई ने कहा- बचपन से दौड़ने का शौक

    भाई की मौत की खबर सुनकर अमेरिका से आए रिटायर्ड पुलिस इंस्पेक्टर बलविंदर सिंह ने कहा कि दौड़ तो उनके बड़े भाई की जिंदगी का हिस्सा थी। बचपन से ही उन्हें इसका शौक था। भतीजे तीर्थ सिंह ने कहा कि ताया को देसी नुस्खा बहुत अच्छा लगता था। वह खाली तो कभी बैठते ही नहीं थे। बर्जिश के नाम पर कुछ न कुछ हमेशा करते रहते थे। बख्शीश सिंह के बेटे मनमीत सिंह व बहू राजिंदरजीत टोरंटो (कनाडा) में रहते हैं। वे आजकल घर आए हुए हैं। दोनों ने बताया कि उन्हें अगले साल में जून में कनाडा में होने वाली वेटरन दौड़ में भाग लेना था, मगर कुदरत को और ही मंजूर था।

    बख्शीश सिंह की पत्नी रिटायर्ड टीचर गुरमीत कौर ने बताया कि संगरूर जाते समय कह कर गए थे कि लौटने के बाद गेंहूं की बिजाई करूंगा। बिजाई के लिए खेत की तैयारी कर रखी थी पर होनी को कुछ और ही मंजूर था।

    दुनिया भर में झंडे गाड़ चुके हैं पंजाबी धावक मिल्खा सिंह, फौजा सिंह और मान कौर

    धावक मिल्खा सिंह, फौजा सिंह और मान कौर ने दुनिया भर में पंजाब का नाम रोशन किया है।

    पंजाब के खिलाड़ी देश-दुनिया में भारत का नाम रोशन करते रहे हैं। सूबे ने दौड़ में भी एक से एक बड़े सितारे दिए हैं। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह ने बुधवार को ही अपना 90वां जन्म दिन मनाया है। ब्यास पिंड (जालंधर) में जन्म 108 वर्षीय फौजा सिंह पूरी दुनिया में सबसे उम्रदराज मैराथन धावक के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। वर्तनान में वह यूके के सिटीजन हैं। 103 वर्षीय मान कौर भी वेटरन रेस में विश्व भर में पंजाब का नाम रोशन कर चुकी हैं। उन्होंने वर्ष 2017 में ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) में 100 मीटर दौड़ सहित कुल चार गोल्ड मेडल जीते हैं। खास बात यह है कि उन्होंने 93 वर्ष की उम्र में दौड़ लगाना शुरू किया था। उन्हें 'मिरैकल ऑफ चंडीगढ़' (Miracle of Chandigarh) भी कहा जाता है।

     

     

     

     

    हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

     

    comedy show banner
    comedy show banner