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सर्वधर्म सद्भाव की अनूठी मिसाल: इस्लाम के उपासक यूनुस सहेज रहे श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ अंग

बटाला में 17वीं सदी में लिखे गए श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप के अंगों को इस्लाम धर्म के उपासक मोहम्मद नेयाज यूनुस सहेज रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 10:43 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 06:03 PM (IST)
सर्वधर्म सद्भाव की अनूठी मिसाल:  इस्लाम के उपासक यूनुस सहेज रहे श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ अंग
सर्वधर्म सद्भाव की अनूठी मिसाल: इस्लाम के उपासक यूनुस सहेज रहे श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ अंग

बटाला [विनय कोछड़]। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में जयपुर जिले के बगरू निवासी डॉ. फिरोज खान के सहायक प्रोफेसर पद पर चयन को लेकर जहां बीते समय में हंगामा बरपा हुआ था, वहीं पंजाब में सर्वधर्म सद्भाव की एक अनूठी कहानी लिखी जा रही है। भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे गुरदासपुर जिले के ऐतिहासिक कस्बे बटाला में 17वीं सदी में लिखे गए श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप के अंगों को इस्लाम धर्म के उपासक मोहम्मद नेयाज यूनुस सहेज रहे हैं।

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यूनुस भारतीय पुराततत्व सर्वेक्षण में आर्ट रिस्टोरर (कला की संभाल करने वाला) रह चुके हैं। वह इस कार्य में चार साल से लगे हैं। 60 फीसद काम हो चुका है। सभी अंगों को सहेजने में चार साल और लगेंगे। बटाला के उमरपुरा में बाबा अजीत सिंह के आवास पर स्थित श्री सच्चखंड में दुर्लभ स्वरूप को सहेजने का काम चल रहा है। युनूस रोज आठ घंटे इस काम में जुटे रहते हैं।

गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप के अंग।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप खराब हो चुके थे। कुछ पेज तो पाउडर की तरह हो गए थे। इन स्वरूपों को पहले तो प्राकृतिक पदार्थों के द्रव्य और पानी से स्नान करवाया गया। स्वरूप के अंग इतने पुराने हो चुके हैं कि इनका एक-एक शब्द दोबारा जोड़ना पड़ रहा है। युनूस का कहना है कि जिस लिपि का श्री गुरु ग्रंथ साहिब के इस स्वरूप में इस्तेमाल किया गया है, वह 17वीं सदी में लिखी जाती रही है।

जर्मनी से मंगवाया गया पेपर, जिस पर दुर्लभ स्वरूप के अंगों को जोड़कर चिपकाया जा रहा है।

श्री अकाल तख्त साहिब ने दी थी स्वरूप को सहेजने की अनुमति

जत्थेदार अजीत सिंह (यूके वाले) को वर्ष 2015 में दिल्ली के एक सिंधी परिवार ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का यह दुर्लभ स्वरूप सौंपा था। स्वरूप को सहेजने के लिए उन्होंने श्री अकाल तख्त साहिब से संपर्क किया। यहां पांच जत्थेदारों ने उन्हें इन दुर्लभ स्वरूपों को सहेजने की अनुमति दे दी।

गुरु ग्रंथ साहिब को ढंकने वाला पुराना रुमाला साहिब।

मेरे लिए सौभाग्य की बात

नेयाज युनूस का कहना है कि जत्थेदार अजीत सिंह ने उनके सामने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप को सहेजने का प्रस्ताव रखा। पवित्र ग्रंथ के दुर्लभ स्वरूप को सहेजना मेरे लिए सौभाग्य है। यह एक चुनौतीपूर्ण काम है। स्वरूप के अंगों को हाथ लगाने पर झड़ जाते हैं। शब्दों को फिर से उसी Rम में लगाना बहुत मुश्किल है।

जांच के लिए राष्ट्रपति भवन से भी आए अधिकारी

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दुर्लभ स्वरूप की जांच के लिए राष्ट्रपति भवन से भी अधिकारी आ चुके हैं। टीम के सदस्य डॉ. एसपी सिंह भी इस काम की सराहना कर चुके हैं।

1.30 करोड़ आया अब तक खर्च, जर्मनी से मंगवाया पेपर

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप को सहेजने पर अब तक एक करोड़ 30 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। यह खर्च जत्थेदार अजीत सिंह (यूके वाले) और नवाज चेरिटेबल ट्रस्ट बटाला उठा रहे हैं। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में रहने वाले लोग भी इस काम में उनकी वित्तीय मदद कर रहे हैं। स्वरूप में लिखे शब्दों को दोबारा पिरोने के लिए पेपर जर्मनी से मंगवाया गया है।

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