इस स्कूल की हर क्लास में जुड़वा बच्चे, पहचान के लिए टीचर भी खा जाते हैं धोखा
कपूरथला स्थित श्री गुरु हरकिशन पब्लिक स्कूल में लगभग हर कक्षा में जुड़वां बच्चे हैं। इनकी पहचान करना कई बार टीचरों को भी मुश्किलों भरा होता है।
जालंधर [वंदना वालिया बाली]। ‘एक से भले दो’, ये सुनने में भले ही बड़ा भला सा एहसास दे जाता है लेकिन कैसा हो अगर दोनों दिखने में हों बिल्कुल एक जैसे? कुछ ऐसी ही मजेदार स्थितियों से दो-चार होने का मौका मिलता है कपूरथला के एक स्कूल में, जहां लगभग हर कक्षा में मौजूद हैं जुड़वां बच्चों की जोड़ी।
‘सीता और गीता’, ‘राम और श्याम’, ‘चालबाज’, ‘जुड़वा’, ‘अंगूर’ आदि तमाम फिल्में आपने जरूर देखी होंगी जिनमें जुड़वां भाइयों या बहनों के हमशक्ल होने के कारण अनेक मजेदार पल बनते हैं। इन दिनों टीवी पर चल रहे शो ‘इंडियाज बेस्ट जुड़वां’ तथा जल्द रिलीज होने वाली ‘जुड़वां-2’ के कारण भी जुड़वां बच्चों की चर्चा जोरों पर है। रील लाइफ में तो इनके किस्से रोमांचक और रोचक होते ही हैं लेकिन आज आपको रियल लाइफ के जुड़वां बच्चों से जुड़े एक अनोखे स्कूल में ले चलते हैं। यहां इनकी पहचान के कारण टीचर्स को भी देना पड़ता है अनोखा टेस्ट।
गोलमाल है सब
पंजाब के कपूरथला स्थित श्री गुरु हरकिशन पब्लिक स्कूल में लगभग हर कक्षा में जुड़वां बच्चे हैं। स्कूल की प्रिंसिपल देविका भल्ला बताती हैं कि यह महज इत्तेफाक है कि पिछले सेशन तक हमारी हर क्लास में जुड़वां जोड़ा था। इस साल 12वीं के सिद्धार्थ और सुर्भित पासआउट हो गए हैं तो आठवीं में पढ़ने वाले जुड़वा बच्चे पेरेंट्स के ट्रांसफर के कारण स्कूल छोड़ गए। बाकी हर क्लास में जुड़वां बच्चे हैं। कुछ जुड़वां भाई-बहन होने के कारण आसानी से पहचाने जाते हैं लेकिन अनेक ऐसे भी हैं जिनकी पहचान के लिए शिक्षकों की भी परीक्षा हो जाती है। कई बार ‘मिसटेकन आइडेंटिटी’ के कारण वे स्वयं हतप्रभ रह जाती हैं तो कभी अपनी ही गलती पर मुस्कुरा देती हैं।
करे कोई भरे कोई
अध्यापिका नवनीत बताती हैैं, ‘क्लास में पढ़ने वाले भाई मनराज और मेहताब की शक्ल बिलकुल एक सी है। इन्हें पहचानने के लिए कोई निशानी ढूंढ पाना भी कठिन हो जाता है। इसलिए मैं किसी कंफ्यूजन में न पड़ते हुए पहले ही उनके आई कार्ड चेक कर लेती हूं। इन दोनों की पहचान को लेकर स्टूडेंट्स भी कंफ्यूज ही रहते हैं। वे दोनों बेहद शरारती हैं। कई बार एक शरारत करता है तो डांट दूसरे को पड़ जाती है।’
इसी प्रकार नर्सरी क्लास की टीचर पूनम बताती हैं, ‘सिमरत और निमरत की सूरत इतनी मिलती है कि पहचानना कठिन हो जाता है। एक बार इनमें से एक बहन ने अपना टिफिन गिरा दिया और वो खुद दूसरी सीट पर जाकर बैठ गई। मैं उनके पास पहुंची तो डांट उस बहन को पड़ गई जिसका कसूर था ही नहीं। बाद में मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ।’
तिल है निशानी
पांचवीं कक्षा की जसमीत कौर और सुखमनप्रीत कौर की सूरत बिलकुल एक सी है। इसलिए इनकी पहचान के लिए पहले तो अध्यापिकाओं को इनके पैरेंट्स से ही मदद लेनी पड़ी। उन्होंने इनकी मां से एक के बालों में विशेष क्लिप लगाकर भेजने का निवेदन किया। अब टीचर्स को कुछ पहचान हो गई है। दरअसल अब जसमीत के चेहरे पर एक तिल उभर आया है लेकिन उसे देखने के लिए पास जाना पड़ता है।
जुड़वा बच्चे।
पहचान बताए पगड़ी
आठवीं कक्षा के विद्यार्थी कंवरदीप सिंह और अमनदीप सिंह की पहचान को लेकर भी शिक्षकों को खासी मशक्कत करनी पड़ती थी। इसलिए अब इन्होंने अपनी पगड़ी का स्टाइल ही अलग कर लिया है। इनकी टीचर कोमलप्रीत कौर बताती हैैं, ‘पहले तो इन दोनों भाइयों को पहचानना टेढ़ी खीर था। मैं तो दोनों को ही खड़ा कर लेती थी और फिर उन्हीं से पूछ लेती थी कि कौन सा भाई कौन है?’
एक चुस्त, दूजा सुस्त
शिक्षक अजय आनंद बच्चों के व्यक्तित्व के हिसाब से पहचान करते हैं। वे बताते हैं, ‘मेरी क्लास में जुड़वां दिलराज तथा सुखराज हैं। इनमें से एक चुस्त है तो दूजा सुस्त। दिलराज अक्सर सुखराज के हिस्से का भी खाना खा जाता है और मुझे यह जानने में दिक्कत होती है कि किसने किसका लंच खा लिया है?’
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