जालंधर के युवाओं को है थियेटर से काफी प्यार, देश-विदेश में कमा रहे नाम
थिएटर एक ऐसा मंच है जिससे कोई एक बार जुड़ जाए फिर वह इससे कभी दूर नहीं हो पाता। अगर कुछ बदलता है तो वह है रंगमंच का तरीका और स्थान।
जालंधर [भावना पुरी]। थिएटर एक ऐसा मंच है जिससे कोई एक बार जुड़ जाए फिर वह इससे कभी दूर नहीं हो पाता। अगर कुछ बदलता है तो वह है रंगमंच का तरीका और स्थान। बात हम शहर की करें तो यहां भी युवाओं की थियेटर के प्रति रुचि कहीं कम नहीं हुई है। शहर ने कई ऐसे आर्टिस्ट दिए हैं, जिन्होंने देश-विदेश में अपना नाम बनाया है। यह वह दौर था जब थियेटर वालों की दुनिया थियेटर तक सीमित होती थी। नाटक उनके लिए सांसे थीं जो दिल की धड़कनों के साथ धड़कती थी। कलाकार कला के प्रति समर्पित था। परिवार, समाज के दबाव के बीच रंगमंच से प्यार करता था। जीवन जीने के लिए पैसे की अहमियत को पीछे छोड़ रंगमंच के प्रति पूरी तरह समर्पित था।
हालांकि कुछ थियेटर से प्यार करने वाले अभी भी ऐसे हैं, लेकिन आज का दौर चकाचौंध से भर गया है। घासफूस की से भरी स्टेज की जगह अब रंग-बिरंगी रोशनियों ने ले ली है, अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अभिनय। बता दें कि जालंधर में कलाकारों के लिए सबसे पुराना मंच विरसा विहार ही था। यहां बड़े-बड़े कलाकारों ने अपने अभिनय और प्रतिभा की प्रस्तुति दी। लेकिन अब केएल मेमोरियल हाल वो जगह बन गई है जहां युवाओं के लिए रंगमंच मॉडर्न स्टाइल से सजाया गया है। स्टाइलिश कपड़े, टैक्नीकल इफेक्ट्स, स्टाइलिश एंड क्विक चेंजिंग बैकग्राउंड, कलरफुल लाइटनिंग मॉडर्न दौर को दर्शाती है।
अभिनय के लिए खासतौर पर पढ़ाई करते हैं युवा
युवाओं के लिए थियेटर के प्रति प्यार और स्मर्पण जालंधर में काफी देखने को मिला है। पढ़ाई के साथ युवा थियेटर से जुड़ते हैं। कई बार तो सिर्फ थियेटर के लिए पढ़ाई को नजरअंदाज कर देते हैं। एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट थियेटर के प्रोफेसर गुरप्रीत सिंह ने बताया कि युवाओं का झुकाव देखकर उन्हें 50 फीसद थ्योरी और 50 फीसद प्रेक्टिकल शिक्षा दी जाती है।
लड़कियां चाहकर भी नहीं दिखा पातीं प्रतिभा
एपीजे कॉलेज के 22 स्टूडेंट्स टीवी और फिल्म लाइन में काम करने के लिए थियेटर की पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें केवल 1 लड़की है। इसके अलावा अन्य कोर्सेस में पढ़ाई कर रही लड़कियां थियेटर का हिस्सा बनती हैं। लड़कियों ने बताया कि उनका झुकाव थियेटर और एक्टिंग की लाइन में काफी ज्यादा है, लेकिन पेरेंट्स उनका साथ नहीं देते। किसी के पेरेंट्स उनका साथ देने की कोशिश भी करें तो रिश्तेदार की बातों की वजह से पीछे हट जाते हैं। बीए की छात्रा ने बताया कि यहीं वजह है कि वह बीए की पढ़ाई करके थियेटर के साथ जुड़ी हुई है। दूसरा शर्म और स्टाइल स्टेटस की वजह से लड़कियां इस फील्ड में आगे कम आती हैं। उन्हें सीधे कैमरा के आगे आना पसंद होता है, लेकिन बेसिक थियेटर सीखना पसंद नहीं होता।
'युवा' थियेटर में 20 युवाओं की टीम
युवा थियेटर के 20 युवाओं की टीम को डॉ. अंकुर शर्मा ने संजोकर रखा है। दोआबा कॉलेज के ओपन एयर थियेटर में नाटक मंचन करने वाले युवा पढ़ाई के बाद भी थियेटर से जुड़े रहने के लिए आतुर थे। तब 2007 में डॉ. अंकुर युवा रंगमंच को रजिस्टर करवाया और देश भगत यादगार हॉल में नाटक मंचन करने लगे। इसके बाद बंद पड़ी फैक्टरी को युवाओं ने साफ किया और वहीं रिहर्सल शुरू की। फिर केएल सहगल मेमोरियल हॉल में रिहर्सल शुरू की। अंकुर बताते हैं कि जब हम थियेटर से जुड़े तब जालंधर के कल्चर में थियेटर काफी कम था, लेकिन मेट्रो सिटीज में देखकर लगा कि थियेटर का लेवल अब ऊंचा कर देना चाहिए। इसके बाद हमने नामी लेखकों के नाटकों पर प्ले करना शुरू किया और सीटें को पेड कर दिया, ताकि ऑडियंस और बेहतर मिल सके तथा रूल्स और रेगुलेशन के साथ नाटक को देखे। इस ग्रुप के साथ केवल जालंधर के ही नहीं उत्तराखंड का युवा भी जुड़े हैं। उत्तराखंड से आकर जालंधर में बसे विक्रम ठाकुर ने युवा के कलाकारों में पहचान स्थापित की है।