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अंग्रेजी हुकुमत के इतिहास को संजोए हुए है लाडोवाली रोड स्कूल, 1872 में हुई थी स्थापना; जे बास्टन थे पहले हेड मास्टर

1872 में यह स्कूल एडिड स्कूल के तौर पर अपनी पहचान बनाए हुए थे। अंग्रेज जे बास्टन इसके पहले हेड मास्टर थे। 1883 तक यह स्कूल एडिड एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल स्कूल के रूप में चला और 1886 में इसे बदल कर म्युन्सिपल एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल का दर्जा दिया गया।

By Vinay KumarEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 08:36 AM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 09:58 AM (IST)
जालंधर के लाडोवाली रोड के स्कूल का मुख्य गेट। (जागरण)

जालंधर [अंकित शर्मा]। अंग्रेजी हुकुमत के समय के इतिहास को संजोए हुए है जालंधर के लाडोवाली रोड का स्कूल। 1872 में यह स्कूल एडिड स्कूल के तौर पर अपनी पहचान बनाए हुए थे। तब अंग्रेज जे बास्टन इसके पहले हेड मास्टर थे। बता दें कि तब यह अंग्रेजी हुकुमत का बोर्डिंग स्कूल हुआ करता था। 1880 में इसे सरकारी वर्नाकुलर हाई स्कूल का दर्ज मिला। 1883 तक यह स्कूल एडिड एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल स्कूल के रूप में चला और 1886 में इसे बदल कर म्युन्सिपल एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल का दर्जा दिया गया। स्कूल में 21 सालों की सेवा करने के बाद हेड मास्टर जे वास्टन की ट्रांसफर दिल्ली हो गई थी।

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सरकारी मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड डेढ़ सौ साल बाद कोएड हो गया। शिक्षा विभाग की तरफ से इससे मंजूरी दे दी गई है। तब शुरूआति समय में अंग्रेज सरकार ही हेडमास्टर लगाया करती थी, जिसमें जेडब्ल्यू वाउटरज 1903 से 1904 तक, टीआर ब्रुक्स 1904 से 1905 तक सेवाएं देते रहें। उस समय यहां हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा को भी तरजीह दी जाती थी। उनके बाद गोकलचंद को जिम्मेदारी दी गई और उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत के अधीन होते हुए भी 1912 में इनोवेशन व ट्रेनिंग देकर विद्यार्थियों को स्किल्स भरने का उद्देश्य रखते हुए ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया गया था। जिसके बेहतर परिणाम आने के बाद आठ साल बाद यानी कि 1920 में एग्रीकल्चर सेंटर शुरू किया गया।

पीईएस बीएससी श्याम चंद्र जैन ने 29 जनवरी 1923 को हेड मास्टर का पदभार संभाला और इसमें तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद इसमें नए होस्टल का निर्माण किया और तीन क्लासरूम भी बनवाए। तब स्कूल दो मंजिला बिल्डिंग के रूप में खड़ा होने लग पड़ा था। उन्होंने ही 1926 में स्काउटिंग और स्कूल को-आपरेटिव स्टोर भी शुरू कराया था। 1926 में मैनुअल तरीके से एग्रीकल्चर की ट्रेनिंग शुरू कराई और 1928 में पूरे स्कूल में बिजली की सप्लाई शुरू हुई। हेड मास्टर वीर खुर्शीद के समय में 1931 में स्कूल के 200 विद्यार्थी लाहौर नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे का हिस्सा बने थे।

अपने ही शहीद छात्र का दिल्ली के अमर जवान की तरह शहीदी स्मारक

चार साल पहले देश का ऐसा पहला स्कूल बना, जहां अपने ही शहीद छात्र लखबीर का दिल्ली के अमर जवान की तर्ज पर शहीदी स्मारक बना हुआ है। आईटीबीपी में कांस्टेबल लखबीर के नाम पर ही स्कूल का नाम अंकित किया हुआ है। यही नहीं इसी स्कूल में पंजाब का पहला जूडो सेंटर बना हुआ है, जहां से देश व विदेश तक खेल कर खिलाड़ी निकले हैं।

अंग्रेजी हुकुमत के समय इन हेडमास्टरों का रहा बहमूल्य योगदान

केदारनाथ हेड मास्टर 1901 से 1903

जेडब्ल्यू वाउटरज 1903 से 1904

टीआर ब्रुक्स 1904 से 1905

गोकल चंद 1905 से 1915

नारायण दास 1915 से 1918

रामनाथ 1918 से 1920

हुकमचंद 1920 से 1921

अमरचंद 1921 से 1923

श्याम चंद जैन 1923 से 1930

वीर खुर्शीद हसन 1931

स्कूल के एलुमनाई

पूर्व सांसद मोहिदर सिंह केपी, एसएसपी फिल्लौर दविदर सिंह गरचा, भुटानी चाइल्ड अस्पताल के डॉ. मनजीत सिंह भुटानी, डॉ. सुरिदर शारदा, रिटायर्ड डीईओ हरिदर साहनी, इंडस्ट्रलिस्ट जोगिदर सिंह, डॉ. एसएस ग्रोवर आदि।


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