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जयंती पर विशेष: स्वामी विवेकानंद का पंजाब से था खास लगाव, पंजाबियत के थे कायल

स्वामी विवेकानंद पंजाबियत के कायल थे। लाहौर में भीड़ देख स्वामी जी ने हवेली के आंगन में ऐतिहासिक व्याख्यान दिया था। रामकृष्ण मिशन की अंग्रेजी में प्रकाशित मासिक पत्रिका प्रबुद्ध भारत में लेखिका जसबीर कौर ने यात्रा के दिलचस्प किस्से साझा किए।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 10:35 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 12:39 PM (IST)
जयंती पर विशेष: स्वामी विवेकानंद का पंजाब से था खास लगाव, पंजाबियत के थे कायल
स्वामी विवेका नंद की फाइल फोटो ।

जालंधर [नितिन उपमन्यु]। गुरुओं की धरती पंजाब। स्वामी विवेकानंद यहां के लोगों की बहादुरी और पंजाबियत के कायल थे। उनका कहना था, 'यह वह भूमि है, जिसे पवित्र आर्यावर्त (भारत) में भी सबसे पवित्र माना जाता है। यह वह धरती है जिसने दुनिया को रोशनी दिखाई है। जिसने अपनी शक्तिशाली नदियों की तरह आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पैदा किया। यह वह भूमि है, जिसने सबसे पहले भारत में सभी अंतरविरोधों और आक्रमणों का खामियाजा भुगता। इस वीर भूमि को सबसे पहले बाहरी बर्बर लोगों का मुकाबला करना पड़ा। यह वह भूमि है, जो इतने कष्ट सहने के बाद भी अपनी महिमा और ताकत को नहीं खो पाई।'

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अगस्त 1897 में अविभाजित पंजाब के दौरे के दौरान एक व्याख्यान में उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, 'इसी धरती से नानक ने दुनिया के लिए अपने अद्भुत प्रेम का प्रचार किया। उन्होंने अपने विशाल हृदय से पूरे विश्व को गले लगाया।' गुरु गोबिंद सिंह जी को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ नायक बताया और उन्हेंं 'शेर दिल वाले गुरु गोबिंद सिंह' कह कर संबोधित किया था। उन्होंने देशवासियों को गुरु गोबिंद सिंह जी के उदाहरण का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया, जिन्होंने धर्म की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। 12 नवंबर, 1897 को उन्होंने लाहौर में तीसरा व्याख्यान दिया, जो ढाई घंटे तक चला।

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन में कई यात्राएं की और इस दौरान सैकड़ों व्याख्यान दिए, लेकिन उनकी पंजाब (अविभाजित) यात्रा के दौरान लाहौर में दिया गया उनका यह व्याख्यान ऐतिहासिक माना जाता है। रामकृष्ण मिशन की अंग्रेजी में प्रकाशित मासिक पत्रिका 'प्रबुद्ध भारत' में पंजाब की लेखिका जसबीर कौर आहूजा ने स्वामी जी की पंजाब यात्रा का विस्तार से वर्णन किया है। जसबीर कौर पटियाला स्थित सरकारी जूनियर सर्विस ट्रेनिंग सेंटर में सीनियर लेक्चरर रही हैं। उन्होंने पंजाबी भाषा में स्वामी जी की जीवनी भी लिखी है।

इसमें वे लिखती हैं कि पश्चिमी देशों की यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने पंजाब (अविभाजित) की यात्रा का निमंत्रण स्वीकार किया था। अपनी इस यात्रा के दौरान वे अंबाला, अमृतसर, धर्मशाला, रावलपिंडी, मर्री, श्रीनगर, जम्मू, सियालकोट और लाहौर भी गए। 13 अगस्त, 1897 को उन्होंने अंबाला (तब पंजाब का हिस्सा) पहुंच कर पंजाब में प्रवेश किया। नवंबर 1897 में उन्होंने लाहौर में 'भक्ति' और 'वेदांत' पर तीन व्याख्यान दिए। लाहौर में दिए अपने पहले व्याख्यान में उन्होंने गहरी छाप छोड़ी। जसबीर आहूजा के लेख के अनुसार भगत पूरन सिंह ने एक किताब में लिखा है कि शायद लाहौर में 'वेदांत' पर उनका व्याख्यान अब तक का सबसे बढिय़ा था।

भगत पूरन सिंह के अनुसार स्वामी जी को लाहौर में ध्यान सिंह की हवेली में ठहराया गया था। हवेली के हाल में बड़ी संख्या में पगड़ी पहने लोग स्वामी जी को सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे। हाल भरा हुआ था और आंगन में भी लोगों की भीड़ थी। स्वामी जी को देखने के लिए लोग जबरदस्ती हाल में घुसने की कोशिश कर रहे थे। भीड़ बेकाबू हो रही थी। यह देख कर स्वामी जी ने कहा कि वे खुली जगह में व्याख्यान देंगे।

स्वामी जी हवेली के आंगन के बीच बने चबूतरे पर चढ गए। अपने ऊंचे कद व भगवा वस्त्रों के कारण वे दिव्य पुरुष की तरह लग रहे थे। उनकी बड़ी-बड़ी आंखों में अजीब सा आकर्षण था। भगवा अंगवस्त्र व भगवा पगड़ी के साथ उनका व्यक्तित्व निखर कर सामने आ रहा था। जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। वे अपने लंबे व्याख्यान में गरज भरी आवाज में बोलते रहे। उन्होंने जिस सरलता व सहजता के साथ वेदांत की गहराई को समझाया, उससे हर कोई हतप्रभ था। उन्होंने व्यावहारिक दृष्टिकोण से वेदांत को परिभाषित किया।


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