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कुछ करने का जज्बा कोई इनसे सीखे... 83 की उम्र में हासिल की MA English की Degree

अगर जज्बा हो तो उम्र भी आड़े नहीं आ सकती। लेक्चरर रहे सोहन सिंह गिल ने 83 साल की उम्र में एमए इंग्लिश की डिग्री हासिल कर इसी जज्बे का परिचय दिया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 05:27 PM (IST)Updated: Sat, 21 Sep 2019 08:36 AM (IST)
कुछ करने का जज्बा कोई इनसे सीखे... 83 की उम्र में हासिल की MA English की Degree
कुछ करने का जज्बा कोई इनसे सीखे... 83 की उम्र में हासिल की MA English की Degree

जालंधर [अंकित शर्मा]। अगर जज्बा हो तो उम्र भी आड़े नहीं आ सकती। लेक्चरर रहे सोहन सिंह गिल ने 83 साल की उम्र में एमए इंग्लिश की डिग्री हासिल कर इसी जज्बे का परिचय दिया है। वह पूर्वी अफ्रीकी केन्या में शिक्षा के क्षेत्र में 33 साल तक सेवाएं देकर देश लौटे और फिर यहां की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करके अपनी 61 वर्ष पुरानी इच्छा पूरी की। गत दिवस उन्हें एलपीयू के कन्वोकेशन के समारोह में डिग्री प्रदान की गई।

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सोहन सिंह इंटरनेशनल हाॅकी में ग्रेड अपांयर भी रहे हैं। उन्होंने केन्या हाॅकी अंपायर्स एसोसिएशन में 6 साल काम किया और उसके सचिव पद पर भी रहे। कोस्ट हाॅकी एसोसिएशन के चेयरमैन के दौर पर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। सोहन सिंह कहते हैं कि 1958 में केन्या के लिए वीजा खुला था। तब वे अपने साडू सेवा सिंह बड़ैच के साथ वहां चले गए थे। उस समय चार रुपये किराया हुआ करता था। वाइस प्रिंसिपल वरियाम सिंह कहते थे कि एमए इंग्लिश कर ले। मन में भी ख्वाहिश थी। ऐसे में केन्या में रहते हुए भी एमए इंग्लिश के सपने आते रहे। एक तरह से अधूरी ख्वाहिश का सपना रह रहकर सताता था। रिटायरमेंट के बाद देश लौटेने पर यहां के स्कूलों में पढ़ाया। लगातार, एमए इंग्लिश नहीं कर पाने की बात कचोटती रही। फिर वर्ष 2017 में रिटायरमेंट ले लिया। गांव में बैठे-बैठे अधूरी ख्वाहिश पूरी करने का विचार आया। इसे पूरा करने के लिए पत्नी जोगिंदर कौर ने भी हौसला दिया। बेटा अमेरिका में बतौर इंजीनियर सेटल है। वहां से बेटे ने भी हिम्मत बढ़ाई।

सोहन सिंह ने बताया कि सबका सहयोग मिलने पर उन्होंने एलपीयू के बंगा डिस्टेंस एजुकेशन सेंटर से एमए इंग्लिश के लिए आवेदन कर दिया। वह कहते हैं- इंग्लिश तो पहले से ही अच्छी थी तो अब डिग्री हाथ में आने से अधूरी ख्वाइश पूरी हो गई। अब बच्चों के लिए किताबें लिखने पर फोकस करेंगे।

होशियारपुर के गांव दात्ता कोट फतूही में हुआ था जन्म

सोहन सिंह गिल का जन्म 15 अगस्त, 1936 को जिला होशियारपुर के गांव दात्ता कोट फतूही में हुआ था। उन्होंने प्राइमरी स्कूल पंडोरी गंगा सिंह में पहली से तीसरी कक्षा, मिडिल स्कूल खैरड अच्छरवाल में 6वीं उर्दू की पढ़ाई की। खालसा हाईस्कूल माहलपुर में 1953 में दसवीं की। श्री गुरु गोबिंद सिंह खालसा स्कूल माहिलपुर में चार वर्षों की 1957 में बीए पास की। उसके बाद 1957-58 में बैचलर टीचिंग खालसा कॉलेज अमृतसर से की। उस समय बीएड नहीं हुआ करता था।

वर्ष 1958 में गए थे केन्या

10 अक्टूबर को 1958 में समुद्री जहाज से वह केन्या के लिए रवाना हो गए। 18 अक्टूबर मुंबासा (केन्या) पहुंचे। दो महीने नवंबर-दिसंबर रेस्ट किया और 1959 इंडियन प्राइमरी स्कूल में नौकरी मिली। केन्या में उस समय 7वीं तक प्राइमरी हुआ करती थी, जो अब बढ़कर 8वीं तक हो गई है। वहां 6 वर्षों तक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया, दो साल मिडिल स्कूल में पढ़ाया और उसके हेड मास्टर बने। उसके बाद टीचर कॉलेज केन्या में 25 वर्षों तक सेवाएं दी। 31 अगस्त 1991 में वे सेवानिवृत्त हुए और फिर तीन अक्टूबर, 1991 में स्वदेश लौट आए।

गांव में गुरुद्वारा का निर्माण करवाया, संभाली सेवा

सोहन सिंह गिल हाॅकी और फुटबॉल के कॉलेज टाइम से ही खिलाड़ी रहे हैं। वे इंडियन हाॅकी टीम के कैप्टन जरनैल सिंह के साथ भी खेल चुके हैं। देश लौटने पर उन्होंने 15 वर्षों तक बिंजो पब्लिक स्कूल, पांच साल संत बाबा भाग सिंह पब्लिक स्कूल बिंजो में अंग्रेजी पढ़ाई। स्कूल के टॉपर्स भी 94 फीसद तक अंक हासिल करते रहे। 2017 में उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया था। रिटायरमेंट के बाद 28 साल गांव में रहते हुए उन्होंने गांव में ही गुरुद्वारा साहिब का निर्माण करवाया और वहां की सेवा भी संभाली।

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