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गली-गली कूड़े के ढेर, स्मार्ट सिटी का सपना दिखाकर निगम ने जालंधर वालों को ठगा

पिछले दस साल में सालिड वेस्ट मैनेजमेंट पर हुई सियासत ने आज पूरे शहर को कूड़े के ढेर में तब्दील कर दिया है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 01:10 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 01:10 PM (IST)
गली-गली कूड़े के ढेर, स्मार्ट सिटी का सपना दिखाकर निगम ने जालंधर वालों को ठगा
गली-गली कूड़े के ढेर, स्मार्ट सिटी का सपना दिखाकर निगम ने जालंधर वालों को ठगा

जागरण संवाददाता, जालंधर। एक दशक से कूड़े को लेकर चल रही सियासत ने पूरे शहर को ही कूड़े के ढेर में तब्दील करना शुरू कर दिया है। शहर की कोई सड़क, कोई मोहल्ला, कोई कालोनी ऐसी नहीं हैं, जहां कूड़े के ढेर आपका स्वागत न करते हों। स्मार्ट सिटी का सपना दिखाकर जालंधर के लोगों को नगर निगम ठग रहा है। 

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कई पार्षद विधायक बन गए तो कई करोड़पति। तमाम अफसरों की आलीशान कोठियां बन गईं। दो मेयर आए और कार्यकाल पूरा करके चलते बने। फिर भी, शहर की 1445 किलोमीटर की टूटी सड़कों पर हर जगह कूड़ा आपका स्वागत करता है। 2.13 लाख मकानों से लेकर होटलों व कामर्शियल कांप्लेक्सों तक से रोजाना निकलने वाले कूड़े को ठिकाने लगाने की जगह भी अब निगम के पास नहीं है। 

शहर से 15 साल पहले 250 टन निकलने वाला कूड़ा अब 500 टन हो चुका है। इसके बाद भी निगम प्रशासन एक दशक में कूड़े को लेकर केवल सियासत में उलझा हुआ है। कूड़े की सियासत करके परगट सिंह दोबारा विधायक बन गए और जमशेर में लगने वाला सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को लेकर अब अदालत में दलीलें दी जा रही है।

सवाल जालंधर का है। जालंधर के लोगों का है। हम हालात को सुधार पाने की बजाए उसे और बिगाड़ रहे हैं, कूड़ा निस्तारण की दिशा में एक कदम भी एक दशक में आगे न बढ़ पाना सिद्ध करता है कि हमारा नगर निगम, जिम्मेवार पार्षद और निगम कमिश्नर तथा विधायक तथा सांसद कितने गंभीर हैं। 

भला हो सफाई मुलाजिमों का जिनकी बदौलत आज भी शहर में सड़कें कम से कम चलने लायक तो हैं, अगर सफाई मुलाजिम भी पार्षदों व विधायकों तथा सांसद की तरह इस दिशा से मुंह मोड़ लें तो क्या होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है। कूड़े की सियासत और समस्या को समेटती मनोज त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट।  

इसलिए नहीं हो पा रहा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट 

दो दशक पहले जालंधर के कपूरथला रोड पर वरियाणा में नगर निगम ने 14 एकड खाली पड़ी जमीन पर कूड़े से खाद बनाने का प्लांट लगाया था। वहीं पर निगम का मुख्य डंप भी था। पंजाब ग्रो मोर कंपनी को कूड़े से खाद बनाने का लाइसेंस दिया गया। निगम ने मंजूरी दी। अधिकार दिए। उस समय जालंधर से रोजाना 200 टन कूड़ा निकलता था। कंपनी की डिमांड थी रोजाना कम से कम 300 टन कूड़ा चाहिए। उसकी खपत आसानी के साथ प्लांट करके कूड़े से खाद बनाने की छमता वाली मशीने लगाई गईं। 

1998 से ही इस प्रोजेक्ट पर निगम के काबिल अधिकारियों की सियासत शुरू हो गई। कूड़े से कमाई का गोरखधंधा भी शुरू हो गया। तमाम विरोधों व अड़चनों के बाद कंपनी ने 2003 में प्लांट को चालू कर दिया। खाद बनाने का काम भी शुरू हो गया। इसके बाद निगम की नींद टूटी कि खाद का इस्तेमाल कहां किया जाए। बागवानी के लिए शानदार क्वालिटी की हजारों टन खाद का उत्पादन करने के बाद उसकी मार्केङ्क्षटग व बिक्री की व्यवस्था निगम प्रशासन नहीं कर पाया। साथ ही पीएयू व हिमाचल की यूनिवर्सिटी द्वारा खाद की गुणवत्ता में कुछ कमी निकालने के बाद खाद की बिक्री ही निगम नहीं करवा सका। नतीजतन यह काम भी कंपनी के हवाले कर दिया गया। तब से लेकर आज तक कूड़े से खाद बनाने वाले प्लांट को लेकर सियासत जारी है। 

एकमात्र डंप की जगह पर छमता से सैकड़ों गुना ज्यादा कूड़ा फेंका जा चुका है। प्लांट से तैयार होने वाली खाद का इस्तेमाल करने वालों की माने तो बागवानी में प्रयोग होने वाली अन्य खादों की तुलना में यह खाद ज्यादा बेहतर थी। इसके बाद भी निगम ने इसकी मार्केङ्क्षटग नहीं की और न ही सही प्लाङ्क्षनग की। नतीजतन कूड़े से खाद बनाने वाला प्लांट बीते समय की बात हो गया और शहर में कूड़े के ढेरों की संख्या बढऩे लगी। 

जमशेर प्लांट को लेकर जारी है 900 करोड़ की राजनीति

वरियाणा में कूड़े से खाद बनाने वाले प्लांट को लेकर हो रही सियासत से लोगों का ध्यान हटाने व नई तकनीकि का नाम देकर जमशेर में निगम अधिकारियों ने सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने को मंजूरी दे दी। जमशेर में डेयरी कांप्लेक्स के पास पड़ी निगम की 25 एकड़ में से 14 एकड़ जमीन पर इस प्लांट को लगाने को लेकर जिंदल कंपनी के साथ निगम ने करार भी कर लिया। पूरे शहर को सपना दिखाया गया कि प्लांट शुरू होते ही शहर से कूड़ा हवा ऐसे साफ हो जाएगा कि ढूंढते रह जाओगे और कूड़ा नहीं दिखाई देगा। प्लांट लगने के साथ प्लांट को लेकर कैंट की सियासत भी शुरू हो गई। जमशेर के आस-पास के दो दर्जन गावों के हवाला देकर उनके वोट बैंक के मद्देनजर पहले कांग्रेसी नेता जगबीर बराड़ ने विरोध शुरू किया तो तत्कालीन विधायक परगट सिंह ने भी इसका विरोध कर दिया। 

विरोध के क्रेडिट वार में यह प्लांट ऐसा उलझा कि चालू होने की बात तो दूर नगर निगम 900 करोड़ की सियासत में अदालत के चक्कर काट रहा है। परगट ङ्क्षसह ने प्लांट का डटकर विरोध किया। अकाली दल से इस्तीफा देकर लोगों की सहानुभूति एकत्र की और कूड़े की सियासत के दम पर कांग्रेस से टिकट ली और दोबारा विधायक बन गए, लेकिन शहर के हालात बद से बदतर होते गए। कंपनी ने निगम पर 900 करोड़ रुपये का केस ठोंक दिया और मामला कानूनी पेंचों में उलझ गया।

आखिर कौन जिम्मेदार?

शहर को आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि आखिर प्रोजेक्ट फाइनल करने के समय जो सपने दिखाई गए थे कि डोर टू डोर कलेक्शन होगा। शहर साफ-सुधरा होगा। कूड़े की ट्रांसपोर्टेशन की समस्या नहीं होगी। कूड़े को ट्रीट करके उसे ठिकाने लगाने की समस्या नहीं होगी। डंङ्क्षपग की समस्या नहीं होगी। उसका क्या हुआ। जिम्मेवार अधिकारियों व विधायकों तथा पार्षदों ने शहर को क्या दिया। कहां गया साफ-सुथरे शहर का वो सपना जो एक दशक पहले जालंधर को यह कहकर दिखाया गया था कि जमशेर प्लांट चालू होने के बाद कूड़े की समस्या छू-मंतर हो जाएगी।


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