ताबूत में पिंजर बन लौटे अपनों के अवशेष देख बिलख पड़े परिजन
इराक में मारे गए पंजाबियों के अवशेष परिजनों को सौंप दिए गए हैं। कुछ का अंतिम संस्कार कल कर दिया गया था, जबकि कुछ का आज किया जाएगा।
जेएनएन, जालंधर। इराक में मारे गए 39 भारतीयों में से 38 के शवों के अवशेष गत दिवस ताबूत में अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। इसके बाद पंजाब के 27 युवकों के अवशेष उनके परिजनों को सौंप दिए गए थे। कुछ का अंतिम संस्कार का कल ही कर दिया गया था, जबकि कई परिजन आज अवशेषों का अंतिम संस्कार करेंगे। जालंधर के आदमपुर स्थित गांव चूड़वाली में सुरजीत मेनका के अवशेष ताबूत में जैसै ही पहुंचे गांव में मातम का माहौल बन गया। सुरजीत की पत्नी व मां ताबूत से लिपट-लिपट कर रोने लगे।
चार साल के लंबे इंतजार के बाद अपनों के अवशेष मिले तो कोई बेहोश हुआ तो कई होश खो बैठे। अमृतसर के चाविंडा देवी गांव की रहने वाली सीमा के पति सोनू का अवशेष जैसे ही एयरपोर्ट पर पहुंचा, तो वह फूट-फूट कर रोने लगी। सोनू की मां जीतो की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहती रही और ताबूत पर ही बेहोश हो गई। पत्नी सीमा ने कहा कि वो मकान बनाकर आशियाना दे गए थे लेकिन अब तो मेरी दुनिया ही उड़ गई। मैं अपने दो बेटों कर्ण अजरुन के साथ इसी मकान में रहती हूं। घरों के बर्तन साफ करके बच्चों को पाल रही है।
पति ने विदेश जाने के लिए डेढ़ लाख का कर्ज लिया था, वह अभी भी सिर पर खड़ा है। सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए। मां ने कहा कि यकीन नहीं होता कि हम जिसे ताबूत को घर ले जा रहे हैं, उसमें बेटे के अवशेष हैं।
15 जून 2014 को अंतिम बार हुई बात, चार साल बाद अंतिम दर्शन भी नहीं
वहीं संघवाना के कुलदीप सिंह ने बताया कि उसका भतीजा निशान सिंह ने 15 जून 2014 को अंतिम बार घर में फोन करके कहा कि आतंकी उन्हें किसी अज्ञात जगह पर लेकर जाने वाले हैं। हो सकता है भारत भेज दें या फिर किसी अन्य स्थान पर बंदी बना कर रखें। चार भाइयों में सोनू सबसे बड़ा था। 2014 में नौकरी लगने के चार माह बाद उसने 35000 रुपये भेजे थे। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को युवाओं के पीड़ित परिवारों की आर्थिक मदद करनी चाहिए जबकि अभी तक इस तरह की कोई बात सामने नहीं आई।
पिता के इराक में गुम होते ही अमन की दुनिया में छाया अंधेरा
इराक के शहर मौसूल में पिता गोबिंदर सिंह के आतंकियों द्वारा अगवा किए जाने के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी। परिवार में पिता की भूमिका निभाने और अपनी छोटी बहन व मां का पालन पोषण करने के लिए नौकरी शुरु कर दी। हालांकि बहुत ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे मगर क्योंकि परिवार में आय का कोई अन्य साधन नहीं था तो मजबूरी में कपूरथला में जगजीत डिस्टीलरी में मजदूरी शुरु कर दी।
अपनी मां अमरजीत कौर व रिश्तेदारों संग पिता के अवशेष लेने पहुंचे अमनदीप सिंह निवासी मुरार जिला कपूरथला ने बताया कि 15 जून 2014 को उसके पिता गोबिंदर सिंह का अंतिम बार मां को फोन आया। तब उसके पिता ने बताया कि आतंकियों ने उनके साथ बंगलादेशी बंदियों को अलग कर लिया है और जल्द ही वे लोग हमसे मोबाइल फोन भी ले लेंगे। हो सकता है कि इसके बाद वे (गोबिंदर) उनसे बात नहीं कर सके। क्योंकि तब वह 12वीं कर चुका था और आगे की पढ़ाई के लिए योजना बना रहा था।
इस फोन काल के बाद ही जैसे उनकी दुनियां उजड़ गई और पल में ही 8वीं कक्षा में पढ़ रही छोटी बहन करणदीप कौर की पढ़ाई और मां की जिम्मेवारी उस पर आन पड़ी। तभी उसने शराब की फैक्टरी में, जिसमें उसके पिता पहले काम कर चुके थे, काम शुरु कर दिया। हालांकि राज्य सरकार की तरफ से 4-6 माह बाद कभी दो महीनों के तो कभी 3 महीनों की पेंशन दे देती।
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