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पंजाब में माझे की सरदारी के लिए ब्रह्मपुरा व कैरों के बीच लगी रही होड़, मजीठिया होते रहे हावी

पूर्व मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों वर्ष 1997 में कांग्रेस छोड़ शिअद में आए थे। उन्हें बादल सरकार में कर व आबकारी मंत्री बने थे। नौशहरा पन्नूआ से जीतने वाले रणजीत सिंह ब्रह्मïपुरा सहकारिता मंत्री बने थे। हालांकि माझा में मजीठिया के आने के बाद उनका रुतबा कम होता गया।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 04:39 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 04:39 PM (IST)
पंजाब में माझे की सरदारी के लिए ब्रह्मपुरा व कैरों के बीच लगी रही होड़, मजीठिया होते रहे हावी
माझा का जरनैल बनने के लिए पूर्व मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों और रणजीत ब्रह्मपुरा के बीच लंबी जंग चली।

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में माझे का जरनैल कौन होगा, इसके लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री आदेश प्रताप सिंह व रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा के बीच वर्षों से सियासी दौड़ चली आ रही है। परंतु दोनों दिग्गजों के बीच शिअद की लीडरशिप में बिक्रम सिंह मजीठिया लगातार इस कदर हावी होते रहे कि टिकटों के फैसले हो या पार्टी में जिम्मेदारी सौंपने का मामला, यह सारा कुछ मजीठिया को भरोसे में लेकर ही होता आ रहा है।

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विधानसभा हलका पट्टी से 1997 में कांग्रेस छोड़ शिअद में शामिल हुए आदेश प्रताप सिंह कैरों जहां पहला चुनाव जीतकर बादल की सरकार में कर व आबकारी मंत्री बने। वहीं, नौशहरा पन्नूआ से जीतने वाले रणजीत सिंह ब्रह्मïपुरा को सहकारिता विभाग के माध्यम से कैबिनेट में स्थान मिला। उस समय मजीठिया पंजाब की सरगर्म सियासत का हिस्सा नहीं थे। माझे में मजीठिया की सियासी एंट्री होते ही दोनों दिग्गज नेताओं ने अपना दमखम तो कायम रखा, परंतु माझे की जरनैली के लिए दोनों ने कसर नहीं छोड़ी। हालांकि आदेश प्रताप सिंह कैरों व रणजीत सिंह ब्रह्मïपुरा को अपनी-अपनी जगह रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने समानता बनाई रखी।

सुखबीर सिंह बादल के हाथ में शिअद की बागडोर आते ही बिक्रम सिंह मजीठिया सियासी तौर पर चमकने लगे। पट्टी से चार दफा जीत दर्ज करवाकर कैरों जहां अपना सियासी दबदबा बनाने में कामयाब रहे। वहीं, 2017 में उनको हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह, वर्ष 2012 में पहली बार रणजीत सिंह बह्मपुरा को खडूर साहिब हलके से हार देखनी पड़ी। बाद में 2014 में लोक सभा चुनाव दौरान ब्रह्मपुरा को टिकट देकर दोबारा सियासत में सरगर्म किया था। जिले की चार विधानसभा सीटों पर दावा जिताने वाले कैरों को आखिर एक ही टिकट (विस हलका पट्टी) देने का फैसला भी पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के दखल से हुआ।

मजीठिया अपने करीबी हरमीत सिंह संधू को तरनतारन, विरसा सिंह वल्टोहा को खेमकरण से ही चुनाव लड़ाना चाहते थे। लोकसभा चुनाव दौरान रूठे रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा की शिअद में वापसी के बाद उनको खडूर साहिब के प्रत्याशी बनाने में भी मजीठिया की हामी की अहम भूमिका रही है। शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने जहां पूर्व मंत्री कैरों व ब्रह्मïपुरा को अपने-अपने स्थान पर रखते हुए बिक्रम सिंह मजीठिया के फारमूले पर काम किया है।


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