पंजाब में जम्मू से लेकर दिल्ली तक सरकारी बसें उपलब्ध नहीं, पांचवें दिन में पहुंची कांट्रेक्ट कर्मियों की हड़ताल
शनिवार को बस स्टैंड में बेहद कम संख्या में ही पंजाब की सरकारी बसें नजर आई। अंतरराज्यीय रूट पर निजी बस सेवा उपलब्ध नहीं है। इस कारण जम्मू हिमाचल हरियाणा राजस्थान उत्तराखंड आदि तक पहुंच पाने में यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
मनुपाल शर्मा, जालंधर। महानगर से 20 किलोमीटर की दूरी पर नकोदर हो या 375 किलोमीटर दूर दिल्ली। दोनों ही जगहों तक पहुंचने के लिए प्रदेश की सरकारी बसें उपलब्ध नहीं है। पंजाब रोडवेज, पनबस, पीआरटीसी कांट्रेक्ट मुलाजिमों की हड़ताल यात्रियों को बुरी तरह से परेशान किए हुए है। हड़ताल का शनिवार को पांचवा दिन था, लेकिन बस परिवहन सेवाओं में कोई सुधार नहीं हो पाया। सरकार ने मुलाजिमों को आगामी 14 दिसंबर को मुख्यमंत्री के साथ बैठक का आश्वासन दिया है। तब तक मुलाजिम भी बदस्तूर अपनी हड़ताल और धरना जारी रखे हुए हैं। यानी आने वाले कुछ दिनों में भी यात्रियों की मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं।
हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड पहुंचने में भारी परेशानी
शनिवार दोपहर हालात इस कदर पेचीदा थे कि बस स्टैंड में बेहद कम संख्या में ही पंजाब की सरकारी बसें नजर आई। अंतरराज्यीय रूट पर निजी बस सेवा उपलब्ध नहीं है और मात्र सरकारी बसें ही चलती हैं। इस वजह से जम्मू, हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड आदि तक पहुंच पाने में यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बाहरी राज्यों की तरफ सफर करने वाले यात्रियों को अब अन्य राज्यों की सरकारी बसों का इंतजार करना पड़ रहा है।
जिन रूटों पर निजी बसें कम, वहां पहुंचना मुश्किल
पंजाब के भीतर भी उन रूटों पर सफर करना कठिन हो गया है, जहां पर निजी बसों की संख्या कम है। पंजाब रोडवेज अथवा पीआरटीसी के मोनोपली रूटों पर अब बसों की भारी किल्लत है। पंजाब रोडवेज जालंधर डिपो से शनिवार को बेहद कम संख्या में ही बसें रोड पर रवाना की जा सकी हैं।
हड़ताली कर्मी बोले- हमारे पास इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं
पंजाब रोडवेज, पनबस पीआरटीसी कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की जालंधर एक इकाई के अध्यक्ष गुरप्रीत सिंह ने कहा कि हड़ताली मुलाजिमों के पास अब 14 दिसंबर तक का इंतजार करने के सिवाय कोई विकल्प मौजूद नहीं है। सरकार आश्वासन देकर अपने वादे पूरे नहीं कर रही है। इस वजह से मजबूरी में उन्हें धरना ही देना पड़ रहा है।