ठोको तालीः कम बिकी शराब तो बढ़ी सरकार की टेंशन, मैदान में उतरे आला अधिकारी
तमाम प्रयासों के बाद भी सरकार ठेकों पर भीड़ देखने को तरस रही है। दबाव इतना है कि आला अधिकारी भी मैदान में आ गए हैं।
जालंधर, [मनीष शर्मा]। सरकार की नजर में आर्थिक हालत का 'टॉनिक' बनी शराब की कम बिक्री ने अफसरों की टेंशन बढ़ा दी है। जालंधर में शराब के ठेके तो खुले, लेकिन गल्ले में माया का सूनापन बरकरार है। ठेके खुले दो हफ्ते से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन ग्राहक काफी कम हैं। कमाई की आस कहो या पियक्कड़ों को सुविधा, सरकारी फरमान को दरकिनार कर ठेके रात नौ बजे तक खुल रहे हैं। इतनी देर तक ठेके खोलने का आदेश किसने दिया, यह कोई अफसर भी नहीं बता रहा। इन सबके बावजूद सरकार ठेकों पर भीड़ देखने को 'तरस' रही है। दबाव इतना है कि आला अधिकारी भी मैदान में आ गए हैं। हफ्ते भर में डीसी, सीपी व एसएसपी ने ठेकेदारों संग दूसरी बैठक कर सरकार को दिखाने के लिए 'इवेंट' तैयार कर लिया। देहात पुलिस ने तो देसी शराब पकड़ भी ली, लेकिन शहरी पुलिस 10-12 बोतल तक ही सीमित है।
सब संगत का असर है
कोरोना के कहर को रोकने के लिए लॉकडाउन और कफ्र्यू लगा तो पुलिस कर्मचारियों की ड्यूटी दिन-रात की हो गई। ऐसे में पुलिस वाले थकने लगे। उन्हें थोड़ी राहत देने के लिए पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत भुल्लर ने वालंटियर खड़े कर दिए। ऐसे में उम्मीद थी कि नाकों पर थके पुलिस वालों को मदद मिलेगी, लेकिन यह थकावट कितनी थी, इसका अंदाजा अफसर भी नहीं लगा सके। तभी तो नाकों पर पुलिस वालों के हाथों में पकड़ाए डंडे वालंटियरों ने थाम लिए। पुलिस वाले इतने थके थे कि वे किनारे हो गए और वालंटियर नाके के लीडर बन गए। लोगों को रोकना, कागजात की जांच, पूछताछ और बदतमीजी... सब पुलिस वालों की तरह करने लगे। अब तो कई शिकायतें भी हो चुकी हैं, लेकिन वालंटियर अफसरों के 'लाडले' बने हुए हैं। ऐसे में नाके से गुजरता हुआ कोई भी परेशान आदमी यह जरूर कह देता है, 'सब संगत का असर है'।
अंदर ज्ञान, बाहर काम तमाम
कुछ दिन पहले ही परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने कर्मचारियों को बंद कमरे में खूब ज्ञान दिया कि 'अब रिश्वतखोरी नहीं चलेगी। मैं बहुत दूर तक जाता हूं, किसी को भी छोड़ूंगा नहीं।' वैसे तो ऐसा ज्ञान सुन-सुनकर कर्मचारियों के कान पक चुके हैं, लेकिन सब सोचने लगे कि नया अफसर है और कोई खतरा मोल नहीं लेना। सब कायल हो गए कि अब ये महोदय इस दफ्तर को सुधार देंगे। जैसे ही बैठक खत्म हुई तो बाहर खड़ा एक आदमी कमरे से निकले कर्मचारियों को धकेलता हुआ निकलने लगा। उसी दफ्तर में एजेंट का काम करने वाला वह चेहरा सबका जानकार ही था। कर्मियों ने तुरंत उससे पूछा, 'क्या हुआ, भाग क्यों रहे हो?' इस पर वो वह बोला कि साहब का लंच लेकर आना है। इसपर एक कर्मचारी दूसरे के कान में फुसफुसाते बोला, 'वाह जनाब! अंदर दिया इतना ज्ञान और बाहर निकलते ही काम तमाम।'
ज्यादा टेस्टिंग, समझदारी या तेजी
कोरोना ने दस्तक दी तो पंजाब में शुरुआत में ज्यादा केस जालंधर में ही रहे। बात चाहे कोरोना पॉजिटिव मरीजों की हो या सैंपल टेस्टिंग की, दोनों में जिले ने सुर्खियां बटोरीं। दूसरे जिलों का फोकस कोरोना के लक्षण वालों की सैंपलिंग पर रहा, जबकि जालंधर में मरीज के संपर्क में आने वाले लोगों की भी धड़ाधड़ टेस्टिंग हुई। प्रशासन ने इसके लिए मोबाइल कॉल का ब्यौरा व टॉवर लोकेशन तक का इस्तेमाल किया। इसी का नतीजा था कि केस लगातार बढ़ते रहे और पूरा जिला चिंतित रहा। खैर, जब दूसरे राज्य से आए श्रद्धालुओं की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो अमृतसर आगे निकल गया। अब कोरोना टेस्टिंग काफी धीमी की जा चुकी है। टेस्ट पॉजिटिव आने के बावजूद जिनमें लक्षण नहीं थे, उन्हें घर भेज दिया गया। अब सवाल यही है कि ज्यादा टेस्टिंग प्रशासन की समझदारी थी या फिर तेजी...। अफसर मानते हैं कि भविष्य ही इसका आकलन करेगा।
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