प्राइवेट कोरोना टेस्ट ने उड़ाई नींद, सरकारी फरमान से सिविल अस्पताल में अफरा-तफरी
सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए निजी लैब में टेस्ट होने वाले सैंपलों की सरकारी स्तर पर भी जांच करवाने का फरमान जारी कर दिया।
जालंधर, [जगदीश कुमार]। केंद्र व राज्य सरकार ने सरकारी लैबोरेटरियों के साथ-साथ निजी लैबोरेटरियों में कोरोना के टेस्ट करने की इजाजत दे दी है। अब सरकारी लैब से कम और प्राइवेट लैब से अधिक मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है। ऐसे में सरकार भी पछताने लगी है और निजी लैब पर शिकंजा कसना चाहती है। हालांकि उनकी इस राह में राजनेता आड़े आने लगे हैं। सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए निजी लैब में टेस्ट होने वाले सैंपलों की सरकारी स्तर पर भी जांच करवाने का फरमान जारी कर दिया। इसके लिए निजी लैब से सैंपल लेने के लिए सरकारी अस्पताल का स्टाफ भी तैनात कर दिया। इससे सिविल अस्पताल में अफरा-तफरी मच गई। सभी अधिकारी खाने के टेबल पर इकट्ठा हुए तो इस पर चर्चा चल गई। इतने में लैब प्रभारी व एसएमओ बोल पड़े, 'सैंपलां ने तां नींद उड़ा दित्ती है... हुण प्राइवेट लैब तो केहड़ा सैंपल इकट्ठे करू।'
सांसद की चाय, स्टाफ की चुस्कियां
कोरोना काल के दौरान कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए सांसद चौधरी संतोख ङ्क्षसह ने पिछले दिनों सिविल सर्जन ऑफिस में सेहत विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ बैठक रखी थी। इसी दौरान वहां ठेके पर तैनात मुलाजिमों ने धरना भी रखा हुआ था। जब इसकी जानकारी चौधरी को मिली तो उन्होंने में बैठक की जगह में बदलाव कर दिया और बैठक इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के दफ्तर में रख दी। इसके बाद सिविल सर्जन सहित सभी अधिकारी वहां कूच कर गए। हालांकि इससे पहले सिविल सर्जन ऑफिस में उनके जलपान का प्रबंध कर दिया गया था। अधिकारियों के जाने के बाद पहले तो स्टाफ चाय और खाने का सामान देखता रहा, फिर वहां मौजूद दर्जा चार कॢमयों, ड्राइवरों व क्लर्कों ने फ्लू कार्नर में चाय का लंगर लगाने का मन बनाया। कुछ ही देर बाद कोरोना को देखते हुए मन बदल लिया और स्टाफ ने ही चाय-बिस्किट के मजे लिए।
जब अफसरों ने टेक दिए घुटने...
जिला प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद सेहत विभाग मरीजों की संख्या और मौतों पर काबू पाने में विफल रहा है। इसके साथ ही सेहत विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान भी लग गया है। जिला प्रशासन ने निजी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों को होने वाली समस्याएं कम करने के लिए अधिकारियों की टीमें गठित कर दी। टीमों में एसएमओ के साथ एक-एक प्रशानिक अधिकारी भी तैनात किया गया और टीमों को कोरोना का ईलाज करने वाले निजी अस्पताल बांट दिए गए। हालात ये हैं कि अब सरकारी अस्पतालों में तैनात एसएमओ को निजी अस्पतालों की रिपोर्ट तैयार करनी भी जरूरी कर दी है। यह सरकारी फरमान निकलते ही एसएमओज के फोन बजने लगे। सभी एक-दूसरे के साथ बचाव को लेकर विचार करने लगे। यही नहीं, सिविल सर्जन ऑफिस में उन्होंने गुप्त बैठक भी की, लेकिन जिला प्रशासन के आदेश मानना उनकी मजबूरी थी और उन्होंने घुटने टेक दिए।
कोरोना से भाग रहे निजी अस्पताल
सरकारी अस्पतालों में कोरोना का ईलाज मुफ्त किया जा रहा है, लेकिन लोग इस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। कारण, मरीजों की बढ़ती संख्या के हिसाब से सरकारी अस्पतालों में स्टाफ और सुविधाओं का अभाव आड़े आने लगा है। इसे देखते हुए सेहत विभाग ने निजी अस्पतालों को कोरोना के ईलाज के लिए हरी झंडी दे दी। साथ ही ईलाज के लिए रेट भी निर्धारित कर दिए। कम रेट देख निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के पैरों तले से जमीन निकल गई। ऊपर से जिला प्रशासन ने निगरानी के लिए सरकारी अधिकारी भी तैनात कर दिए हैं। ऐसे में जिला प्रशासन और सेहत विभाग से वादा कर नाम सूची में डलवा चुके ये डॉक्टर कदम पीछे हटाने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। इतना ही नहीं, डॉक्टर इस संबंधी आइएमए प्रधान के पास शिकायतें भी करने लगे हैं। कुल मिलाकर अब निजी अस्पताल कोरोना के ईलाज से भाग रहे हैं।