Move to Jagran APP

एशिया में सबसे अधिक अस्पतालों के शहर में नहीं बढ़ा सरकारी सेहत सेवाओं का दायरा

एशिया में सबसे अधिक अस्पतालों के शहर के नाम से पहचान रखने वाले जालंधर में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा नहीं बढ़ पाया।

By Edited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 07:22 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 09:15 AM (IST)
एशिया में सबसे अधिक अस्पतालों के शहर में नहीं बढ़ा सरकारी सेहत सेवाओं का दायरा
एशिया में सबसे अधिक अस्पतालों के शहर में नहीं बढ़ा सरकारी सेहत सेवाओं का दायरा
जगदीश कुमार, जालंधर। एशिया में सबसे अधिक अस्पतालों के शहर के नाम से पहचान रखने वाले जालंधर में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा नहीं बढ़ पाया। 18 साल में जिले की आबादी में 4,08,864 की बढ़ोतरी तो हुई परंतु सरकारी तंत्र स्वास्थ्य केन्द्रों, डॉक्टरों तथा अन्य सुविधाएं मुहैया करवाने में लगातार पिछड़ता चला गया। हालात ऐसे हो गए हैं कि दो साल पहले शहर में ही सेहत विभाग की ओर से शहर में दो कम्यूनिटी व दो प्राइमरी हेल्थ सेंटर बनाए तो गए पर यहां पर स्टाफ और मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाना विभाग भूल गया। हालात ऐसे हो गए हैं कि अब उक्त इमारतें मात्र राजनीकि पार्टियों के लिए इक दूजे को नीचा दिखाने की माध्यम बनकर रह गई हैं।

राज्य में पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन की सूची में सबसे बड़े शहीद बाबू लाभ सिंह सिविल अस्पताल में भी हड्डी रोग व बाल रोग डाक्टरों के अलावा लेबोरेटरी व नर्सिंग स्टाफ की कमी के चलते मरीजों को खासी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में मरीजों को दवाइयां भी किस्मत से नसीब हो रही हैं। जिले में आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक डिस्पेंसरियां भी मूलभूत सुविधाओं व स्टाफ का इंतजार कर रही हैं।  

जिले की आबादी  
साल       आबादी
2001     1962761
2011     2193590
2018     2373625

मुफ्त दवाइयां देने के दावे खोखले, देहाती डिस्पेंसरियों को नहीं मिली दवा
राज्य सरकार की ओर से सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में मरीजों को मुफ्त दवाइयां देने के वायदे खोखले साबित हो चुके है। सरकारी अस्पतालों में सरकार के वायदे के बावजूद 50 फीसद के करीब दवाइयां मरीजों को नसीब होती हैं। आम बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां स्टॉक से खत्म रहती हैं। जिला परिषद के बैनर तले जिले में 93 डिस्पेंसरियां चल रही है। इन डिस्पेंसरियों में डाक्टरों के 19 पद लंबे अर्से खाली पड़े है। खास बात यह है कि अक्तूबर 2018 के बाद इन डिस्पेंसरियों को दवाइयां ही नहीं मिलीं। जिला अस्पताल में दवाइयों की कमी एंटी एलर्जी, एंटी बायोटिक्स, पैरासीटामोल, दर्द निवारक, पेट दर्द, सिरिंजें, ग्लूकोज, खांसी की दवा, चर्म व बाल रोगों की दवाएं, दांतों के ईलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां।

कस्बों के स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाइयों की कमी
अस्पताल में दाखिल होने वाले मरीजों को लगने वाले एंटी बायोटिक्स टीके, दर्द निवारक टीके, स्टीरायड टीके व गोलियां, एंटी रेबिज, खांसी की दवा, बच्चों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर सिरप, ग्लूकोज,चर्म रोगों में इस्तेमाल होने वाले क्रीमें।

वेंटीलेटर पर दम भर रही निगम की डिस्पेंसरियां
नगर निगम के पास लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए 1996 में 14 डिस्पेंसरियां और एक अस्पताल था। 2006 में यह 10 रह गईं। इसी बीच हाल ही में नगर निगम हाउस में चार डिस्पेंसरियों को बंद करने का प्रस्ताव रखा था इसके बाद दो को बंद करने की सहमति बनी थी। चुनाव के बाद अधिसूचना जारी कर इन्हें बंद कर दिया जाएगा और 2018 में 8 रह जाएंगी। इससे पहले 2006-07 में माडल टाउन में 10 बैड वाला अस्पताल बंद हुआ था। निगम किशनपुरा, कोट पक्षियां, नौहरिया बाजार तथा मदर फ्लोर मिल में चल रही डिस्पेंसरियों को ताला लगा चुका है। अब 2018 से सेंट्रल टाउन और बस्ती शेख की डिस्पेंसरी को ताला लगाने की कवायद चल रही है। इससे पहले शहर में पांच जच्चा बच्चा सुरक्षा सेंटर चलते थे जिसमें केवल माईहीरा वाला ही बचा है। निगम ने 1996 के बाद 2001 में डाक्टरों की भर्ती की थी। उसके बाद जो सेवानिवृत्त हुए उनके पद खाली ही पड़े रहे। यही नहीं डिस्पेंसरियां ज्यादातर समय दर्जा चार कर्मचारियों के सहारे चलती है।

ईएसआई अस्पताल में डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ का टोटा
ईएसआई के बैनर तले शहर में पांच डिस्पेंसरियां और एक अस्पताल चल रहा है। अस्पताल में हड्डी रोग, सर्जरी, मेडिसन तथा आंखों की बीमारियों के माहिर डाक्टरों के पद लंबे अर्से से खाली पड़े हैं। इसके अलावा 18 नर्सों की कमी है। सेहत विभाग की ओर से निजी अस्पतालों के साथ इम्पेनलमेंट रद्द करने के बाद मरीजों के ईलाज के लिए सिविल अस्पताल या फिर सरकारी मेडिकल कॉलेज अमृतसर और पीजीआई चंडीगढ़ जाना पड़ रहा है।

आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक डिस्पेंसरियां भी ईलाज को मोहताज

जालंधर व फिल्लोर में स्वास्थ्य केन्द्र में एसएमओ के पद खाली है। जिले में 29 आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों में 12 डाक्टरों के पद खाली है। वहीं जिले में 14 के करीब होम्योपैथिक डिस्पेंसरियों में से 9 में डाक्टरों के पद खाली है। इन सेंटरों में ज्यादातार दवाइयां का इंतजाम स्वयं सेवी संगठनों के सहारे है।

सेहत विभाग को आधुनिकता की दौड़ में मरीजों का विश्वास जीतने की जरूरत
सेहत विभाग से सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एचआर गर्ग का कहना है कि जिले में आबादी बढ़ने के साथ मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए स्वास्थ्य केन्द्रों का दायरा भी बढ़ाने की जरूरत है। जो सेवाएं सरकारी अस्पतालों में नही है उन्हें निजी सेक्टर के साथ हाथ मिला कर पूरा करना चाहिए। स्वास्थ्य केन्द्रों की इमरजेंसी सेवाएं मजबूत होनी चाहिए ताकि मरीज को अस्पताल पहुंचते ही अव्वल दर्जे की सेवाएं और दवाइयां मौके पर मिल सके। इमरजेंसी का स्टाफ भी ट्रेंड होना चाहिए जो मरीजों के पहुंचते ही तुरंत ईलाज पर डाल सके। सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर गरीब व मध्यम वर्ग के लोग ही सेवाएं लेने के जाते है। सरकार को अस्पतालों में दवाइयों की कमी को पूरा करने के अलावा अन्य मूलभूत सेवाओं को भी बेहतर बनाने की जरूरत है। देहात इलाके व कस्बों में सेवाओं को बेहतर बनाने से मरीजों की जिला स्तरीय अस्पतालों में भीड़ कम होगी और मरीजों को मंहगी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निजी अस्पतालों से भी बचाव हो सकेगा।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.