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शिक्षक व रक्षक बने कवि, कविताओं से कर रहे जागरूक

कोरोना फैलने से पूरी तरह से रुके। यह आगे न बढ़े।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Apr 2020 01:17 AM (IST)Updated: Sat, 04 Apr 2020 06:07 AM (IST)
शिक्षक व रक्षक बने कवि, कविताओं से कर रहे जागरूक
शिक्षक व रक्षक बने कवि, कविताओं से कर रहे जागरूक

अंकित शर्मा, जालंधर

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कोरोना फैलने से पूरी तरह से रुके। यह आगे न बढ़े। इसलिए ही जनता क‌र्फ्यू, लॉक डाउन और फिर क‌र्फ्यू लगाया है। इसके चलते हर कोई अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए घरों में समय बीता रहा है। ऐसे में जहां कोई क्रिएटिविटी को निखार रहा है, वहीं कइयों ने मन में सोए हुए कवि को जगाकर रचनाओं से हर किसी में नई उमंग भर दी है। लोगों में जोश भरने में शिक्षक, संस्थानों के मुखी और थाना जीआरपी के मुखी अहम भूमिका निभा रहे हैं।

जन जागरूकता के लिए मेहरचंद पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्रिसिपल डॉ. जगरूप सिंह ने कोरोना विषय पर कविता लिखी। जिसके बोल हैं, कोरोना-कोरोना। दोस्तों अब काहे का रोना। जब आन पड़ी है विपदा घर में रहना। जो संदेश मिले हमको मानों सब कहना। ना करो मनमानी छोड़ो ये फितरत इंसानी। साफ करो घर का कोना-कोना। दोस्तों अब काहे का रोना.. इस तरह से उन्होंने सभी को कोरोना वायरस से बचाव का संदेश दिया।

बंदे पशु सब बेहाल हो गए। इवें लगदा जीवें कई साल हो गए। चिड़ियां, पंछी मारन उडारियां असमान, उनां लई साफ हो गए। कुदरत की वरताइया कहर। घरां चो अखबार गायब हो गए। समझन जिहड़े विच कोरोना नूं। ऊह बलैकीये मालामाल हो गए। इस कविता के जरिए गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी कॉलेज लाडोवाली के ओएसडी कमलेश सिंह दुग्गल ने लॉकडाउन और क‌र्फ्यू के दौरान घर और बाहर स्थिति को जाहिर किया है। इसमें बताया कि किस प्रकार क‌र्फ्यू की आड़ में सामान को ब्लैक में बेचा जा रहा है।

फर्ज के साथ कविता से दे रहे जागरूकता का संदेश

इसी तरह जीआरपी के एसएचओ धर्मेंद्र कल्याण अपनी ड्यूटी के साथ-साथ लोगों को कविता के जरिए भी जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने कविता में कुछ इस प्रकार कुदरत और इंसान के रिश्ते को जोड़ा है, तत्त विच महामारी नको नक तूं पर दित्ती। एक वायरस ने कुल जहां दी जान मुट्ठी विच कर दिती। तूं सिरजी सी सुंदर रचना रख के नाप पैमाने विच। बंदे ने दिमाग वरत के पाया गंद जमाने विच। उल्टे हत्थ दे चपेड़ कुदरत ने खिच के ऐसी जड़ दित्ती। इक वायरस ने कुल जहां दी जान मुट्ठी विच कर दिती।


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