हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट अप्वाइंटमेंट सिस्टम नाकाम, बेवजह लोगों को लाइन में लगाया जा रहा
फिटिंग सेंटर पर भी अव्यवस्था फैली है। किस काउंटर पर कौन सा काम होना है कुछ पता नहीं चलता। कर्मचारी की पहचान करना भी मुश्किल है।
जालंधर [मनीष शर्मा]। पुराने वाहन पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने के ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट सिस्टम को कंपनी के ही कर्मचारी नाकाम करने में जुटे हैं। लोगों को अप्वाइंटमेंट तो आसानी से मिल जाती है लेकिन प्रतापपुरा स्थित फिटिंग सेंटर पर लाइन में लगकर धक्के खाने को मजबूर होना पड़ता है। इससे परेशान होकर लोगों को एजेंटों की शरण में जाने को मजबूर किया जा रहा है। फिटिंग सेंटर पर भी अव्यवस्था फैली है। किस काउंटर पर कौन सा काम होना है, कुछ पता नहीं चलता। यहां कौन नंबर प्लेट वाली एग्रोस इंपेक्स कंपनी का कर्मचारी है और कौन आम आदमी, कोई नहीं जानता। किसी कर्मचारी ने ड्रेस नहीं पहनी और न ही गले में आई कार्ड।
यह हालात तब हैं जब चंद दिन पहले कंपनी के राज्य बिजनेस हेड सुधीर गोयल दौरा करके गए थे। उन्होंने कहा ता कि लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर, उनके जाते ही नंबर प्लेट सेंटर पर तैनात कर्मचारियों ने उनके भरोसे पर पानी फेर दिया। इन्हीं हालात का जायजा लेने के लिए 'दैनिक जागरण' ने इसका रियलिटी चेक किया। पढ़िए अप्वाइंटमेंट लेने के बावजूद कैसे लगी हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट...
अप्वाइंटमेंट टाइम पर पहुंचे तो लाइन में लगा दिया
11 जनवरी को हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने वाली कंपनी की वेबसाइट पर फीस जमा की। कार के दो नंबर प्लेट के लिए 469 रुपये जमा करने के बाद 21 जनवरी को सुबह साढ़े 11 बजे से साढ़े 12 बजे के बीच की अप्वाइंटमेंट ली। 20 जनवरी को ही एसएमएस आ गया कि नंबर प्लेट तैयार हैं, आप इन्हें लगवाने के लिए वाहन समेत जाने की कृपा करें। मंगलवार को वाहन लेकर हम तय समय पर लगभग पौने 12 बजे प्रतापपुरा नंबर प्लेट फिटिंग सेंटर पहुंचे। यहां दो काउंटरों पर लंबी लाइन लगी थी। हमने दफ्तर के मेन गेट पर खड़े कर्मचारी को बताया कि हमारे पास अप्वाइंटमेंट है। उसने कहा कि लाइन में लग जाओ। यह लाइन उन लोगों की थी, जिन्होंने ऑनलाइन फीस जमा तो की लेकिन अप्वाइंटमेंट नहीं ली।
करीब 15 मिनट खड़े रहने के बाद भी नंबर नहीं आया। न ही कोई कर्मचारी बता रहा था कि अगर लाइन में लगना है तो अप्वाइंटमेंट लेने का क्या फायदा। बमुश्किल खिड़की पर पहुंचकर कर्मचारी को अप्वाइंटमेंट बताई तो उसने कहा कि यह अप्वाइंटमेंट की लाइन नहीं है। दूसरी लाइन में खड़े हुए तो वहां नंबर आने पर कहा गया कि यह लाइन सीधे आवेदन करने वालों की है। इस परेशानी के बाद कंपनी के पंजाब इंचार्ज अर्जुन से बात की तो उन्होंने सेंटर के इंचार्ज निखिल को मोबाइल की लाइन पर लिया और फटकार लगाई कि अप्वाइंटमेंट वाले लोग जब सही वक्त पर आए हैं तो लाइन में क्यों लगवाया है? इसके बाद कर्मचारी जागे।
सेंटर इंचार्ज निखिल ढूंढते हुए आए और अप्वाइंटमेंट स्लिप लेकर नंबर प्लेटें निकलवाई और 15 मिनट में गाड़ी में फिट करवा दीं। फिर वाहन के अगले शीशे पर दस मिनट नंबर प्लेट का स्टिकर लगाने में लगे। हालांकि पूरा काम आधे घंटे में ही निपट गया। मामला अधिकारियों तक पहुंच चुका था तो तब सेंटर इंचार्ज भीड़ को आवाज मारते रहे कि किसी की अप्वाइंटमेंट हो तो वो लाइन में न लगे। वो सीधे नंबर प्लेट लगवाएं। पंजाब इंचार्ज अर्जुन ने कहा कि अप्वाइंटमेंट वालों को लाइन में लगने की जरूरत नहीं।
कमियां जो दूर होनी चाहिए
- किस काउंटर पर कौन सा काम हो रहा है, यह लिखा जाना चाहिए।
- अप्वाइंटमेंट लेने वाले किस काउंटर पर जाएं, इसकी व्यवस्था होनी चाहिए।
- काउंटर सिर्फ दो हैं, राज्य बिजनेस हैड के कहने के बावजूद तीसरा नहीं खुला, यह जल्द खुलना चाहिए।
- महिलाओं व वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग काउंटर होना चाहिए।
- कर्मचारियों की ड्रेस होनी चाहिए ताकि भीड़ में अलग पहचान हो। आइकार्ड तो हर हाल में होना चाहिए।