उत्तराखंड के लोगों को खूब रास आया पंजाब का माहौल, हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर बनाई अलग पहचान
उत्तराखंड के लोग पंजाब में न केवल सरकारी महकमों में सेवाएं देने के लिए चुने गए बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने कारोबार में भी अपनी पहचान बनाई।
जेएनएन, जालंधर। सुविधाओं को तरसते उत्तराखंड के पहाड़ों की तरफ हाकिमों की अनदेखी ने ऐसा जख्म दिया कि मेहनत से कामयाबी पाने पर भरोसा करने वाले उत्तराखंड के लोगों को अपनी जन्मभूमि छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। हजारों लोग पहाड़ से पलायन कर गए। इनमें से बड़ी संख्या में बरसों पहले लोग पंजाब भी पहुंचे और यहां के लोग उनका सहारा बने। यहां का माहौल उत्तराखंड के लोगों को खूब रास आया और अपनी मेहनत के बलबूते न केवल वो पंजाब में सरकारी महकमों में सेवाएं देने के लिए चुने गए बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने कारोबार में भी अपनी पहचान बनाई। इस दौरान पंजाब व पंजाबियों से भी उन्हें पूरा सहयोग मिला। शुरूआती दौर में आए उत्तराखंड के लोग बताते हैं कि जब पहले आए तो यहां की भाषा और संस्कृति बिल्कुल अलग थी, लेकिन अब तो वो पंजाबी पूरी तरह समझ जाते हैं और काफी हद तक बोल भी लेते हैं। यही वजह रही कि पंजाब आकर उन्हें कभी परायापन महसूस नहीं हुआ और मेहनत व पर्याप्त मौकों को कर्मशीलता से उन्होंने अपनी कामयाबी में ढाल दिया।
अमीर विरासत को समझने का मिला मौका
जालंधर कैंट के रहने वाले भुवन चंद जोशी का कहना है कि मैं पंजाब में ही पला-बढ़ा हूं। 1971 में रानीखेत के मजेठी गांव में जन्म हुआ था। जन्म के चार साल बाद अभिभावकों के साथ जालंधर में आ गया। 1975 में जालंधर आने के बाद कैंट बोर्ड से ही मेरी सारी पढ़ाई हुई। बैंक ऑफ बड़ौदा में नौकरी लग गई। अब मैं यहां बिजनेस एसोसिएट हूं। मुङो तो बचपन से ही पंजाब की अमीर विरासत व संपन्न कल्चर को जानने-समझने के साथ जीने का मौका मिला। अब मैंने यहां घर बना लिया है, परिवार के साथ यहीं रह रहे हैं।
पंजाब ने पुलिस में नौकरी करने का सपना पूरा किया
हर्षा सिंह का कहना है कि मेरे कुछ जानकार पंजाब में थे। मैं भी उनके साथ अल्मोड़ा से यहां आ गया। यह 1970-71 की बात होगी। यहां आकर 4-5 साल तो ऐसे ही निकल गए। पुलिस की तरफ आकर्षण था और उन दिनों भर्ती निकली तो मैंने भी पुलिस में किस्मत आजमाने की सोची। 1977 में मैं पंजाब पुलिस में भर्ती हो गया। 2011 में मेरी रिटायरमेंट हो गई। अब यहीं रामां मंडी के पास घर बना लिया है और दो बेटे भी अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं।
पंजाब ने सब कुछ दिया अब हम शिक्षा बांट रहे
दीवान सिंह ने बताया कि अल्मोड़ा जिले के गांव ढांग से 1962 में घर से निकला था। उसके बाद सीधे चंडीगढ़ आया। वहां नौकरी करने लगा। इसी दौरान पंजाब मंडी बोर्ड में भर्ती निकली। मैंने भी सोचा कि किस्मत आजमाने में क्या हर्ज है और उसमें नौकरी लग गई। पहले चंडीगढ़ में और फिर मुक्तसर में तैनाती रही। 2012 में सेवामुक्ति हो गई। बेटा जालंधर में शिफ्ट हो गया जबकि पत्नी संतोष मुक्तसर में ही सीनियर सेकेंडरी स्कूल चला रही हैं। अब पंजाब में ही आशियाना भी बना लिया है।
पंजाबी दोस्तों ने कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं बाहर का हूं
कमला विहार के रहने वाले चंडी प्रसाद नौटियाल का कहना है कि पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव जसकोट में जन्म हुआ। 1974 में 23 साल की उम्र में घर से निकलकर जालंधर आ गया। यहां आया तो मुङो लगा कि शायद भाषा मेरे आड़े आएगी लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं। इसके लिए मैं अपने शुरूआत में मिले कुछ पंजाबी दोस्तों पर मान करूंगा कि उन्होंने कभी मुङो महसूस नहीं होने दिया कि मैं उत्तराखंड से पंजाब में रहने आया हूं। 1975 में बैंक ऑफ इंडिया में जॉब मिल गई। अब बैंक में हेड कैशियर के तौर पर काम कर रहा हूं।
करियर को ठहराव और मुकाम पंजाब में आकर ही मिला
कमल विहार के बलवंत रावत का कहना है कि मैं 1984 में उत्तराखंड स्थित पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव बैजरो से निकला था। दिल्ली फिर गाजियाबाद में काम किया। सिक्योरिटी में भी रहा लेकिन करियर को ठहराव व मुकाम मिला पंजाब में। 1986 में अमृतसर में पहले कंबल फैक्ट्री में नौकरी की। फिर अमृतसर में ही बिजली बोर्ड में डेलीवेज के तौर पर नौकरी शुरू कर दी। 1992 में तबादला जालंधर हो गया। अब असिस्टेंट लाइनमैन के तौर पर काम कर रहा हूं।