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शहरनामाः मेयर राजा और निगम कमिश्नर की सियासत में पिस रहे शहरवासी

इस बार मेयर ने कूड़ा उठाने वाली लोडेड गाड़ियों का वजन करने की व्यवस्था की। फिर क्या था कमिश्नर के समर्थन वाले ड्राइवर मेयर के खिलाफ हो गए और काम ठप कर दिया।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 12:14 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 12:14 PM (IST)
शहरनामाः मेयर राजा और निगम कमिश्नर की सियासत में पिस रहे शहरवासी
शहरनामाः मेयर राजा और निगम कमिश्नर की सियासत में पिस रहे शहरवासी

जालंधर, [मनोज त्रिपाठी]। जालंधर में कब किस मुद्दे पर सियासत गरम हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। कारण यह है कि सियासी लोगों के इस शहर में हर तरफ सियासत का ही बोलबाला है। इन दिनों निगम में कूड़े को लेकर सियासत गरमाई है। कोरोना संकट से पहले शहर में रोजाना औसतन 500 टन कूड़ा निकलता था। जब से लॉकडाउन हुआ, रोजाना करीब 300-350 टन कूड़ा निकल रहा है। इस कूड़े की लिफ्टिंग और इसे डंप तक पहुंचाने के मुद्दे को लेकर निगम में पिछले 15 सालों से सियासत चल रही है। इस बार मेयर ने कूड़ा उठाने वाली लोडेड गाड़ियों का वजन करने की व्यवस्था की। फिर क्या था, कमिश्नर के समर्थन वाले ड्राइवर मेयर के खिलाफ हो गए और काम ठप कर दिया। हालांकि बाद में काम शुरू हो गया। मामले में अंदर की सियासत तो मेयर व कमिश्नर के बीच ही है, लेकिन पिस शहरवासी व मुलाजिम रहे हैं।

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किरकिरी हुई तो छापेमारी शुरू

मामला शराब तस्करी से जुड़ा है। कोरोना संकट में कर्फ्यू लागू होने के बाद भी जिले भर में शराब की सप्लाई धड़ल्ले से होती रही। इस पर ठेकेदार भी चुप्पी साधे रहे और अधिकारी भी। पुलिस का तो कहना ही क्या। एक हजार से अधिक नाकों पर तैनात जवानों की नाक के नीचे से ही शराब तस्करों ने लोगों को ऑन डिमांड शराब की सप्लाई की। यह सब मिलीभगत के बिना असंभव ही लगता है। जब रेवेन्यू लॉस हुआ तो सरकार ने प्रशासन को आदेश दे दिए कि ठेके खुलवाए जाएं। पंजाब में पहली बार ऐसा हुआ कि 55 दिन बाद ठेके खोले जाएं और ठेकों पर ग्राहक न के बराबर हों। इसके बाद सरकार के सामने पुलिस की पोल खुली और किरकिरी भी हुई। अब अपनी साख बचाने के लिए पुुलिस ने आनन-फानन में अवैध शराब बनाने वालों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है।

कोरोना ने बढ़ा दिया इंतजार

कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते तमाम लोग घर जाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। हमारे नगर निगम के कमिश्नर भी इन्हीं में शामिल हैं। वैसे तो चार महीने पहले ही महोदय को डेपुटेशन पर भेजने की तैयारी हो चुकी थी, लेकिन राज्य सरकार ने उनकी फाइल काफी लटकाने के बाद क्लीयर की। इसके बाद मामला केंद्र सरकार के पास लंबित हो गया। फिर वहां से कुछ उम्मीद बंधी। इसके बाद वह जालंधर से विदाई के लिए दिन गिन ही रहे थे कि कोरोना ने दस्तक दी और केंद्र सरकार का ध्यान उधर लग गया। जब सरकारों की पहली प्राथमिकता कोरोना से लड़ाई हो गई तो महोदय की फाइल कौन क्लीयर करवाए। शायद यही वजह है कि कोरोना के खात्मे तक अब महोदय की जालंधर से विदाई मुश्किल ही है। देखना है कि अपने गृह राज्य जाने के लिए महोदय को अभी कितना इंतजार करना पड़ेगा।

कब तक अपडेट होगा रिकॉर्ड...

मामला जिला प्रशासन से जुड़ा है। बीते दो महीनों से कोरोना के प्रकोप के चलते सरकार सहित तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से प्रशासन को राहत सामग्री से लेकर नकद धनराशि तक उपलब्ध करवाई गई। इस दौरान प्रशासन की ओर से भी रोजाना विभिन्न इलाकों में जरूरतमंदों को राहत देने के लिए खाद्य सामग्री के हजारों पैकेट वितरित किए जा रहे हैं। हालांकि जब खबरनवीस ने जानकारी मांगी कि महामारी को लेकर जिला प्रशासन के पास अब तक कितनी धनराशि आई और कितनी खर्च की गई, तो प्रशासन ने रिकॉर्ड अपडेट करने का बहाना बना दिया। इसके बाद प्रशासन ने रिकॉर्ड भी अपडेट करना शुरू कर दिया। अब देखना यह है कि जिस तरह सतलुज में बाढ़ के दौरान 200 करोड़ से ज्यादा के नुकसान की पड़ताल की रिपोर्ट दो महीने बाद तैयार हुई थी, कहीं इस बार भी यह रिकॉर्ड कोरोना के खत्म होने के बाद अपडेट न हो। 


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