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मुद्दा : सैकड़ों निजी बहुमंजिला इमारतों में आग से बचाव का इंतजाम नहीं, एक इमारत में चल रहे हैं छोटे-छोटे ऑफिस

शहर में बनीं सैकड़ों मल्टी स्टोरी इमारतें अस्पताल शोरूम बिना आग बुझाने के इंतजामों के कारण लोगों की जान से खेल रहे हैं।

By Edited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 10:26 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2019 10:26 PM (IST)
मुद्दा : सैकड़ों निजी बहुमंजिला इमारतों में आग से बचाव का इंतजाम नहीं, एक इमारत में चल रहे हैं छोटे-छोटे ऑफिस
मुद्दा : सैकड़ों निजी बहुमंजिला इमारतों में आग से बचाव का इंतजाम नहीं, एक इमारत में चल रहे हैं छोटे-छोटे ऑफिस
जागरण संवाददाता जालंधर शहर में बनीं सैकड़ों मल्टी स्टोरी इमारतें, अस्पताल, शोरूम बिना आग बुझाने के इंतजामों के कारण लोगों की जान से खेल रहे हैं। इनमें से कई के पास तो न फायर सेफ्टी के नियमों के मुताबिक बि¨ल्डग बनाने का सर्टिफिकेट है और न ही आग बुझाने के लिए उपकरणों तक का इंतजाम हैं। ये वे इमारते हैं जोकि 20 साल पहले बनीं। हाल ही में बनी इमारतों इमारतों में तो फायर सेफ्टी एक्ट के तहत इंतजाम जरूरी हो गए थे और नक्शे में मुताबिक आग से बचने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था, रास्ते का इंतजाम किया गया है लेकिन पुरानी इमारतों में ऐसे कोई इंतजाम नहीं हैं। इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो पा रही। जब यह इमारतें बनीं थीं तब बि¨ल्डग बायलाज और फायर सेफ्टी इतने सख्त नहीं थे। इन इमारतों पर अब कार्रवाई कैसे हो यह भी अफसरों को समझ नहीं आ रहा। अफसरों को फायर सेफ्टी एक्ट के तहत अभी तक कार्रवाई के अधिकार नहीं मिले। फायर ब्रिगेड के फायर अफसर रा¨जदर शर्मा का कहना है कि डिपार्टमेंट समय-समय पर इन इमारतों की जांच करता है और इमारत मालिकों से अपील करता है कि वह आग बुझाने के उपाए कर लें। इन पर अभी कार्रवाई नहीं हो पा रही। ------------------ हर प्रमुख सड़क पर नियम तोड़ कर बनी हैं इमारतें शहर की सभी प्रमुख सड़कों पर ऐसी इमारतें नियम तोड़ कर बनाई गई हैं। इनमें सबसे ज्यादा इमारतें बस स्टेंड के पास हैं। बस स्टैंड के पास दफ्तरों के लिए इमारतों की डिमांड हमेशा रहती है। बस स्टैंड के पास तो कई ऐसी इमारतें हैं जिनमें एक-एक फ्लोर कई ऑफिस बने हैं। इन इमारतों में आने-जाने का एक-एक ही रास्ता है। आग से बचने के लिए न तो कोई खास इंतजाम हैं और न ही इमरजैंसी रास्ता रखा है। इनमें से ज्यादातर में आइलेट्स सेंटर, इमिग्रेशन सेंटरों के ऑफिस हैं। ऐसी ही इमारतें नकोदर रोड, रामामंडी, कपूरथला रोड, डीएवी कालेज रोड, नेहरु गार्डन रोड, रेलवे रोड, सर्कुलर समेत उन सभी सड़कों पर हैं जो इलाके पिछले कुछ सालों में डवलप हुए हैं। ----------------- प्रभावशाली लोगों के कारण कार्रवाई नहीं इन इमारतों के खिलाफ नगर निगम का बि¨ल्डग डिपार्टमेंट कार्रवाई कम ही कर पाता है। जब यह बि¨ल्डग बनी तब भी इन्हें रोका नहीं जा सका। फायर ब्रिगेड दफ्तर के अफसर भी स्वीकार करते हैं कि बड़ी इमारतें प्रभावशाली लोगों की हैं। निर्माण के दौरान भी इन पर कार्रवाई नहीं होती थी क्योंकि राजनीतिक दबाव काफी रहता है। अब नई इमारतें बनाना मुश्किल हो गया है लेकिन पुरानी इमारतों में इंतजाम कैसे करवाया जाए, यह भी चुनौती है। ---------------- अस्पतालों, पैलसों में सबसे ज्यादा खतरा आग से बचाव के मामले में अस्पतालों में सबसे बड़ी लापरवाही है। पुराने समय में बने अस्पतालों में आग से काबू पाने के कुछ इंतजाम है लेकिन जिस तरह से अस्पतालों की बेसमेंट में पार्किंग की जगह लैब, कैंटीन समेत अन्य डिपार्टमेंट चल रहे हैं वह खतरे की घंटी हैं। इनके खिलाफ हाईकोर्ट में भी केस है। बेसमेंट खाली करने, पार्किंग का इंतजाम करने और सेफ्टी रुल्स पूरे करने के आदेश तो हैं लेकिन पूरा मामला कानूनी दांवपेच में फंसा हुआ है। ऐसा ही हाल पुराने समय में बने मैरिज पैलसों में भी है। इनमें से कई पर बंद होने की तलवार लटक रही है।

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