Move to Jagran APP

शाहकोट उपचुनाव में जीत का मार्जन घटा देगा नोटा

अन्य उम्मीदवार गाव-गाव जाकर खुद वोट मागने की बजाए अकाली व काग्रेस को वोट न देने का प्रचार कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 03:20 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 04:09 PM (IST)
शाहकोट उपचुनाव में जीत का मार्जन घटा देगा नोटा
शाहकोट उपचुनाव में जीत का मार्जन घटा देगा नोटा

कुसुम अग्निहोत्री, जालंधर : शाहकोट उपचुनाव में भले ही सीधी टक्कर अकाली व काग्रेस में उभर कर सामने आई है, लेकिन नोटा दबाकर वोटर इस बार दोनों ही पार्टियों के वोट बैंक को प्रभावित करेगा क्योंकि शाहकोट में 13 के करीब छोटी पार्टियों व निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हैं। वे गाव-गाव जाकर खुद वोट मागने की बजाए अकाली व काग्रेस को वोट न देने का प्रचार कर रही है। 2017 विधानसभा चुनाव में पंजाब भर से 1.08 लाख लोगों ने वोटिंग के समय रूल 49-0 यानी वे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं डालेंगे का इस्तेमाल किया था और सबसे ज्यादा सुनाम में 1718 नोटा वोट पड़ी थी तो दूसरे नंबर पर खेमकरन में 1484 तथा तीसरे नंबर पर जालंधर कैंट में 1445 नोटा वोट पड़ी थी जबकि पंजाब के 38 हलके ऐसे थे जहा पर 1000 से ज्यादा नोटा वोट पड़े थे।

loksabha election banner

वहीं कुछ समय पहले हुए नगर पंचायत शाहकोट और बिलगा में हुई वोटिंग के दौरान 1 प्रतिशत से ऊपर मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था। इस प्रकार से नकारात्मक वोटिंग की तरफ बढ़ रहा लोगों का रुझान काफी चिंता का विषय है और इसको लेकर सभी पार्टियों के उम्मीदवारों को आत्म-चिंतन करने की गहन आवश्यकता है। अगर समय रहते राजनीतिक पार्टियों और इनके उम्मीदवारों ने इसको लेकर विचार नहीं किया तो आगामी चुनावों के अंदर इनकी परेशानिया काफी बढ़ सकती हैं। और इस बात का प्रभाव अब शाहकोट उपचुनावों के दौरान भी देखने को मिल रहा है। जहा पर बीएसपी, सीपीआई, भारतीय किसान यूनियन, पेंडू मजदूर यूनियन सहित व संगठन व दल काग्रेस व अकालियों के उम्मीदवार को वोट करने की बजाए नोटा का बटन दबाने के लिए प्रचार कर रहे हैं।

उम्मीदवार के जीत का मार्जन तय करेगी नोटा

जिस तरह से आज के वोटर खास तौर पर युवा वोटरों के अंदर वोट न डालने का प्रचलन बढ़ रहा है और इसके साथ ही किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट न डालकर नोटा का बटन दबाकर अपनी भड़ास निकालने का चलन शुरू हो चुका है, यह आने वाले समय में राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। क्योंकि यदि नोटा का यही रुझान रहा तो आने वाले समय में यह किसी भी उम्मीदवार के भविष्य को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभा सकती है। बीते विधानसभा चुनाव में शाहकोट हलके में 849 नोटा वोट पड़े थे। ऐसे में यदि इस बार छोटे दलों के प्रचार से प्रभावित हो लोगो ने नोटा का इस्तेमाल ज्यादा किया तो उम्मीदवारों की जीत का मार्जन नोटा तय करेंगे।

नोट है क्या और कब मिला इसका अधिकार

लोकसभा चुनाव 2014 में इस सुविधा की शुरुआत हुई थी। इसके बाद विधानसभा चुनावों में भी ईवीएम मशीन के अंदर नोटा का बटन लगाया गया। इसके तहत अगर वोटर ईवीएम में दर्ज किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता तो वह ईवीएम में दिए गए नोटा के बटन को प्रेस कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चुनाव आयोग ने इस तरह का प्रबंध किया है कि वोटर अपने फैसले को गुप्त रखने के अपने अधिकार का उल्लंघन किए बिना अपना वोट डालने का अधिकार इस्तेमाल कर सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.