अधिकारियों के जाल में फंसे सत्ता पक्ष के 65 पार्षद, दबकर रह गया विपक्षी पार्षदों का विरोध
बजट मीटिंग में निगम के कुल अस्सी कौंसलरों में 65 कांग्रेस भाजपा के आठ शिरोमणि अकाली दल के पांच व दो आजाद कौंसलर हैं लेकिन किसी ने बजट पर सवाल नहीं किया।
जालंधर [मनीष शर्मा]। टूटी सड़कों, गंदगी के ढेर और सीवरेज की समस्या जैसे मुद्दों पर भरे हाउस में शर्मिंदगी व जलालत से बचने के लिए निगम अफसरों की रणनीति 80 कौंसलरों पर भारी पड़ी। साल 2019-20 के लिए निगम के 514.50 करोड़ के बजट के लिए रखी बैठक में सत्ता पक्ष के कौंसलर अफसरों के जाल में इस कदर फंसे कि विपक्ष की रिवायती तौर पर उठाई आवाज भी दबकर रह गई। नतीजा, बिना किसी विरोध व जवाबदेही के अफसर बजट पास करा ले गए।
यह बात इसलिए अहम है क्योंकि शहरियों ने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए यह अस्सी कौंसलर चुने हैं। शहरियों से कमाई के नाम पर साल भर कहां से कितनी वसूली होगी? और वो कहां-कहां खर्च किया जाएगा? यह देखना इन्हीं कौंसलरों का काम है। लेकिन, बजट पर चर्चा के लिए बुलाए गई हाउस मीटिंग में किसी ने कोई चर्चा ही नहीं की। निगम के कुल अस्सी कौंसलरों में 65 कांग्रेस, भाजपा के आठ, शिरोमणि अकाली दल के पांच व दो आजाद कौंसलर हैं लेकिन किसी ने बजट पर सवाल नहीं किया। जैसा बजट अफसरों ने चाहा, वैसा ही बनाया और इन कौंसलरों को बुलाकर उसे उसी तरह पास करवा लिया।
बजट में कौंसलरों की ओर से कोई भी किंतु-परंतु नहीं करने से उन पर सवाल उठना भी लाजिमी है क्योंकि जब लोग सुविधाएं मांगते हैं तो सब फंड की कमी का रोना रोने लग जाते हैं। जबकि फंड तो तभी मिलेगा जब कौंसलर बजट पास होने पर उस पर कोई बहस करें और इलाके के विकास के लिए फंड मांगें।
राजहित के आगे जनहित को ठेंगा
निगम में कांग्रेस के 65 कौंसलरों ने सिर्फ इसलिए जनहित को ठेंगा दिखा दिया क्योंकि राज्य में उनकी सरकार है और निगम में भी उनकी सत्ता है। अगर वे बजट पर सवाल उठाते तो उनकी ही पार्टी की किरकिरी होती इसलिए बजट पर कोई कुछ नहीं बोला। उलटा बजट पास करवाने की उन्हें इतनी जल्दी थी कि वे पहले तो बजट पेश करने की मांग करते रहे और जब बजट पेश किया तो पास-पास कह कर चलते बने।
विपक्षी भाजपा कौंसलरों ने टूटी सड़कों व विकास न होने के मुद्दे उठाए तो तय स्क्रिप्ट के हिसाब से कांग्रेसी कौंसलर सीटों से खड़े हो गए। माइक थामा और मेयर जगदीश राजा से कहा कि बजट पास हो गया... बजट पास हो गया। अफसरों ने कैसा बजट बनाया और शहर में कहां-कहां पैसा खर्चा किया जाएगा? किसी ने नहीं पूछा। जैसा अफसरों को तो यही चाहिए था और ठीक वैसा ही हो गया।
विपक्षी हैं तो विरोध ही करेंगे
निगम हाउस में विपक्ष के नाम पर भाजपा के आठ व अकाली दल के पांच कौंसलर हैं। बजट का पोस्टमार्टम कर अफसरों से पूछ-पड़ताल करने की जगह वो सिर्फ रिवायती विरोध तक सीमित होकर रह गए। मेयर जगदीश राजा ने कहा भी कि बजट पर चर्चा कर ली जाए। टाइम भी दिया कि पांच मिनट के भीतर चर्चा शुरू हो जाए तो ठीक है वरना बजट पास समझेंगे। विपक्षी नहीं माने और विरोध जारी रहा। मुद्दे कम और नींव पत्थरों पर नाम न लिखने की क्रेडिट की मारामारी ज्यादा, सत्ताधारी कांग्रेस भी यही चाहती थी और बिना चर्चा मेयर ने बजट पास करने की घोषणा की और कुर्सी से उठकर चल दिए।
जिस शहर ने दी कुर्सी, उसके लिए टाइम नहीं
बड़ा सवाल शहर के उन नेताओं पर भी खड़ा होता है, जिन्हें इसी शहर ने वोटें डालकर विधायक की कुर्सी पर बैठाया, लेकिन जब उसी शहर से कमाई के नाम पर वसूली और उनकी सुविधाओं के बारे में अफसरों के बनाए बजट पर चर्चा होनी थी तो किसी को वहां आने की फुर्सत नहीं मिली। विधायक सुशील रिंकू, विधायक राजिंदर बेरी, विधायक बावा हैनरी व विधायक परगट सिंह हाउस में नहीं पहुंचे। हैरत की बात यह है कि लोकसभा चुनाव करीब हैं और ऐसे में भी विधायक की शहर और शहरियों के प्रति अनदेखी जारी है।
जानिए क्यों जरूरी है बजट
चार्टेड अकाउंटेंट अश्विनी गुप्ता कहते हैं कि शहर के लिए निगम बजट का महत्व देश के बजट से भी ज्यादा है, क्योंकि निगम बजट में जो प्रावधान किए जाते हैं, वो सीधे शहर व शहरियों पर असर करते हैं। मसलन, बजट में उनकी सड़क, सीवरेज, स्ट्रीट लाइट जैसी सुविधाओं के लिए क्या प्रबंध किए गए हैं। बजट के महत्व को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि यह आमदनी व खर्च का ऐसा संतुलन है, जिस पर शहर को बुनियादी सुविधाएं देने के लिए निगम की आर्थिक स्थिति निर्भर करती है। कमाई कम और खर्चा ज्यादा हो गया तो आर्थिक तंगी होने के आसार बन जाते हैं।