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Movement in lockdown: श्रमिकों का पलायन लाया रिश्तों में कड़वाहट

श्रमिकों के पलायन से उद्योगपतियों व श्रमिकों में खटास पैदा हो गई है। श्रमिकों के पलायन से काम प्रभावित हो रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 11 May 2020 08:31 AM (IST)Updated: Mon, 11 May 2020 08:31 AM (IST)
Movement in lockdown: श्रमिकों का पलायन लाया रिश्तों में कड़वाहट
Movement in lockdown: श्रमिकों का पलायन लाया रिश्तों में कड़वाहट

जालंधर [मनुपाल शर्मा]। Coronalockdown के बीच औद्योगिक इकाइयों की वर्किंग शुरू होने के बावजूद श्रमिकों का वापस अपने गृह राज्य लौट जाना उद्योगपतियों और श्रमिकों के बीच रिश्ते में कड़वाहट ले आया है। औद्योगिक इकाइयों की वर्किंग शुरू होने के साथ ही श्रमिकों के वापस लौटने से औद्योगिक उत्पादन प्रभावित होने लगा है।

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लॉकडाउन होने के लगभग एक माह तक श्रमिक जालंधर में ही टिके हुए थे। उद्योगपतियों का तर्क था कि वह उन्हें राशन और पैसा उपलब्ध करवा रहे हैं। कई मौकों पर औद्योगिक इकाइयों के बाहर श्रमिकों को लाइन में लगवा कर राशन और पैसे देने के फोटो भी सार्वजनिक किए गए। इसी बीच, केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर पंजाब सरकार ने भी औद्योगिक इकाइयों को दोबारा से शुरू करने की इजाजत प्रदान कर दी। लगभग 2000 इकाइयों ने उत्पादन शुरू करने की प्रक्रिया भी चालू कर दी। इसी दौरान श्रमिकों को उनके गृह राज्य वापस भिजवाने के लिए ट्रेनों का आवागमन भी शुरू कर दिया गया।

श्रमिकों के लिए विशेष तौर पर सरकार ने एक पोर्टल बनवाया और वहां पर घर जाने के इ'छुक श्रमिकों से जानकारी मांगी। जालंधर से ही लगभग 70,000 श्रमिकों ने इस पोर्टल पर खुद को रजिस्टर कर लिया और धीरे-धीरे श्रमिकों को उनके मोबाइल पर उनकी ट्रेन संबंधी संदेश आने लगे। बीते लगभग 5 दिन में ही 18000 से ज्यादा श्रमिक इन्हीं ट्रेनों में बैठकर वापस अपने गृह राज्य लौट गए।

श्रमिकों के वापस लौटते ही उद्योग जगत में हड़कंप मचना स्वाभाविक था। उद्योगपतियों ने वजह यह बताई कि एक माह तक राशन और पैसा लेने के बावजूद जब श्रमिक काम पर लौटे तो उन्होंने कुछ पैसे की मांग फिर से की। उन्हें वह पैसा भी दिया गया, लेकिन जैसे ही श्रमिकों के मोबाइल पर ट्रेन संबंधी संदेश आने लगे, श्रमिक बिना बताए ही चलती हुई इकाइयों को छोड़कर ट्रेन में जा बैठने लगे हैं। इससे उद्योगपतियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

जालंधर इंडस्ट्रियल फोकल प्वाइंट एक्सटेंशन एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र ङ्क्षसह सग्गू ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं कि श्रमिक चलती हुई फर्नेस छोड़कर फैक्ट्री से बाहर निकल आए और ट्रेन पकडऩे के लिए चल दिए।

हालांकि श्रमिकों के वापस गृह राज्य लौटने को लेकर श्रमिक नेताओं के अपने दावे हैं।

श्रमिक नेताओं का कहना है कि अगर एक माह तक उद्योगपतियों ने श्रमिकों को राशन और पैसा उपलब्ध करवाया होता तो वह औद्योगिक उत्पादन शुरू हो जाने के बावजूद किसी भी हालत में गृह राज्य लौटने के लिए तैयार न होते। श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले संजीव पांडे, मनोहर मिश्रा आदि ने कहा कि श्रमिकों को भूखे मरने की नौबत आ गई थी। खाने की तलाश में श्रमिकों ने कई रातें सड़कों पर बिताई। प्रशासन की तरफ से किए गए इंतजाम भी नाकाफी साबित हुए तो श्रमिकों के पास वापस गृह राज्य लौट जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था। महामारी के समय घरवालों से दूर भूख से ही दम तोडऩे से अच्छा अपने परिवार के पास पहुंचना है।


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