डीएसजीपीसी चुनाव से पहले बागियों के साथ शिरोमणि अकाली दल की मुश्किलें बढ़ाएंगे जीके
मनजीत सिंह जीके ने अपने इरादे भी स्पष्ट किए हैं कि जनवरी 2021 में होने वाले डीएसजीपीसी चुनाव शिअद और आम आदमी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं।
जालंधर, जेएनएन। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के पूर्व प्रधान मनजीत सिंह जीके दस महीने बाद होने वाले डीएसजीपीसी के चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल (बादल) के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। एक दिन पहले जालंधर के दौरे पर आए मनजीत सिंह जीके ने अकाली दल बादल के कई बागी नेताओं से मुलाकात की है।
जीके ने अपने इरादे भी स्पष्ट किए हैं कि जनवरी 2021 में होने वाले डीएसजीपीसी चुनाव शिअद और आम आदमी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं। जीके शिअद में रहते हुए दो बार कमेटी का चुनाव जीते और प्रधान बने, लेकिन अब उनका शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल से 36 का आंकड़ा है। जीके ने दिल्ली चुनाव के बहाने सुखबीर और अरविंद केजरीवाल के लिए अभी से चुनौतियां पेश करनी शुरू कर दी हैं। वे पंजाब में लगातार आ रहे हैं और कई नेताओं से संपर्क कर चुके हैं। दिल्ली में बागी अकालियों के साथ रैली करके ताकत भी दिखाई है। धार्मिक आधार पर राजनीतिक पकड़ बनाने वाले शिअद के लिए यह चुनाव अहम रहेंगे।
डीएसजीपीसी चुनाव 2021 में हैं, जबकि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में है। इसी दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव भी हो सकते हैं। अगर दिल्ली चुनाव में शिअद को सफलता नहीं मिल पाती है तो इसका असर एसजीपीसी चुनाव और पंजाब विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
भाजपा ने दिल्ली में अकालियों को नहीं दिया भाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिअद को भाव नहीं दिया। पंजाब में भी भाजपा से रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे। ऐसे में डीएसजीपीसी के चुनाव में भी शिअद को भाजपा से सहयोग मिलना मुश्किल है। पिछले दो चुनाव मनजीत सिंह जीके के दम पर ही जीते थे, लेकिन अब सबसे बड़ा मुकाबला ही उनसे हैं। अगर दिल्ली में चुनाव नहीं जीत पाए तो तो पंजाब विधानसभा चुनाव में वापसी की उम्मीद कर रहे अकाली दल को झटका लगेगा।
आम आदमी पार्टी खींच सकती है हाथ
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारी में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) 2021 में होने वाले डीएसजीपीसी चुनाव से हाथ खींच सकती हैं। पिछले चुनाव में आप ने पंथक सेवा दल के नाम से उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार पार्टी इससे बचना चाहेगी। गुरुद्वारा कमेटी चुनाव पूरी तरह से सिख वोट पर आधारित हैं और अगर पिछले चुनाव की तरह इस बार भी आम आदमी पार्टी को हार मिलती है तो उनके लिए पंजाब में सिख वोटरों को लुभाना मुश्किल हो जाएगा।
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