Mahashivratri 2023: ये हैं पंजाब के प्राचीन शिव मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर में लेटी अवस्था में महादेव
Mahashivratri यानी फाल्गुन माह की चतुर्दशी का दिन कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि का प्रराम्भा हुआ था। भगवान शिव और पार्वती के विवाह भी इसी दिन हुआ था। इसीलिए दुनियाभर के शिव मंदिरों में महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
आनलाइन डेस्क, चंडीगढ़। Mahashivratri 2023। महाशिवरात्रि यानी फाल्गुन मास की चतुर्दशी का दिन, कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। भगवान शिव और पार्वती के विवाह भी इसी दिन हुआ था। इसलिए दुनियाभर के शिव मंदिरों में महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा व रुद्राभिषेक करते हैं।
इस बार महाशिवरात्रि का त्यौहार 18 फरवरी को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि के लिए तमाम मंदिरों में विशेष इंतजाम किए गए हैं। मंदिरों में सुरक्षा को देखते हुए भी खास तैयारियां की गई हैं। आइये जानते हैं पंजाब के कुछ बड़े प्रमुख शिव मंदिरों के बारे में...
महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर गुरदासपुर से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलानौर कस्बे में है। यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां का शिवलिंग लेटी अवस्था में है और इसका आकार चौकोर है। मान्यता है कि यह शिवलिंग खुद प्रकट हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार लंकाधिपति रावण भगवान शिव को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर लंका आने के लिए विवश करना चाहता था। भगवान भोलेनाथ जानते थे, लेकिन वरदान के बंधन के कारण उन्होंने रावण से कहा कि यदि वह उन्हें नंगे पांव अपने कंधों पर उठाकर लंका ले जाएगा तो वह वहां रहेंगे। शिव वहां रह जाएंगे। यदि मार्ग में रावण ने उन्हें एक बार भी कहीं धरती पर रखा तो वह उसी स्थान पर स्थित हो जाएंगे।
भगवान शिव ने रची थी माया
कहा जाता है कि इसी दौरान भगवान शिव ने माया रची। रावण ने भगवान शिव को एक ब्राह्मण के कंधे पर बैठाकर खुद निवृत्त होने चला गया। इसी दौरान भगवान ने माया से अपना वजन बढ़ा दिया। ब्राह्रमण इतना वजन न सह सका और उसने भगवान को कंधे से उतार दिया। जब रावण वापस आया तो उसे उसे शिव का वचन याद आया। तब से यह स्थान पूजा जाता है। इस स्थान का नाम महाकलेश्वर मंदिर पड़ गया। काफी समय तक यह स्थान लोगों की नजरों से ओझल रहा। बाद में, बादशाह अकबर की ताजपोशी भी कलानौर में ही हुई थी।
जाता है कि अकबर का जो भी घोड़ा उस पवित्र स्थान के ऊपर से निकलता, वह लंगड़ा हो जाता था। जब ऐसा बार-बार होने लगा तो कुछ सैनिकों ने यहां पर खुदाई की। इस खुदाई में कुछ फीट नीचे समतल शिवलिंग प्रकट हुआ। सम्राट अकबर को जब यह पता चला तो उन्होंने यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया।
मुक्तेश्वर धाम
मुक्तेश्वर धाम पठानकोट के कंडी क्षेत्र के धार ब्लाक में है। यह शिवालिक की पहाड़ियों के बीच रावी नदी के तट पर बसे गांव डूंग में है। महाभारत काल के समय में यहां पांडवों ने गुफाएं बनाई थी। यह आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं। इन गुफाओं में से एक गुफा में महाकाल त्रिलोकी त्रिकालदर्शी भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित किया गया है। मान्यता के अनुसार यह 5511 वर्ष पुराना है। यह मंदिर पठानकोट से 20 किलोमीटर दूरी पर है। इस स्थान पर हर वर्ष चैत्र मास की अमावस्या के एक दिन पहले, अगले दिन और अमावस्या वाले दिन, सोमवती अमावस, महा शिवरात्री को मेला लगता है। महाशिवरात्रि के दिन यहां श्रद्धालुओं की खूब भीड़ उमड़ती है।
शास्त्रों के अनुसार जब पांडव कौरवों से जुए में सब कुछ हार गए तो उन्हें वनवास के साथ एक वर्ष का अज्ञातवास भी मिला। अज्ञातवास के अंतिम समय में पांडव रावी नदी के पास स्थित पहाड़ों मे आ गए। पहाड़ को दूर से देखने से यह स्थान दिखाई नहीं देता। उस समय पांडवों ने इस अज्ञात स्थान पर समय बिताना ठीक समझा तथा पहाड़ों का सीना चीर कर गुफाओं का निर्माण किया गया। सबसे बड़ी गुफा में बड़े भाई युधिष्ठिर के रहने का इंतजाम किया गया। गुफा में युधिष्ठिर के बैठने का उच्च्च स्थान बनाया गया।
यहां बैठ कर धर्मराज अपने भाइयों के साथ दिन भर की चर्चा करते और उनका मार्गदर्शन किया करते थे। इसी गुफा की बगल मे द्रौपदी रसोई का निर्माण भी किया गया। यहां पर भगवान भोले नाथ के शिवलिंग की स्थापना की गई। पांडव यहां नियमित पूजा अर्चना करते थे। पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर साक्षात भोले नाथ प्रकट हुए। उन्हें धर्मयुद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया।
नलास शिव मंदिर
राजपुरा से लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर गांव नलास है। यहां पर 550 वर्ष पुराना प्राचीन शिव मंदिर है। इसमें हर चौदस, महाशिवरात्रि व श्रावण माह में विशेष मेले का आयोजन होता है। मान्यता के अनुसार यहां का शिवलिग खुद प्रकट हुआ है। नलास में गुर्जरों के कुछ घर थे। उनके पास एक कपिला गाय थी। बताया जाता है कि कि जब कपिला गाय जंगल में चरने जाती थी तो घर लौटने से पहले एक झाड़ी के पीछे जाने से उसका दूध अपने आप थनों से बहना शुरू हो जाता था। कपिला जब घर लौटी तो उसका दूध खत्म हो चुका होता था। एक दिन कपिला गाय के मालिक को क्रोध आ गया। उसने झाड़ी की खुदाई की। खुदाई में शिवलिग पर कस्सी के प्रहार से खून की धार बह निकली। बाद में महाराजा पटियाला ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।