अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले में बयान देना खली को पड़ा भारी, प्रशंसकों ने कसा तंज
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर टीवी चैनलों की खबरों से खली भी चिढ़ गए। उन्होंने लिखा कि क्या इससे युवाअाें को सशक्त बना रहे हैं?। किसान खुदकुशी करते हैं? कई सैनिक शहीद हो रहे हैं कोरोना के खिलाफ अग्रिम पंक्ति में खड़े योद्धाओं की खबरें कहां हैं?।
जालंधर, [मनीष शर्मा] । डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में विदेशी पहलवानों को पटखनी देने वाले पंजाब पुलिस के जवान रहे दलीप सिंह राणा उर्फ द ग्रेट खली को प्रशंसकों ने ही पटखनी दे डाली। हुआ यूं कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर टीवी चैनलों की खबरों से खली भी चिढ़ गए। उन्होंने लिखा कि क्या इससे हम देश के युवा को सशक्त बना रहे हैं?।
कई किसान खुदकुशी करते हैं? कई सैनिक शहीद हो रहे हैं, कोरोना के खिलाफ अग्रिम पंक्ति में खड़े योद्धाओं की खबरें कहां हैं?। जैसे ही यह पोस्ट फेसबुक पर अपलोड हुई तो प्रशंसकों ने सुशांत सिंह राजपूत के समर्थन में कमेंट करने शुरू कर दिए। कुछेक लोगों ने खली की तारीफ की लेकिन ज्यादातर कमेंट्स सुशांत सिंह को इंसाफ दिलाने के लिए आने लगे। प्रशंसकों का यह रवैया देख खली ने अगले ही दिन एक और पोस्ट डाली कि उन्हेंं देश की न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।
पुलिस का 'देशभक्त'
यूं तो आजकल सबने खुद को रास आने के लिहाज से 'देशभक्त' होने की परिभाषा गढ़ ली है, लेकिन पुलिस ने नहीं। पुलिस का 'देशभक्त' आज भी गुपचुप अपना काम कर रहा है। दरअसल, जब भी कोई अपराधी या नशा तस्कर पकड़ा जाता है तो अमूमन पुलिस इसकी मुखबिरी होने की ही बात कहती है।
मुखबिर का नाम-पता गुप्त ही रखा जाता है, लेकिन पुलिस मुखबिर शब्द से परहेज करती है। इसलिए जब भी किसी मामले में कोई सूचना मिलती है तो कागजों में यही दर्ज कर दिया जाता है कि किसी देशभक्त ने उन्हेंं यह सूचना दी कि फलां जगह लूट की योजना बन रही है तो फलां जगह नशे की तस्करी हो रही है। अब यह 'देशभक्त' कौन है, इसका तो पता नहीं चलता लेकिन पुलिस कर्मचारी कहते हैं कि और क्या लिखें... जो हमें गलत के बारे में बता रहा, हमारे लिए तो वह किसी देशभक्त से कम नहीं है।
पुलिस के अपने दांव-पेंच
बात अपराध रोकने की हो या अपराधियों को पकडऩे की, पुलिस सभी दांव-पेंच आजमाती है। बात जब खुद की गलती की हो तो भी कसर नहीं छोड़ती। हुआ यूं कि रामामंडी से पीएपी चौक आते रास्ते में नाकाबंदी रहती है। पुलिस की चुस्ती का पता लेने एक फोटोग्राफर वहां जा पहुंचा। वहां गए तो उम्मीदें धाराशाही हो गई क्योंकि तीन कर्मचारी तैनात तो मिले लेकिन एक जूते उतार व बेल्ट खोलने के साथ पगड़ी उतारकर रेहड़ी पर सो रखा था।
दूसरा रेहड़ी के हैंडल पर बैठा था तो तीसरा फुटपाथ पर पसरा मिला। चेकिंग नहीं दिखी लेकिन फोटोग्राफर को तो फोटो खींचनी थी तो यही खींच ली। पहले तो पुलिसिया रौब दिखाया कि कर लो जो करना है, सीपी साब नूं दसणा तां दस देयो। फिर फोटोग्राफर की वीडियो भी बनाने लगे। फोटोग्राफर को झुकते न देख फिर सरेंडर ही कर दिया, 'देख लवो भाजी, मिन्नतां वाली गल इ ए।'
ये है हमारी जिम्मेदार पुलिस
कोरोना के दौर में पुलिस की जिम्मेदारी कुछ अलग हो गई। यहां अपराधी नहीं पकडऩा था, बल्कि कोरोना वायरस से लोगों को बचाना था। लेकिन कोरोना ने सामाजिक भेदभाव की शक्ल अख्तियार की तो सब कोरोना पॉजीटिव होने की बात छुपाने लगे। पुलिस कमिश्नरेट में तो कई बड़े अधिकारियों ने एक दूसरे से दूरी तक बना ली। कोई अधिकारी पॉजिटिव आया भी तो किसी को नहीं बताया, बस गुपचुप अपना इलाज कराते रहे। खबरनवीसों को लिस्ट खंगालने के बाद अंदाजे से ही अधिकारी की पुष्टि के लिए उनके जानकार खंगालने पड़ते हैं।
ऐसे थाना चार के एएसआइ सुरिंदर सिंह व थाना एक के एएसआइ जगदीश कुमार ने अफसरों को सीख दी। कोरोना पॉजिटिव आए तो उन्होंने सोशल मीडिया पर अपडेट कर दिया कि वो पॉजिटिव आ गए हैं, अगर कोई उनके संपर्क वाला है तो अपना टेस्ट करा ले। उनकी इस जिम्मेदारी की महकमे के लोग भी प्रशंसा कर रहे हैं।