मेयर बोले- हां मैं फेल हूं, लेकिन इसके लिए कमिश्नर व विधायक भी जिम्मेदार Jalandhar News
किसी भी शहर की मूलभूत जरूरतें सीवरेज पेयजल सड़कें व स्ट्रीट लाइट ही होती हैं। इन सभी मामलों में नगर निगम की कार्यप्रणाली लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी है।
जालंधर, जेएनएन। 'हर तरफ जाम सीवरेज, कूड़े के ढेर में तब्दील होता शहर, टूटी सड़कें और अंधेरे में डूबी गलियां।' पिछले दो सालों में स्मार्ट सिटी जालंधर की पहचान कुछ ऐसी ही बन गई है। किसी भी शहर की मूलभूत जरूरतें सीवरेज, पेयजल, सड़कें व स्ट्रीट लाइट ही होती हैं। इन सभी मामलों में बीते दो सालों में नगर निगम की कार्यप्रणाली लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी है। न ही मेयर खरे उतर सके हैं। इस बात को खुद मेयर जगदीश राज राजा स्वीकार भी करते हैं। मेयर दो साल के कार्यकाल में खुद को फेल मानते हैं, लेकिन इसके लिए निगम कमिश्नर व विधायकों को भी जिम्मेदार मानते हैं। दैनिक जागरण के वरिष्ठ मुख्य संवाददाता मनोज त्रिपाठी ने उनसे दो साल के कामों को लेकर सीधी बातचीत की।
सवाल: आप दो साल के कार्यकाल में खुद को दस में से कितने नंबर देते हो ?
जवाब: मैं खुद को नंबर तो नहीं दे सकता, लेकिन ओवरऑल संतुष्ट नहीं हूं।
सवाल: नंबर नहीं देने तो यह ही बता दें कि आप दो सालों में खुद को पास मानते हैं या फेल?
जवाब: (थोड़ा सोचकर) अभी तो मैं फेल ही हूं, लेकिन इसके लिए निगम कमिश्नर, अन्य अधिकारी व विधायक सभी बराबर के जिम्मेदार हैं।
सवाल: आपके फेल होने के पीछे दूसरे लोग कैसे जिम्मेदार हो गए?
जवाब: किसी ने मेरा खुलकर साथ नहीं दिया। विधायक शहर के विकास के विकास को लेकर गंभीर नहीं हैं। उन्होंने मेरी टांग खींचने के लिए अलावा किया ही क्या है। जरूरत है सभी के एकजुट होकर काम करने की। इससे ज्यादा बोलूंगा तो ठीक नहीं होगा, लेकिन जिस दिन मेरा मुंह खुला उस दिन सभी कठघरे में होंगे। मुझे सभी के बारे में सबकुछ पता है।
सवाल: आप जनता के सेवादार और शहर के प्रथम नागरिक हैं। शहर की दुर्दशा (बुरे हाल) के लिए तो आप ही जिम्मेदार होंगे। अपनी जवाबदेही से कैसे भाग सकते हैं?
जवाब: मैं जवाबदेही व जिम्मेदारी से कभी नहीं भागा, लेकिन विकास के लिए पैसे चाहिए। विधायक सरकार पर मुझसे ज्यादा दबाव बना सकते हैं। विभागीय स्तर पर रेवेन्यू जुटाने का काम निगम कमिश्नर व उनकी टीम का है। अगर इन दोनों फ्रंट पर मुझे साथ मिला होता तो आज शहर की हालत इतनी बुरी न होती।
सवाल: दो सालों में आप निगम की प्रशासनिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं ला पाए, न विधायकों पर दबाव बना सके और न ही अफसरों की कार्यप्रणाली ठीक कर सके। यह किसका फेल्योर है?
जवाब: ऑफ द रिकॉर्ड एक बात बोलता हूं... एक आइएएस को मैं क्या सिखाऊंगा। प्रशासनिक व्यवस्था मेरे हाथ में नहीं होती। विधायकों को खुद सोचना चाहिए कि दबाव बनाने की नौबत ही न आए। जब ऊपर की कार्यप्रणाली सही होगी तो नीचे अपने आप सही हो जाएगी।
सवाल: आप कार्रवाई की बजाय माफी देने में ज्यादा यकीन रखते हैं, कहीं यह वजह तो नहीं है कि आपका दवाब अधिकारी नहीं मानते। जब खराब काम पर ठेकेदार के खिलाफ कारवाई हो सकती है तो अधिकारियों के क्यों नहीं। दो सालों में आपने कितने अधिकारियों के खिलाफ कारवाई की सिफारिश की?
जवाब: मेरा मुंह न खुलवाओ... (हंसकर)। बस इतना बता रहा हूं कि मैंने इन सब की जानकारी मुख्यमंत्री तक को दे दी है। बस कार्रवाई का इंतजार कर रहा हूं।
सवाल: दो सालों की आपकी उपलब्धियां क्या रही हैं?
जवाब: हां यह सवाल सही है। दो सालों में मैंने कई ऐसे काम करवाए हैं, जो कभी नहीं हो सके थे। आवारा कुत्तों के ऑपरेशन करवाकर उनकी संख्या पर नियंत्रण की दिशा में काम किया। दो सालों में 15 हजार कुत्तों के ऑपरेशन किए। अगर मेनका गांधी के एक्ट (पीपल्स फॉर एनिमल एक्ट) में हाथ न बंधे होते तो जालंधर से आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान हो चुका होता। लावारिस पशुओं व गाय के लिए शाहकोट व अन्य स्थानों पर शेड की व्यवस्था करवाई। 29 लाख खर्च किए। पुराने शहर को बिल्डिंग जोन सिस्टम में शामिल करवाया। हजारों कामर्शियल इमारतों व सदियों पुराने बजारों को क्लीन चिट मिली। रोड स्वीङ्क्षपग मशीन खरीदी। पुराने मेयर ने पांच करोड़ में सफाई का करवाने की कवायद की थी, मैने एक करोड़ में यह काम करवाया। कूड़े को हमेशा के लिए ठिकाने लगाने के लिए बायो माइङ्क्षनग व्यवस्था लागू करवा रहा हूं।
सवाल: टैक्स भरने वाली जनता का क्या कसूर है, जो टूटी सड़कों पर धक्के खाने को मजबूर हैं। हजारों लोगों को कमर व पीठ दर्द इन्हीं सड़कों की देन है। कितनी महिलाओं का गर्भपात इन टूटी सड़कों की वजह से हो गया। उन बच्चों का क्या कसूर था, जिन्हें पैदा होने से पहले सड़कें लील गईं?
जवाब: यह मेरा नहीं पिछली सरकार की नाकामी है। मैं मानता हूं कि सड़कें खराब हैं। बस तीन महीने और, तमाम सड़कों के निर्माण के टेंडर लग रहे हैं। अप्रैैल में काम शुरू हो जाएगा।
सवाल:दो सालों की सबसे बड़ी चुनौती क्या थी और अगले तीन सालों की सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी?
जवाब: यूनियन हावी है। निगम प्रशासन पर ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन तथा विधायकों पर भी। इस मामले में सभी को एकजुट होकर सोचना होगा।
सवाल: अगले तीन सालों का लक्ष्य क्या है?
जवाब: सड़कों को सही करवाना। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट। सीवरेज सिस्टम को सही करवाना। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्टों को पूरा करवाना।
सवाल: लोगों से कोई अपील करना चाहते हों?
जवाब: शहर को प्लास्टिक मुक्त करने में सभी शहरवासी निगम का सहयोग करें। सब मिलकर जालंधर को प्लास्टिक फ्री शहर बनाएं।
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