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जालंधर में कर्मियों की सामूहिक छुट्टी के दूसरे दिन भी सूने पड़े ऑफिस, नहीं हुए लोगों के काम

सरकारी कर्मचारियों के सामूहिक छुट्टी पर जाने के कारण वीरवार को लगातार दूसरे दिन दफ्तरों में कामकाज नहीं हो सका। 23 अगस्त तक मुलाजिमों की कलमछोड़ हड़ताल रहेगी।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Thu, 20 Aug 2020 01:56 PM (IST)Updated: Thu, 20 Aug 2020 01:56 PM (IST)
जालंधर में कर्मियों की सामूहिक छुट्टी के दूसरे दिन भी सूने पड़े ऑफिस, नहीं हुए लोगों के काम
जालंधर में कर्मियों की सामूहिक छुट्टी के दूसरे दिन भी सूने पड़े ऑफिस, नहीं हुए लोगों के काम

जालंधर, जेएनएन। लंबित मांगों को लेकर 6 अगस्त से लगातार कलमछोड़ हड़ताल पर चल रहे मुलाजिमों के सामूहिक छुट्टी पर जाने के दूसरे दिन भी सरकारी विभागों में कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस दौरान अधिकतर विभागों में खाली पड़ी कुर्सियां देख काम करवाने पहुंचे लोग बैरंग लौटते रहे। हालांकि वीरवार देर शाम कैबिनेट मंत्री के साथ मुलाजिमों की बैठक के दौरान समस्या का समाधान निकल सकता है। फिलहाल, जिला स्तर पर मुलाजिमों में रोष बरकरार है।

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सरकारी विभागों में तैनात मुलाजिमों में पिछले लंबे समय से मांगें पूरी ना होने को लेकर रोष है। इस संबंध में पंजाब स्टेट मिनिस्ट्रियल सर्विसेज यूनियन के आह्वान पर ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने राज्य भर में कलम छोड़ हड़ताल का एलान किया गया है। इसके तहत 6 अगस्त से कलम छोड़ हड़ताल का दौर निरंतर जारी है। समय के साथ इसमें इजाफा किया जाता रहा है। शुरुआत में 6 से 14 अगस्त और फिर 18 अगस्त तक कलम छोड़कर हड़ताल का एलान कर चुके मुलाजिमों ने अब इसकी अवधि बढ़ाकर 23 अगस्त कर दी है। इसके साथ ही 19 से लेकर 21 अगस्त तक सामूहिक छुट्टी की घोषणा भी की थी। इसी के तहत वीरवार को लगातार दूसरे दिन सरकारी विभागों में कामकाज नहीं हो सका। अभी 23 अगस्त तक कलम छोड़ हड़ताल रहेगी।

जालंधर में सरकारी कर्मचारियों के सामूहिक छुट्टी पर जाने के दूसरे दिन वीरवार को भी प्रशासन के दफ्तरों में कुर्सियां खाली नजर आईं। इस दौरान काम करवाने पहुंचे लोगों को बैंगर लौटना पड़ा।

मुलाजिमों ने दी संघर्ष तेज करने की चेतावनी

इस बारे में ज्वाइंट एक्शन कमेटी के प्रधान सुखजीत सिंह और महासचिव तेजिंदर सिंह बताते हैं कि पंजाब सरकार ने मुलाजिमों की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया है। जिस कारण उनमें रोष बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया तो संघर्ष और तेज किया जा सकता है।


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