शहीदों की गाथा व गदर आंदोलन की यादों को संजोए बैठा है जालंधर का देशभगत यादगार हाल
देशभर में आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने के लिए काउंटडाउन शुरू हो चुका है। आजादी की लड़ाई में जालंधर शहर व यहां के लोगों का अहम योगदान रहा है। इसकी गवाही देशभगत यादगार हाल सालों से भरता आ रहा है।
जालंधर, प्रियंका सिंह। देशभर में आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने के लिए काउंटडाउन शुरू हो चुका है। आजादी की लड़ाई में जालंधर शहर व यहां के लोगों का अहम योगदान रहा है। इसकी गवाही देशभगत यादगार हाल सालों से भरता आ रहा है। यह हाल देश की आजादी के लिए अपनी जिंदगियां कुर्बान करने वाले शहीदों की गाथा व गदर आंदोलन के इतिहास की यादें आज भी संजोए बैठा है।
इस हाल में लाइब्रेरी के ऊपर एक बहुत बड़ा म्यूजियम बनाया गया है, जिसमें शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव समेत शहीद गदरियों की 300 से भी अधिक तस्वीरें रखी गई हैं। यहां उस मशीन की तस्वीर भी रखी गई है, जिसे गदर अखबार और अन्य पत्रिकाएं छापने के लिए करतार सिंह सराभा अपने हाथ से चलाते थे। यहीं कारण है कि इसे देश में सबसे पुराने संग्रहालयों में शामिल किया गया है। शहीदी प्राप्त करने वाले गदरियों की याद में हर साल बहुत बड़ा मेला नवंबर में लगाया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होने के लिए आते हैं। इसे गदर पार्टी मार्टीर्स मेमोरियल के नाम से भी जाना जाता है।
मौजूदा समय में यहां राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, जात-पात व अन्य समस्याओं से जुड़े समागम के लिए पांच हाल बनाए गए हैं। हर हाल गदरी बाबों को समर्पित है, जिन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते कुर्बानी दे दी। हाल की देखरेख के लिए कमेटी बनाई गई है।
स्वतंत्रता संग्राम में गदरियों का योगदान
गदरी शूरवीरों ने राजनीतिक लोगों की खबर सार लेने, जेल में कैद सेनानियों की मदद करने व उनके परिवारों की देखरेख करने के लिए 1929 में देशभगत परिवार सहाय कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने 1938 में फैसला लिया देशभक्तों की याद में एक यादगार बनाई जाए। 1955 में जालंधर शहर में यादगार हाल स्थापित करने का फैसला हुआ। यह इमारत पहले एक कोठी हुआ करती थी जिसे गदर आंदोलन के संस्थापकों ने 1959 में 61000 में खरीदा था। 1959 में इस हाल की स्थापना की गई, जिसका नींव पत्थर बाबा अमर सिंह संधवां ने रखा था।