घुमक्कड़ः हुण डीसी जिन्नी टौर साडी... मैडम जिम में व्यस्त हैं...
घुमक्कड़ घूमते हुए कहीं भी पहुंच सकता है। फिर बाहर निकलती है उन बातों और वाकयों की जानकारी जिसे हर अफसर छुपाना चाहता है।
जालंधर, जेएनएन। जालंधर की अफसरशाही गाहे बगाहे सुर्खियों में रहती है। घुमक्कड़ कालम में इस सप्ताह के दौरान घटित अफसरों से जुड़े कुछ रोचक बातों को चुटीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं दैनिक जागरण के संवाददाता मनीष शर्मा।
साडी तां जून सुधर गई
घुमक्कड़ जिले के बड़े अफसर का दफ्तर देखने जिला प्रशासकीय कांप्लेक्स पहुंच गया। वहां अफसरों के दफ्तरों के बाहर फरियादियों की कतार लगी थी। ठंड ज्यादा थी तो सोचा चलो थोड़ी सीढिय़ां ही चढ़ लें। कुछेक फ्लोर चढ़े ही थे कि पुरानी सी इमारत में चमचमाता कार्पोरेट स्टाइल का दफ्तर देख आंखें चुंधियां गईं। माथे पर बल पड़ गए कि किसी प्राइवेट कंपनी का दफ्तर है क्या? अंदर घुसते ही रिसेप्शन, चमकदार कुर्सियां, आलीशान दफ्तर, वो बात अलग है कि अफसर कम ही नजर आए। फिर क्या, इसका राज जानने की जिज्ञासा होनी ही थी। एक दफ्तर में बैठे अफसरनुमा व्यक्ति से पूछा कि इतना बढ़िया दफ्तर, वो बोला की दस्सिए जी, पैहलां टुट्टियां कुर्सियां ते बैहंदे सी, हुण तां डीसी जिन्नी टौर है साडी, कम्म किसे दा होवे, न होवे, साडी तां जून सुधर गई।
मैडम जिम में व्यस्त हैं
एकाध फ्लोर ऊपर-नीचे हुए तो एक अन्य सरकारी दफ्तर पहुंचे। पता चला मैडम नहीं हैं। कर्मचारी बोले, वैसे भी कम ही आती हैं। आ भी गईं तो किसी से मिलती नहीं। बाहर बैठे प्यून ही टरका देते हैं। जब अफसर नहीं तो नीचे वाले भी गायब होने ही हैं। अलग-अलग कैबिनों में भटकते घुमक्कड़ को एक क्लर्क मिल ही गया। उसी को थोड़ा छेड़ा कि मैडम कहां हैं? फोन भी नहीं उठा रहीं। वो बोला हुण मैडम ने जिम ज्वाइन कर लेया ए, ऐस करके फोन नहीं चुक सकदी किसे दा। घुमक्कड़ फिर पूछ बैठा, जेकर ऑफिस आणगे तां मुलाकात हो जाऊ। क्लर्क बोला, एदां नहीं तुहाडी मुलाकात होणी। हां, जेकर कोई बिचौला है जाण-पछाण दा तां गल्ल होर ए। नहीं तां बाहर बैठे रहो, तुहानूं किसे ने नहीं मिलण देणा, बाकी मर्जी तुहाडी ए।
गालियां तो ना निकालें
घूमते-घूमते इसी कांप्लेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर एक अन्य सरकारी दफ्तर के पास पहुंचे तो एक अफसर के दफ्तर के अंदर से गुस्से में लाल होकर निकलता कर्मचारी मिल गया। जिज्ञासु प्रवृत्ति व सवाल पूछने के शौकीन घुमक्कड़ उस कर्मचारी को ही छेड़ बैठा। पूछा की गल्ल जनाब, गुस्से च लगदे हो, वो फूट पड़ा की दसिए भाजी, अफसर तां गालां ही बोहत कडदा ए। इक दिन तां मावां-भैणां दी वी मुंह चों निकल गईयां सी, असीं मुलाजिम बंदे हां, की कह सकदे हां, पर गालां नईं कडणियां चाहीदियां। सारे अफसरां नूं वी पता ए एस अफसर दा, पर सारियां दी मजबूरी ए कोई कुझ नहीं कैहंदा। सानूं वी सरकारी नौकरी दा लालच ए, किसे प्राइवेट कंपनी च हुंदा तां हुण तक किसे ने सिर फाड़ देणा सी ऐहो जिहे गालां कड्डण वाले अफसर दा।
उदां मिठ्ठे, ते उद्घाटन वेले बिजी
इस इमारत से निकल घुमक्कड़ पुलिस कमिश्नरेट में जा घुसा। एक महिला मिल गई। बड़ी परेशान दिखी। मौका देख उसे परेशानी का कारण पूछा लिया। वो बोली कुछ नहीं जी, धोखा हो गया मेरे साथ। मैंने बाहर से आकर यहां प्रदर्शनी लगाई थी। चीफ गेस्ट चाहिए था तो यहां के एक बड़े अधिकारी ने चाय-पानी पिला पूरा भरोसा दिया कि वो ही आएंगे उद्घाटन करने, किसी दूसरे को न कह देना। प्रदर्शनी शुरू भी हो गई लेकिन वो नहीं आए। तीसरा दिन इंतजार में बीत गया। जब फोन करो तो पहले कहा बिजी हूं, फिर फोन नहीं उठाया। प्रदर्शनी भी निपट गई लेकिन चीफ गेस्ट नहीं पहुंचा। अब मैं तो सिर्फ यह कहने ही आई थी कि अगर आना नहीं था तो उस दिन क्यों मीठी-मीठी बातें की। अब जैसे ही नाम अंदर गया तो मिलने के लिए भी नहीं बुलाया।
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