योजनाओं का तामझाम, फिर भी दोहरी मार झेल रहे एड्स रोगी
सरकारी योजनाओं का बावजूद एचआइवी एड्स रोगी दोहरा दर्द झेल रहे हैं। योजनाओं का लाभ लेने के लिए उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।
जालंधर [जगदीश कुमार]। राज्य व केंद्र सरकार के दावों के बावजूद एचआइवी/एड्स के मामले कम नहीं हो रहे। इस बीमारी के साथ जिंदगी बसर करने वाले दोहरी मार झेलने को मजबूर हैं। बीमारी के साथ-साथ हालात के साथ जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। सरकार ने भले ही इनको सेवाएं मुहैया करवाने के लिए योजनाएं व तामझाम तैयार किया है, लेकिन उसका फायदा लेने के लिए इन्हें भटकना पड़ रहा है। एड्स के साथ दूसरी बीमारी का इलाज करवाने के लिए निजी अस्पतालों में मंहगे इलाज से जेब कटवानी पड़ती है। सरकारी अस्तालों में तैनात स्टाफ की टालमटोल की नीति से मर्ज नासूर बन जाता है। कई मरीज मौत का निवाला बन रहे है।
दो मरले जमीन बेच कर करवाया इलाज
शहीद भगत सिंह नगर की रहने वाली सोना रानी (बदला हुआ नाम) एड्स का दर्द झेल रही है। इसके साथ पिछले एक साल से पित्ते में पत्थरी का भी दर्द उठा और इलाज के लिए नवांशहर व जालंधर के सिविल अस्पताल में भटकती रही। उसे सरकारी इलाज नसीब नहीं हुआ। वह तीन दिन पीजीआइ में दाखिल रही, लेकिन दर्द से निजात न मिली। एक साल बाद सितंबर में उसने नवांशहर के निजी अस्पताल से 25 हजार रुपए खर्च कर इलाज करवाया।
सोना रानी कहती है कि सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों के टालमटौल के रवैये से दुखी होकर उसने दो मरले जमीन बेच कर इलाज करवाया। इससे पहले एक साल में उसने इलाज के लिए आने जाने पर भी 25 हजार रुपए खर्च कर चुकी थी। उसके पति की मौत हो चुकी है वह सिलाई का काम अपने बच्चों का पालनपोषण कर रही है। हालांकि पंजाब स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के पास भी केस गया और वह इलाज को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं जो हकीकत से कोसों दूर है। इसी तरह राज्य के तकरीबन हर जिले में एचआइवी /एड्स रोगी इलाज के लिए भटकते है और कई इलाज न मिलने की वजह से मौत का निवाला भी बन रहे हैं।
चार साल में केवल चार शिकायतें आई
एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर पंजाब स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी डॉ. मनप्रीत कौर छतवाल का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में एचआईवी/एड्स रोगियों के मुफ्त इलाज की सुविधा का प्रावधान है। अगर इलाज में कोई डाक्टर व स्टाफ आनाकानी करता है तो पहले एआरटी सेंटर में शिकायत करे। समस्या का समाधान नहीं होता तो 104 पर शिकायत कर सकते हैं जो सीधी उनके पास पहुंच जाएगी। पिछले चार साल में उनके पास चार शिकायतें हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। नवांशहर की एक महिला के पित्ते की पत्थरी का मामला आया था और इलाज की सरकारी अस्पताल को हिदायतें दी गई थी। मरीजों की सुविधाओं के स्वयं सेवी संगठनों को भी प्रोजेक्ट दिए हैं।
प्रमुख मांगें
-सरकारी बस पास सुविधा
-सस्ते राशन के लिए नीले व अवाई कार्ड
-ट्रेन का मुफ्त पास
-सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में नौकरी का आरक्षण।
-निजी अस्पतालों में सस्ता इलाज।
-सरकारी अस्पतालों में बेहतरीन इलाज की सुविधा।
-न्यूट्रीशियन स्कीम के तहत सभी को पौष्टिक आहार का लाभ।
-पेंशन योजना लागू हो।
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