जग्गा जासूसः शहर के थानों का हाल, छुट्टी कटवाने के लिए इंस्पेक्टर तैनात
इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी तो थानों में तैनात होने चाहिए और सब इंस्पेक्टर रैंक वालों को छुट्टियां कटवाने के लिए रिलीवर रखा जाना चाहिए।
जालंधर [सुक्रांत]। जालंधर पुलिस के अधिकारी भी कई बार ऐसे कारनामे कर देते हैं कि सामने वाला भी बस सोचता ही रह जाता है। कायदे से थानों के प्रभारी इंस्पेक्टर रैंक के होने चाहिए और यदि इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी कम हैं तो ऐसी सूरत में सब इंस्पेक्टर रैंक वाले को थाना प्रभारी बनाया जा सकता है। लेकिन जालंधर के 14 थानों में तैनात प्रभारियों में 12 इंस्पेक्टर रैंक के हैं और दो, थाना बस्ती बावा खेल के प्रभारी कमलजीत सिंह और थाना पांच के प्रभारी रविंदर कुमार और सब इंस्पेक्टर रैंक के हैं। हाल यह है कि दो इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी राजेश कुमार और सुखबीर सिंह शहर में इसलिए तैनात हैं कि छुट्टी पर गए थाना प्रभारियों की जगह ले सकें। अब कौन समझाए कि इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी तो थानों में तैनात होने चाहिए और सब इंस्पेक्टर रैंक वालों को छुट्टियां कटवाने के लिए रिलीवर रखा जाना चाहिए।
जुआरियों पर तरस आ गया...
शहर में अपराध करने वालों के खिलाफ पुलिस की सख्ती और नरमी दोनों नजर आते हैं। एक बड़े साहब को जुआ खेलने वालों की हालत देख तरस आ गया और भविष्य में कुछ बुरा न कर बैठें इसकी फिक्र उन्हें सताने लगी। दरअसल, थाना डिवीजन नंबर तीन की पुलिस ने जुआरियों को पकड़ा, जो अच्छे घरों के लग रहे थे। लेकिन उनके हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे थे। एडीसीपी गुरमीत सिंह, एसीपी जसबिंदर सिंह और थाना तीन के प्रभारी रुपिंदर सिंह ने पत्रकारवार्ता रखी। जुआरियों की हालत देख एडीसीपी साहब को थोड़ा तरस आ गया। आखिर वर्दी के पीछे भी तो एक दिल है। उन्होंने थाना प्रभारी से पूछा कि फोटो करवानी चाहिए या नहीं। थाना प्रभारी को चिंता थी कि कहीं फोटो छपने पर गलत हरकत न कर लें। थोड़ी कश्मकश के बाद पता चला कि सारे पक्के जुआरी हैं तो फोटो भी हुई और चिंता भी खत्म हुई।
आठ से आठ ड्यूटी से परेशानी
वैसे तो पुलिस वालों की ड्यूटी चौबीस घंटे की है लेकिन आराम की जरूरत तो सभी को होती है। इसके चलते बारह-बारह घंटे की ड्यूटी बदल-बदल कर लगाई जाती है। लेकिन महिला मुलाजिमों के लिए आठ से आठ की ड्यूटी परेशानी का सबब बनती जा रही है। सुबह आठ बजे से लेकर रात आठ बजे तक दो पुलिस मुलाजिमों के साथ एक महिला मुलाजिम की तैनाती की जाती है। बेशक पुलिस वाली हैं परंतु हैं तो महिलाएं। अब महिलाओं की कई ऐसी समस्याएं ऐसी होती हैं जिन्हें वह किसी को बता भी नहीं सकतीं और कहीं जा भी नहीं सकतीं। कुछ महिला मुलाजिमों ने थोड़ी आवाज उठाई भी लेकिन यह आदेश ऊपर से आने के चलते किसी की सुनवाई नहीं हुई। चौराहों पर सुबह से लेकर शाम ढलने तक ड्यूटी दे रही महिला मुलाजिम अब परेशान हैं कि वह अपना दर्द सुनाएं तो किसे सुनाएं, कोई सुनने को राजी ही नहीं है।